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सियासत

कन्हैया, देशद्रोह, सशर्त जमानत और उसका भाषण

-आनंद सिंह-

1992-93 में जब हम लोग पत्रकारिता की शुरुआत में थे, मैं नागपुर से अपने घर झुमरीतिलैया आया हुआ था। हमारे एक मित्र थे। पवन बर्णवाल। अर्थशास्त्र के विद्यार्थी। हमारे बाबूजी जगन्नाथ जैन कालेज में इसी विषय के विभागाध्यक्ष थे। पवन को जब कोई दिक्कत होती थी, वह बाबूजी से मिल लेता था। उसकी समस्या का समाधान हो जाता था। उस दिन भी उससे मुलाकात हुई। हाथ मिलाने के बाद उसने पूछाः आनंद आइसा ज्वाइन करोगे। मैंने पूछा-यह क्या है। उसने बताया कि यह सीपीआई का यूथ विंग है। छात्र राजनीति के लिए बढ़िया मंच। मैंने कहा, देखते हैं। मैं तो नौकरी कर रहा हूं। एबी वर्द्धन के संपर्क में हूं। नागपुर में प्रायः हर माह उनसे मुलाकात हो जाती है।

<p><span style="font-size: 8pt;"><strong>-आनंद सिंह-</strong></span></p> <p>1992-93 में जब हम लोग पत्रकारिता की शुरुआत में थे, मैं नागपुर से अपने घर झुमरीतिलैया आया हुआ था। हमारे एक मित्र थे। पवन बर्णवाल। अर्थशास्त्र के विद्यार्थी। हमारे बाबूजी जगन्नाथ जैन कालेज में इसी विषय के विभागाध्यक्ष थे। पवन को जब कोई दिक्कत होती थी, वह बाबूजी से मिल लेता था। उसकी समस्या का समाधान हो जाता था। उस दिन भी उससे मुलाकात हुई। हाथ मिलाने के बाद उसने पूछाः आनंद आइसा ज्वाइन करोगे। मैंने पूछा-यह क्या है। उसने बताया कि यह सीपीआई का यूथ विंग है। छात्र राजनीति के लिए बढ़िया मंच। मैंने कहा, देखते हैं। मैं तो नौकरी कर रहा हूं। एबी वर्द्धन के संपर्क में हूं। नागपुर में प्रायः हर माह उनसे मुलाकात हो जाती है।</p>

-आनंद सिंह-

1992-93 में जब हम लोग पत्रकारिता की शुरुआत में थे, मैं नागपुर से अपने घर झुमरीतिलैया आया हुआ था। हमारे एक मित्र थे। पवन बर्णवाल। अर्थशास्त्र के विद्यार्थी। हमारे बाबूजी जगन्नाथ जैन कालेज में इसी विषय के विभागाध्यक्ष थे। पवन को जब कोई दिक्कत होती थी, वह बाबूजी से मिल लेता था। उसकी समस्या का समाधान हो जाता था। उस दिन भी उससे मुलाकात हुई। हाथ मिलाने के बाद उसने पूछाः आनंद आइसा ज्वाइन करोगे। मैंने पूछा-यह क्या है। उसने बताया कि यह सीपीआई का यूथ विंग है। छात्र राजनीति के लिए बढ़िया मंच। मैंने कहा, देखते हैं। मैं तो नौकरी कर रहा हूं। एबी वर्द्धन के संपर्क में हूं। नागपुर में प्रायः हर माह उनसे मुलाकात हो जाती है।

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बात आई-गई हो गई। मैंने आइसा, एआईएसएफ, अभाविप जैसे संगठनों को देखा। उनके प्रस्तावनाओं को भी और कार्यरूप को भी। दोनों में जमीन आसमान का फर्क दिखा। 1996 में जब हम लोग माखनलाल चुतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में आंदोलनरत थे और अभाविप बिना शर्त समर्थन देने को हमारे पास आया था, हमने उन्हें ब्रेड-चाय खिला-पिला कर विदा कर दिया। बरकतुल्लाह विवि के छात्र भी आए। उन्होंने भी समर्थन दिया पर बिना किसी शर्त के। उन्होंने किसी यूनियन का नाम नहीं लिया। नहीं कहा कि आप इस यूनियन से जुड़ें, उस यूनियन से जुड़ें। तो, ये यूनियनबाजी अपनी खोपड़ी में गई ही नहीं।

उसी यूनियनबाजी की उपज कन्हैया को जब देशद्रोह का संदिग्ध होने पर दिल्ली पुलिस तिहाड़ पहुंचाने में कामयाब हो गई तो दिमाग में 92-93 वाला मामला किसी फिल्म की भांति चलने लगा। क्या आइसा में ऐसे लोग हैं। क्या अभाविप में भी ऐसे लोग होंगे। क्या एआईएसएफ में भी ऐसे लोगों की भरमार होगी। कई तरह के सवाल। धीर-धीरे उनका जवाब मिल रहा है।

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तीन रोज पहले भाई यशवंत ने अपने भड़ास पर उस वीडिओ का लिंक शेयर किया था जो एनडीटीवी ने अपनी साइट पर डाला था। पूरे भाषण को मैंने सुना। कोई 50 मिनट का भाषण था। भाषा के स्तर पर आप उस भाषण को कितने नंबर देंगे, यह आप तय करें। खड़ा को खरा कहने वाला कन्हैया लालू-मोदी का मिक्सर ही था। लेकिन लय टूटने नहीं दी भाई ने। एक ही लय में बोलता गया। बोला क्या। भूख से आजादी, देश में आजादी, करप्शन से आजादी…..गोया इस देश में करप्शन से आजादी की पहली लड़ाई वही छेड़ने जा रहा है। अन्ना आंदोलन को लोग बहुत जल्दी भूल गए क्या। अन्ना आंदोलन की उपज अरविंद केजरीवाल को लोग भूल गए क्या। भूख से आजादी के लिए ही तो फूड सिक्योरिटी बिल है। देश में किसे आजादी नहीं मिली है। यह एक नया शिगूफा है। जिसे देखो वह देश में आजादी चाहता है।

इस देश ने किसे गुलाम बना कर रखा है। लाल सलाम जिंदाबाद क्यों होना चाहिए। अधिनायकवाद जिंदाबाद क्यों होना चाहिए। मोदी सरकार ने ऐसे कौन से गुनाह कर दिये कि लाल सलाम जिंदाबाद के नारे लगाए जाते हैं। लगाइए, यह लोकतंत्र है। पर यह रोना क्यों कि आपको देश में आजादी चाहिए। यह आजादी नहीं होती तो आपको मीडिया लाइव नहीं करता। 74 की इमरजेंसी कन्हैया ने नहीं देखी क्योंकि वह पैदा ही नहीं हुआ था। 74 की इमरजेंसी देखते तब समझ में आता कि आजादी और प्रतिबंध में क्या फर्क है।

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हमारे पैसों से पढ़ने वाले कन्हैया यह भूल जाते हैं कि देश में आजादी इस किस्म की है कि वह जो चाहे बोल सकता है। उसे जितना इस बालिश्त उम्र में मीडिया अटेंशन मिला है, उससे भी उसको अंदाजा लग जाना चाहिए कि फ्रीडम आफ स्पीच इज आलवेज आन। वह पढ़ने आया है, पढ़े। छात्र नेता है, छात्र नेता की तरह रहे। जेएनयू में पढ़ाई का यह मतलब कब से हो गया कि आप सारी मशीनरी को एक ही डंडे से हांको। प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री जी कहना अगर आपकी मजबूरी है तो यह आपकी क्षुद्र मानसिकता को दर्शाता है। नरेंद्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री हैं, व्यक्ति के रूप में नहीं वरन संस्था के रूप में। अगर आप अपने प्रधानमंत्री का सम्मान नहीं कर सकते तो हमारे मन में कहीं न कहीं से सवाल तो उपजता ही है कि देशद्रोह वाले मामले में सब कुछ गलत नहीं है।

मिस्टर कन्हैया, आपको कैसे पता चला कि कुछ मीडिया वाले वहां से वेतन पाते हैं। क्या आपके पास कोई सुबूत है। अगर है तो पेश करें। नहीं तो मीडिया वालों को बदनाम करना छोड़ें। हमें आपकी नीयत पर शक नहीं पर आप शक का मौका दे रहे हैं। अगर सबूत है तो आप नाम लेकर बोलें क्योकि आप तो देशद्रोह के मुकदमें में फंसे हैं। 6 माह के बाद क्या होगा, यह तो आपको भी पता नहीं। तो, फिजूल की बातें न करें। वामपंथियों को भाषण कला में प्रवीण बनाया जाता है, नुक्कड़ नाटक करने की ट्रेनिंग दी जाती है, इप्टा उसी के लिए है। तो, 50 मिनट के लाइव से आप देश के नायक नहीं हो जाते। देश के प्रधानमंत्री को, उसके सिस्टम को गरियाने वाले मिस्टर कन्हैया, आप बताएं कि आपका इस देश के विकास में क्या योगदान है। आपको जरूर बताना चाहिए।

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आनंद सिंह
ओपिनियन पोस्ट
गुवाहाटी
8004678523

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0 Comments

  1. sharan

    March 6, 2016 at 8:20 am

    weldan.

  2. sanjeev singh thakur

    March 6, 2016 at 4:43 pm

    Bilkul sahi likha hai Anand Ji ne.

  3. Santosh kumar

    March 7, 2016 at 5:46 am

    Well said….

  4. Ashok Singham

    March 7, 2016 at 5:46 pm

    Bahut khub kaha

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