अरविंद शर्मा-
काका आपको कौन भूल सकता है… हिंदी पत्रकारिता के प्रभावपूर्ण हस्ताक्षर और दैनिक जागरण एवं अमर उजाला जैसे श्रेष्ठ अखबारों के संपादक रहे रामेश्वर पांडेय आज स्वर्गीय हो गए। पत्रकारिता में हम सब उन्हें काका नाम से ही जानते हैं। उनका काका नाम क्यों और कैसे पड़ा होगा, मुझे नहीं पता, लेकिन नए या मुश्किलों से घिरे पत्रकारों के लिए वह सचमुच में काका की तरह ही खड़े रहते थे।
मुझे गर्व है कि कैरियर की शुरुआत में ही उनके नेतृत्व में मुझे अमर उजाला मेरठ और जालंधर में काम करने का मौका मिला। मेरे जैसे अनगढ़ बच्चे को उन्होंने अपने अनुशासन एवं स्नेह के जरिए इस लायक बनाया कि आज राष्ट्रीय राजधानी में खड़ा और बड़ा होने का प्रयास कर रहा हूं।
काका के व्यक्तित्व में ही अनुशासन था। ऐसा कड़क अनुशासन, जो बिना चीखे-चिल्लाए ही जूनियरों पर प्रभावी हो जाता था। मुझे याद नहीं कि काका ने कभी आफिस में किसी जूनियर पर अपना गुस्सा उतारा हो या गलती पर किसी को डांट लगाई हो।
कभी गलती हो जाने पर मुझे तो हंसते-मुस्कुराते काका को देखकर भी पसीने छूट जाते थे। मगर काका अपने केबिन में बुलाते। प्यार से इधर-उधर की बातें करते और फिर गलती का कारण पूछते और अंत में समझाते कि इस तरह की गलतियों से कैसे बचा जा सकता था। और हां…।
केबिन से निकलते वक्त यह कहना भी नहीं भूलते कि मैंने उस दिन के अखबार में और क्या-क्या अच्छा किया है।
बहुत सारी बातें हैं काका। लिखने लग जाऊं तो रोने लग जाऊंगा। इसलिए क्षमा कीजिए। मैंने राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी के साथ कभी काम नहीं किया, किंतु मेरे जमाने के बड़े पत्रकारों में काका भी किसी से थोड़ा भी कम नहीं थे। आप हमेशा याद रहेंगे काका।