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सियासत

कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करने से किन लोगों को ज्यादा जलन हो रही है?

Vishwa Deepak-

कन्हैया कुमार के कांग्रेस ज्वाइन करने से किन लोगों को ज्यादा जलन हो रही है? एक – मंडलवादियों को. दूसरा – फॉसिल बन चुके कथित कम्युनिष्ट कांतिकारियों को.

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कम्युनिष्ट सवाल उठाएं तो फिर भी समझ आता है. कन्हैया इसी विचारधारा से जुड़े रहे. कार्यकर्ता की तरह काम किया. टाट-पट्टी बिछाया. नारा लगाया, जेल गए, मार खाई लेकिन मंडलवादियों का क्या काम? उन्हें किस बात का दर्द ?

बिल्कुल साफ तरीके से बताता हूं. उनका दर्द यह है कि कन्हैया के कांग्रेस में आने से बिहार में तेजस्वी यादव की राह में एक बड़ा रोड़ा पैदा हो जाएगा. कन्हैया ने जो लाइन खींची है वो तेजस्वी यादव से बहुत बड़ी है. यह बात खुद तेजस्वी यादव भी बहुत ठीक से जानते हैं.

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तेजस्वी की पार्टी, RJD ने कन्हैया को लोकसभा चुनाव हरवाने में अहम भूमिका निभाई थी. उस सीट से बीजेपी के सबसे ज़हरीले नेताओं में से एक गिरिराज सिंह चुनाव जीते. बीजेपी का फायदा किसने किया? कन्हैया ने या RJD ने?

दर्द का दूसरा कारण यह है कि अगर कन्हैया को फ्री हैंड मिला तो आने वाले पांच-सात सालों में बिहार में कांग्रेस की स्थिति बदल जाएगी. तब कांग्रेस, आरजे़डी की पिछलग्गू नहीं रह जाएगी.

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फिर सिर्फ यादव वोट लेकर तेजस्वी को जो करना हो करते रहें. क्या फर्क पड़ता है? रही बात मुसलिम वोट की तो अगर कांग्रेस विकल्प बनेगी तो वो कांग्रेस के ही पास जाएंगे. कांग्रेस मुसलमानों के लिए RJD से कई गुना बेहतर साबित हुई है. आगे भी होगी.

अब बात जाति की. कन्हैया, लालू यादव का पैर छुए तो प्रगतिशील ? उनके बराबरी में खड़ा हो जाए तो सवर्ण, जातिवादी, भूमिहार आदि-आदि. कन्हैया के वैचारिक विचलन पर सवाल कर सकते हैं, उसकी राजनीतिक की आलोचना हो सकती है लेकिन इस बिंदु पर जाति का मुद्दा उठाकर आप अपनी ही हिप्पोक्रेसी साबित कर रहे.

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सवाल यह है कि आखिर कन्हैया करता क्या ? तेजस्वी का बस्ता ढोता ? चिराग पासवान के पीछे चलता या फिर बहन जी या सतीश मिश्रा जी भतीजे, दामादों की चमचागीरी करता ?

जिन्हें लगता है कि कन्हैया एक दिन बीजेपी में चला जाएगा, संघ का प्रवक्ता बन जाएगा क्योंकि वो भूमिहार है, उन्हें यह ठीक से याद रखना चाहिए कि इस समय भारत में सांप्रदायिक राजनीति के सबसे क्रूर, हिंसक चेहरे पिछड़ी जातियों से आते हैं.

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उदितराज, बीजेपी से कांग्रेस में जाए तो प्रगतिशील, कन्हैया जाए तो ब्राह्मणवाद, फासीवाद?

पार्टनर ये पॉलिटिक्स नहीं चलेगी.

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बहुत दिनों बात कांग्रेस को हिंदी बेल्ट में इतना पोलराइजिंग फीगर और पोटेंशियल वाला नेता मिला है. इसका ठीक से इस्तेमाल होना चाहिए.


कांग्रेस सबको खा जाएगी, एकाध साल बाद भाजपा को भी, फिर चिद्दू आएगा, ग्रीन हन्ट पार्ट थ्री चलाएगा…

Abhishek Srivastava-

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“अगर कहीं कन्हैया जैसे लोग भविष्य में पलटे, तो हम कहने के लायक भी नहीं रह जाएंगे कि बेटा जनता ने तुम्हें चंदा दिया था, उसका तो मान रखते।”

नीचे वाली पोस्ट ठीक ढाई साल पहले ये लिखे थे हम। तब कमरेड भाई सब बेगूसराय का टिकट कटा के हमको लानत भेज रहा था। आज 28 सितम्बर 2021 है। शाम तक सितम होकर रहेगा। कन्हैया भाई और जिगनेस भाई दोनों कांग्रेस की शरण में चले जाएंगे। हार्दिक जा ही चुका है। बस देखते रइयो, कल उमर भी जाएगा। शहला भी चली जाएगी। कांग्रेस सबको खा जाएगी। एकाध साल बाद भाजपा को भी। फिर चिद्दू आएगा, ग्रीन हन्ट पार्ट थ्री चलाएगा। फिर नारा लगइयो- संघवाद से आजादी! मणिशंकर अय्यर ज़िन्दाबाद! मैं दो साल बाद फिर से पूछूँगा- और किसी का टिकट बाकी है भाई? पी के कुर्ता चुराकर बोलेगा- सब चले गए! सब चले गए! पीछे से केजरी खिस्स से हंस देगा!

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कन्हैया कुमार के चंदा अभियान पर एक निजी खब्त..

2t6s March 2o19

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यह देश बहुत उदार है। उदारता ऐसी जो नायक और खलनायक में फ़र्क नहीं करती। दरवाज़े पर खड़े भिक्षुक की जात नहीं पूछी जाती। उस पर शक भी नहीं किया जाता, भले भीतर से वह उठाईगीर हो। अफ़राजुल याद है? उदयपुर वाला? उसके लिए एक करोड़ के चंदे का लक्ष्य था, कितना जुटा कोई नहीं जानता। अंदाज़ा इससे लगा लीजिए कि हत्यारे शंभुलाल रैगर की बीवी के लिए ही अकेले तीन दिन में साढ़े सत्ताईस लाख चंदा इस देश की जनता ने दे दिया था। कैसे और क्यों? पता नहीं।

कठुआ और उन्नाव याद करिए। यहां की बलात्कार पीड़ितों के लिए एक दिन में चंदा पंद्रह लाख पार कर गया था। नाइंसाफी की घटनाओं को भूल जाइए, तो जिग्नेश मेवानी के चुनाव के लिए चौबीस घंटे में चौदह लाख के आसपास चंदा जुटने की चर्चा रही। जिसे हम चंदा कह रहे हैं, वह दरअसल नए ज़माने की crowdfunding है। यह परंपरागत चंदे से भिन्न एक धंधा है जिसमें बाकायदे कॉरपोरेट कंपनियां लगी हुई हैं। ऊपर मैंने जो भी मामले गिनाए हैं, रैगर को छोड़ बाकी के मामले में एक ही एजेंसी ने यह काम किया था, अपना पांच परसेंट कमीशन लेकर।

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सेबी ने मार्च के पहले हफ्ते में crowdfunding करने वाली एजेंसियों को नोटिस थमाया। कुछ गड़बड़ चल रहा था। तत्काल इन एजेंसियों ने खुद को alternative investment fund के रूप में पंजीकृत कर लिया। यह बताने का कुल आशय यह है कि नए ज़माने में चंदा उगाहना बाकायदा एक संगठित पूंजीवादी उद्योग है। इसलिए इससे जनता के समर्थन का अंदाज़ा लगाने का कोई अर्थ नहीं। सुबह से जो लोग कन्हैया के चुनाव के लिए जुट रहे चंदे का चढ़ता कांटा और दानदाताओं की संख्या गिन गिन के फूले जा रहे हैं, वे अभी रामजन्म भूमि आंदोलन के चंदा मॉडल में अटके पड़े हैं। उन्हें इसके पीछे लगे कॉरपोरेट को खोजना चाहिए।

बहरहाल, तीन दशक पहले राम मंदिर के नाम पर जुटाए गए चंदे में एक सबक जरूर है जो आज भी बदले हुए मॉडल में कारगर है। इस देश के धार्मिक समूह कभी अगर मस्जिद या गुरद्वारों के लिए भी चंदा मांगते तो जनता बेशक खुशी खुशी दे देती। उसने मंदिर के लिए भी दिया। फिर हुआ क्या? चंदा लिया मंदिर बनाने के लिए, तोड़ दी मस्जिद! धोखा। विश्वासघात। यह ग़लत आज तक दुरूस्त नहीं किया जा सका। आरएसएस और विहिप इसके ऐतिहासिक दोषी हैं। लोगों ने अपना पेट काट कर मंदिर के लिए चंदा दिया था। उनका शाप लगेगा। आज नहीं तो कल। यही काम अगर 2019 में होता तो कोई नैतिक संकट नहीं था मस्जिद तोड़ने में। किसी को शाप नहीं लगता किसी का। कैसे?

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आज कॉरपोरेट फंड चंदा उगाही कर रहा है कमीशन लेकर। कन्हैया से लेकर जिग्नेश से लेकर रैगर तक के लिए। उसे अपने कट से मतलब है, सरोकार से नहीं। सरोकार हम देख रहे हैं, गलती हमारी है। इसके उलट खतरा कहीं ज़्यादा है इस बार। अगर कहीं कन्हैया जैसे लोग भविष्य में पलटे, तो हम कहने के लायक भी नहीं रह जाएंगे कि बेटा जनता ने तुम्हें चंदा दिया था, उसका तो मान रखते। इस चंदे की कोई मानवीय जवाबदेही नहीं है। यहां कोई नैतिकता काम नहीं कर रही, जैसा राम मंदिर आंदोलन के दौर में था। मैं सुबह से इसी मुहावरे में सोच रहा हूं कि मंदिर बनाने के नाम पर चंदा जुटाकर अगर कन्हैया ने भविष्य में मस्जिद तोड़ दी, तो जवाबदेह कौन होगा और किसके प्रति?

कमीशन लेने वाला तो कट लिया पैसा जुटाकर। नेता तो सांसद विधायक बन गया। अब चाहे जो करे, कोई नैतिक दबाव तो है नहीं उसके ऊपर। बचा कौन? कटा किसका? ये सोचते हुए अक्षय कुमार के एक सरकारी विज्ञापन में सिगरेट फूंकने वाले नंदू के नाम उसका आखिरी डायलॉग याद आ रहा है – “अब सोच, और हंस!”

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1 Comment

1 Comment

  1. Lovekesh Raghav

    September 28, 2021 at 9:30 pm

    Kanhiya ko sahi party mila hai abhi uska apna gyan or tajurba badhane ka samay hai, ghisne dijiye chappal tabhi aayegi akal

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