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अपने उपर लगे आरोपों का कमाल खान ने दिया करारा जवाब

..मेरी पत्नी रुचि के पिता की पलामू में बॉक्साइट की दो बहुत बड़ी माइंस थी जिससे एल्युमीनियम बनता था और बिरला की एल्युमीनियम फैक्ट्री को सप्लाई होता था… जब उनके पिता बुजुर्ग हो गए तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि आपको अब इस उम्र में भागदौड़ नहीं करनी चाहिए इसलिए उन्होंने उनकी दोनों माइंस सरकार को सरेंडर करा दी.. अगर उनको यही चिरकुट टाइप बेईमानी करनी होती तो इसके बजाय वो अपने पिता की खानें चला कर उससे बहुत ज़्यादा पैसा कमा लेतीं… आपके तर्क के मुताबिक अगर पत्रकार को अच्छा वेतन पाना, खुशहाल होना या सम्पत्ति खरीदना अपराध है तो फिर पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने के लिए संघर्ष नहीं करना चाहिए… क्योंकि इतना पैसा तो सभी मीडिया हाउस देते हैं कि पत्रकार झोला लटका के साइकिल पर घूम सके…

(कमाल खान के जवाब का एक अंश)

..मेरी पत्नी रुचि के पिता की पलामू में बॉक्साइट की दो बहुत बड़ी माइंस थी जिससे एल्युमीनियम बनता था और बिरला की एल्युमीनियम फैक्ट्री को सप्लाई होता था… जब उनके पिता बुजुर्ग हो गए तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि आपको अब इस उम्र में भागदौड़ नहीं करनी चाहिए इसलिए उन्होंने उनकी दोनों माइंस सरकार को सरेंडर करा दी.. अगर उनको यही चिरकुट टाइप बेईमानी करनी होती तो इसके बजाय वो अपने पिता की खानें चला कर उससे बहुत ज़्यादा पैसा कमा लेतीं… आपके तर्क के मुताबिक अगर पत्रकार को अच्छा वेतन पाना, खुशहाल होना या सम्पत्ति खरीदना अपराध है तो फिर पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने के लिए संघर्ष नहीं करना चाहिए… क्योंकि इतना पैसा तो सभी मीडिया हाउस देते हैं कि पत्रकार झोला लटका के साइकिल पर घूम सके…

(कमाल खान के जवाब का एक अंश)

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लखनऊ से प्रकाशित ‘दृष्टांत’ मैग्जीन में वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान और उनकी पत्रकार पत्नी रुचि कुमार पर गंभीर आरोप लगाकर कवर स्टोरी का प्रकाशन किया गया… पर पूरी स्टोरी में कमाल और उनकी पत्नी रुचि का कोई पक्ष नहीं दिया गया… न ही उनका पक्ष जानने की कोशिश की गई… भड़ास4मीडिया ने कमाल खान और उनकी पत्नी से पूरे प्रकरण पर अपना पक्ष रखने का अनुरोध किया तो उन्होंने एक-एक आरोप और उन पर अपने जवाब को सिलसिलेवार ढंग से तथ्यों के साथ लिखकर भड़ास के पास प्रकाशन के लिए भेजा. भड़ास पर वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान और रुचि कुमार के पक्ष को पूरे सम्मान के साथ प्रकाशित किया जा रहा है. साथ ही ‘दृष्टांत’ मैग्जीन के संचालकों से अपेक्षा है कि वो भी अगले अंक में कमाल और रुचि के पक्ष को जरूर प्रमुखता से प्रकाशित करेंगे ताकि दोनों पक्षों की बातों का प्रकाशन करने की परंपरा का पालन कर पत्रकारीय गरिमा का सम्मान किया जा सके.

-यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया

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‘दृष्टांत’ मैग्जीन बदनीयत, सारे आरोप गलत और बेबुनियाद : कमाल खान

दृष्टांत पत्रिका के अगस्त अंक में कवर पेज पर मेरी फ़ोटो छाप के मेरे बारे में लिखा गया है. इसमें मेरे ऊपर लगाए गए सभी आरोप मनगढ़ंत, तथ्यों से परे, मेरी प्रतिष्ठा को धूमिल करने और मानहानि करने वाले है. ये आपकी बदनीयती भी जारी करते हैं क्योंकि आपने मेरे ऊपर सार्वजनिक रूप से आरोप लगाने से पहले मेरा पक्ष जानने का कोई प्रयास नहीं किया. हमारे पास ना तो आपके बताये गोमती नगर के दो प्लाट हैं, ना पुरसैनी गांव में कोई ज़मीन है और ना ही हम किसी भी कम्पनी के डायरेक्टर या शेयर होल्डर हैं. मैं पिछले करीब तीन दशकों से पत्रकारिता कर रहा हूं. पिछले 22 साल से एनडीटीवी में हूं और मेरी पत्नी रुचि पिछले 24 साल से ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट हैं और एक प्रतिष्ठित परिवार से सम्बन्ध रखती हैं.

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हमारे मीडिया संस्थान हमें इतनी सैलरी देते हैं कि हम दोनों ने मिलके पिछले फायनेंशल ईयर में करीब नब्बे हज़ार रुपये महीना इनकम टैक्स दिया है जो टीडीएस की शक्ल में कम्पनी ने काट के भेजा है. अगर हम नब्बे हज़ार रुपये महीना टैक्स देते हैं तो आप समझ सकते हैं कि हम अपने लिए इससे भी ज़्यादा खरीदने की हैसियत रखते हैं. हमारे ऊपर दृष्टान्त पत्रिका में चार बड़े आरोप लगाए गए है, जिनके बारे में हमारा पक्ष यूं है…

(1) आरोप : कि हमारे पास गोमती नगर के विराज खण्ड में प्लाट नम्बर 1/97 और विकल्प खण्ड में प्लाट नम्बर 1/315 है..

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मेरा जवाब : ये दोनों प्लाट कभी हमारे पास नहीं थे… अगर ये हमारे प्लाट हैं तो हमारे नाम इनकी रजिस्ट्री निकलवा के हमें कब्ज़ा दिलवा दीजिये। एलडीए से मैंने इन दोनों प्लाट्स के डाक्यूमेंट्स  निकलवाये तो पता चला विराज खण्ड का प्लाट नम्बर 1/97 कमाल खान नहीं बल्कि किन्हीं कलाम खान और असमा कलाम को 30 मार्च 1996 से एलाट है… जबकि 1/315 विकल्प खण्ड किन्हीं मयूरी शर्मा को 2001 से एलाट है…

(2) आरोप : कि हमारे पास मोहनलाल गंज के पुरसैनी गांव में काफी ज़मीन है…

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हमारा जवाब : इस गाँव मे हम चार दोस्तों ने मिलके चार बीघा खेत खरीदे थे जिसमें मेरे नाम से एक बीघा और रुचि के नाम से एक बीघा खेत थे.. इन्हें करीब 4 साल पहले बेच कर हमने लखनऊ से 36 किलोमीटर दूर मोहनलालगंज के गौरा गांव में खेती की दूसरी ज़मीन खरीदी थी.. अब मेरे या रुचि के नाम से पुरसैनी में कोई ज़मीन नहीं है…पुरसैनी की खतौनी के पेज नम्बर तीन अगर आपने देखा होता तो पता चल जाता कि चार साल पहले ये ज़मीन बेची जा चुकी है..

(3) आरोप : कि हम लोग किसी केएपीएस ट्रेडिंग कम्पनी में डायरेक्टर हैं और इसमें हमारा शेयर है…

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जवाब : हमे केएपीएस ट्रेडिंग कम्पनी में डायरेक्टरशिप और शेयर होल्डिंग से सम्बंधित कम्पनी के दस्तावेज़ दिला देंगे तो हम इस कम्पनी से डायरेक्टर की हैसियत से अपना पैसा मांग सकेंगे क्योकि इस कम्पनी का नाम हमने आज पहली बार सुना है। हमें पता ही नहीं था कि हम इसमें डायरेक्टर और शेयर होल्डर हैं। आपने अपनी मैग्ज़ीन में पुरसैनी गाँव की ज़मीन की खतौनी छापी है, जिसमें आपने साबित करने की कोशिश की है कि खसरा नम्बर 988 में मैं और रुचि केएपीएस ट्रेडिंग कम्पनी के डायरेक्टर अम्बरीष अग्रवाल के साथ पार्टनर हैं और कम्पनी के डायरेक्टर हैं.. आपने लिखा है कि हमने ये ज़मीन कंपनी के डायरेक्टर अम्बरीष अग्रवाल को दे रखी है.. रेवन्यू रिकॉर्ड में खसरा होता है… खसरा ज़मीन का बहुत बड़ा हिस्सा होता है.. एक ही खसरा नम्बर में कई लोगों की ज़मीन होती है… एक खसरे में अगर बहुत सारे नाम लिखे हैं इसका ये मतलब नहीं कि वो सब पार्टनर हैं… आपने जो खतौनी छापी है वो सिर्फ ये बताती है कि 988 नम्बर के खसरे में कई अलग-अलग लोग ज़मीनों के मालिक हैं.. और, आप बदनीयत नहीं होते तो इसी खतौनी के पेज नम्बर तीन को भी दिखाते जिसमें साफ साफ लिखा है कि ये ज़मीन हमने चार साल पहले किन्हीं और लोगों को बेच दी थी और खरीदने वाले अम्बरीष अग्रवाल या केएपीएस ट्रेडिंग कम्पनी नहीं है.. उस इलाके में अम्बरीष अग्रवाल की ज़मीन होने से आपने हमे उनकी कम्पनी का डायरेक्टर बताया है… कम्पनी के दस्तावेज निकाल के साबित कीजिये कि हम उस कम्पनी के डायरेक्टर हैं और हमारा कम्पनी में शेयर हैं…

(4) आरोप: कि हमारे पास मोहनलालगंज में विशाल फार्म हाउस है जिसकी कीमत करीब 12 करोड़ है..

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मेरा जवाब : मैं अपना ये खेत आपकी बताई गई कीमत के एक चौथाई दाम तीन करोड़ में बेचने को तैयार हूं… आप तुरंत बिकवा दें… खरीदने वाले को नौ करोड़ का फायदा हो जाएगा…

पत्रकारिता के क्षेत्र में मेरे किये गए कार्यों के लिये मुझे पांच नेशनल और एक इंटनेशनल अवार्ड मिला है… मुझे दो बार भारत के राष्ट्रपति ने नेशनल अवार्ड दिए हैं… ऐसे में ये साफ है कि आप अपनी बदनीयती से  मेरी निजी और पेशेगत प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाना चाहते हैं.. मेरी पत्नी रुचि इंडिया टीवी में एसोशिएट एडिटर हैं और 24 साल से ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट हैं… उन्होंने देश के सबसे बड़े मीडिया हाउसेस में काम किया है… वो एक सम्मानित प्रतिष्ठित पत्रकार हैं और एक प्रतिष्ठित परिवार से हैं.. आपकी जानकारी के लिए मेरी पत्नी रुचि के पिता की पलामू में बॉक्साइट की दो बहुत बड़ी माइंस थी जिससे एल्युमीनियम बनता था और बिरला की एल्युमीनियम फैक्ट्री को सप्लाई होता था… जब उनके पिता बुजुर्ग हो गए तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि आपको अब इस उम्र में भागदौड़ नही करनी चाहिए इसलिए उन्होंने उनकी दोनों माइंस सरकार को सरेंडर करा दी.. अगर उनको यही चिरकुट टाइप बेईमानी करनी होती तो इसके बजाय वो अपने पिता की खाने चला कर उससे बहुत ज़्यादा पैसा कमा लेतीं… आपके तर्क के मुताबिक अगर पत्रकार को अच्छा वेतन पाना, खुशहाल होना या सम्पत्ति खरीदना अपराध है तो फिर पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने के लिए संघर्ष नहीं करना चाहिए… क्योकि इतना पैसा तो सभी मीडिया हाउस देते हैं कि पत्रकार झोला लटका के साइकिल पर घूम सके…

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कमाल खान
Resident Editor, NDTV
[email protected]

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0 Comments

  1. Sachchidanand"sachchey "

    August 18, 2017 at 10:55 am

    वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान और उनकी पत्नी TV पत्रकार रुचि पर लखनऊ की एक स्थानीय पत्रिका ने जिस अंदाज में सरासर झूठे एवं बेबुनियाद आरोपो को ख़बर बनाकर पेश किया गया है वो घोर निन्दनीय है,बिना तथ्यों के किसी प्रतिश्ठित व्यक्ति के ऊपर दोषारोपण करना इस पत्रिका के संचालक की दूषित मानसिकता का परिचायक है।और ये कृत्य पूरी तरह अपराध की श्रेणी में आता है।- सच्चे

  2. Ramesh Joshi

    August 22, 2017 at 2:17 pm

    मुझे तो लगता है की उक्त पत्रिका के सम्पादकीय में ये जरूर लिखा होना चाहिए कि “इस पत्रिका में छपी कहानियों का किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं है, ये कहानियां एकदम कपोल कल्पित हैं और स्वान्तः सुखाय लिखी गयी हैं”
    वरिष्ठ पत्रकार कमाल खान से मेरा पिछले २५ वर्षों का जुड़ाव है और मैं कह सकता हूँ कि पत्रकारिता जगत में उनके जैसा सरल ह्रदय और इमानदार व्यक्ति बहुत ढूँढने से मिलता है. ऐसे शख्श पर कीचड़ उछालना पत्रकारिता को बदनाम करने की श्रेणी में आता है.
    मैंने सच्चे भाई (सच्चिदानंद गुप्ता ) का कमेंट पढ़ा. उनका कथन अपने आप में परिपूर्ण है ये बताने के लिए की पत्रिका में किस तरह तथ्यों के साथ खिलवाड़ कर के उन्हें बदनीयती से परोसा गया है. शायद आपको जानकर हैरत होगी की सच्चे भाई कथित खोजी पत्रकार महोदय के सहोदर भाई हैं.

  3. Rajesh N. Agarwal

    September 2, 2017 at 5:52 am

    Munh tod jab kamal bhai ka

  4. अशोककुमार शर्मा

    September 3, 2017 at 1:20 pm

    ये भंडाफोड़ पत्रकारिता भले लोगों को ही ज़्यादा सताती है।
    बुनियादी तौर पर बाबा टाइप इंसान होने के कारण यशवंत ने इस आलेख को ईमानदारी की पत्रकारिता से लगाव होने के कारण ‘दृष्टांत’ से उठा तो लिया, मगर खुद एक गलती कर बैठे जो वस्तुतः
    ‘दृष्टांत’ ने ही पहले कर डाली थी। जिसे गुनहगार मानकर सूली पर चढ़ाने का फैसला किया। उसके गुनाहों का सबूत ना लेना।
    यशवंत आपको मैंने सदा बिना शर्त पसंद किया है। आपकी भावनाएं सही होते हुए भी बार बार ‘भड़ास’ को निजी हिसाब किताब चुकाने का मंच बना दिया लोगों ने।
    ‘भड़ास’ सच्चाई और ईमानदारी का समर्थन बेशक आंख बंद करके करे, ऐसी कोई व्यवस्था ज़रूर बनाइये जिसमें कोई कमाल खान और कोई रुचि नाहक बदनामी की कीचड़ के छींटे ना झेले। आपकी ही तरह वे दोनों मेरे परिचित हैं। उनको लगी चोट भी उतना ही दुखदायी है।

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