उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे, कुशल प्रशाशक, हिन्दू हृदय सम्राट और उत्तर प्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार कल्याण सिंह को आखिरकार बीजेपी के कल्याण विरोधी खेमे ने एक बार फिर किनारे लगा ही दिया। बहुत सोची समझी राजनैतिक साजिश के तहत उनको जबरन राजस्थान का राज्यपाल बनने के लिए विवश कर दिया। कुछ ऐसे हालात बनाए गए जिसके कारण कल्याण सिंह द्वारा कई बार स्पष्ट तौर पर राज्यपाल बनने से मना करने के बाद अंततः पार्टी के आदेश का पालन करते हुए उन्हें हां कहना पड़ा। मेरा पक्का विश्वास है कि पार्टी के इस निर्णय से जहां कल्याण सिंह खुद आहत हैं, वही उनके लाखों समर्थक भी काफी निराश हैं।
समर्थकों का मानना है कि कल्याण सिंह को राजस्थान का राज्यपाल बनाने के पीछे असल सोच उनको उत्तर प्रदेश की सक्रिय राजनीति से बेदखल करना है। कल्याण के रहते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की दावेदारी कोई और कर भी नहीं सकता था। इस निर्णय से उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह के समर्थक इस कदर आहत हैं कि वे सड़कों पर उतर कर भी बीजेपी हाई कमान से इस निर्णय को वापस लेने की मांग कर सकते हैं। कल्याण सिंह के समर्थकों और बीजेपी के एक बहुत बड़े धड़े का मानना है कि राज्यपाल जैसे पद जनाधारविहीन वरिष्ठ नेताओं को एडजस्ट करने के लिए तो ठीक हैं परन्तु एक कद्दावर और प्रदेश में सबसे अच्छी जमीनी पकड़ रखने वाले नेता के लिए राज्यपाल का पद एक लिहाज से किसी काल कोठरी से कम नहीं है जहां उसको उसके जनाधार से एकदम अलग एक तरह की तन्हाई में रहना पड़ता है।
चर्चा है कि केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को उत्तर प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री बनाने की जमीन तैयार करने के रूप में ही कल्याण सिंह को प्रदेश बदर किया गया है। हालांकि और भी कई नाम बीजेपी खेमे से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट किये जा रहे हैं जिनमे वरुण गांघी और योगी आदित्य नाथ के नाम भी शामिल हैं। जबकि 82 साल की उम्र में भी हाल के लोकसभा के चुनावो में बीजेपी ने कल्याण सिंह के जनाधार को भुनाने के लिए उनको पार्टी की ओर से एक हेलीकाप्टर मुहैय्या करवाकर ४६ जगह चुनावी रैलियां करवाई थी। इनमें से अधिकाँश जगह बीजेपी को विजय मिली।
यही नहीं, कल्याण सिंह की लोकप्रियता के चलते लोकसभा के चुनावों में बड़े बड़े दिग्गज उम्मीदवार जैसे राजनाथ सिंह, मुरली मनोहर जोशी, स्मृति ईरानी, जनरल बीके सिंह, कलराज मिश्रा, लाल जी टंडन, मेनका गांधी तक को कल्याण सिंह की रैलियों और चुनाव प्रचार का सहारा लेना पड़ा। राजनीति के रणनीतिकार मानते हैं कि उत्तर प्रदेश के २०१७ के विधान सभा के चुनावों में कल्याण सिंह के बिना बीजेपी को भारी नुकसान भी उठाना पड़ सकता है क्योंकि यह सर्व विदित है कि आज भी उत्तर प्रदेश में बी जे पी में यदि सबसे बड़ा वोट बैंक जमीनी स्तर पर किसी नेता का है तो वह कल्याण सिंह का है। कल्याण के बिना उत्तर प्रदेश में अमित शाह का मिशन २०१७ ठीक वैसा ही होगा जैसे बिना नींव के किसी महल को खड़ा करने की कोशिश करना। हालांकि इस मुद्दे पर कल्याण सिंह चुप्पी साधे हुए हैं परन्तु उनके लाखों लाख समर्थकों का गुस्सा बी जे पी के खिलाफ सड़कों पर कभी भी फूट सकता है और बी जे पी नेतृत्व से अपने इस निर्णय को वापस लेने का दबाव बना सकता है।
राकेश भदौरिया
पत्रकार
एटा
उत्तर प्रदेश
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KM NITANSHI
August 11, 2014 at 11:52 am
गलत कह रहे आप अब कल्याण सिंह के नेत़त्व की जरूरत वीजेपी को नही है अब उनसे बढ कर आगे कई नेता है और प्रदेश को युवा नेत़त्व की जरूरत है जिनमे खुद अमित शाह हो या वरूण गांधीजी
vishal
August 13, 2014 at 2:41 am
Ye sach h kalyan singh jee ke saath sochi samjhi sajish h unko up se alag kiya ja raha h babu jee ke bina 2017 ka election jeetna bjp ke liye namumkin h. Babu jee ke saath dhoka ho raha h
Shailesh rajput
August 13, 2014 at 6:40 am
Ek dam sahi sir ji bjp ko hani hogi