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सुख-दुख

करण थापर-नरेंद्र मोदी के उस चर्चित इंटरव्यू के पीछे की असली कहानी!

श्याम मीरा सिंह-

करण थापर और नरेंद्र मोदी के उस इंटरव्यू के पीछे का इंटरनल किस्सा क्या है? आपको याद होगा नरेंद्र मोदी के एक इंटरव्यू की एक पुरानी वीडियो काफी प्रसिद्ध है जिसमें नरेंद्र मोदी पत्रकार करण थापर को इंटरव्यू दे रहे हैं। उस इंटरव्यू के तीन मिनट बाद ही नरेंद्र मोदी ने कहा कि मुझे आराम करना है, मुझे पानी चाहिए। दो तीन सेकंड बाद ही नरेंद्र मोदी इंटरव्यू वाली कुर्सी से खड़े हो जाते हैं। ये कहते हुए कि “दोस्ती बनी रहे” मोदी गले में लगा हुआ माइक्रोफ़ोन निकाल देते हैं। ये हालत उस राजनेता की थी जिसका कहना है कि उसका सीना 56 इंच के कद का है। उस पत्रकार का नाम था करण थापर। ये साल 2007 की बात है जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। इस इंटरव्यू के बारे में आप सबको बस इतनी ही खबर होगी। बाकी इंटरनल किस्सा शायद ही आपको पता हो…..तो सुनिए

पत्रकार करण थापर को आप जानते ही होंगे, थोड़े से एरोगेंट, सनकी, दांत मिसमिसाकर सवाल पूछने वाला सटका हुआ सा पत्रकार हैं। थापर की पढ़ाई केम्ब्रिज और ऑक्सफ़ोर्ड में हुई है। जबर दिमाग है। थापर ने राजीव गांधी, चन्द्रशेखर, पीवी नरसिम्हा राव जैसे पूर्व प्रधानमंत्रियों के अलावा जिया उल हक, आंग सान सू की और बेनज़ीर भुट्टो का इंटरव्यू भी लिया है। यहां क्रिकेटरों और अभिनेताओं की बात नहीं कर रहा। साल 2017 में बराक ओबामा का इंटरव्यू भी थापर ने लिया था। इस इंटरव्यू के ठीक दस साल पहले थापर ने नरेंद्र मोदी का भी इंटरव्यू लिया था। जिसकी मैं बात कर रहा हूँ। साल 2007 में नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री के रूप में यह उनका दूसरा कार्यकाल था। थापर ने नरेंद्र मोदी से इंटरव्यू सेट करवाने के लिए अरुण जेटली से मदद ली। जेटली ने ही नरेंद्र मोदी के साथ करण थापर का इंटरव्यू फिक्स करवाया था।

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इंटरव्यू अक्टूबर की दोपहर में अहमदाबाद में तय किया गया था। करण सुबह की ही फ़्लाइट से अहमदाबाद पहुंच गए थे। यह वही सुबह थी, जिस दिन बेनज़ीर भुट्टो की कराची में वर्षों के निर्वासन के बाद नाटकीय रूप में वापसी हो रही थी और एक ज़ोरदार बम विस्फोट से उनका जुलूस तितर-बितर हो गया था और सैकड़ों लोग मारे गए थे। साक्षात्कार के अलावा यह बात भी करण थापर के दिमाग़ में चल रही थी। दरअसल बेनजीर भुट्टो और करण थापर दोनों ने ही ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई की है, दोनों यूनिवर्सिटी के दिनों से ही अच्छे दोस्त थे। करण थापर की पत्नी निशा और भुट्टो भी आपस में अच्छी दोस्त रही थीं, कुलमिलाकर भुट्टो और करण थापर का सम्बंध काफी पारिवारिक था। अचानक से एक बम धमाके में अपनी दोस्त की मौत की खबर ने जरूर ही करण थापर को प्रभावित किया रहा होगा।

साक्षात्कार दोपहर में होना था। विमान सुबह ही अहमदाबाद पहुंच चुका था, करण एयरपोर्ट पर ही थे कि तभी उनका फ़ोन बजा। फ़ोन नरेंद्र मोदी का था, नरेंद्र मोदी ने कहा ‘करणजी पहुंच गए?’ यह पहला संकेत था कि वह किस तरह से मीडिया को संभालने के मामले में सावधानी बरतते हैं। मोदी ने कहा, ‘अपना इंटरव्यू तो चार बजे है, लेकिन थोड़ा पहले आना, गप-शप करेंगे।’ करण थोड़ा जल्दी पहुंच गए। नरेंद्र मोदी ने करण थापर का गर्मजोशी से अभिवादन किया और बातचीत की, जैसे मानो कि वह नरेंद्र मोदी के पुराने मित्र रहे हों। जबकि ऐसा नहीं था। दोनों ने चुहलबाज़ी की, हँसे और चुटकुले सुनाए। चालाक राजनेता इस तरह के तरीक़े से ही पत्रकारों को अपने पक्ष में ढीला करते हैं। आधे घंटे बाद ही दोनों इंटरव्यू के लिए कैमरे के सामने बैठे हुए थे। मोदी ने पीले रंग का कुरता पहना हुआ था। करण थापर ने सवालों की पहली किश्त में 2002 दंगों की बात की। करण अपनी बायोग्राफी में लिखते हैं कि ऐसा उन्होंने इसलिए किया कि यदि नरेंद्र मोदी से इस बारे में बात नहीं की जाती तो इंटरव्यू एक सांठगांठ या कायरता जैसा लगता। इसी लिए उन्होंने सबसे पहले वही प्रश्न किया।

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2002 दंगों पर करण के सवाल सुनकर नरेंद्र मोदी के चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखा, उनके भाव बदले भी नहीं। वह शांत और अप्रभावित रहे। आश्चर्य की बात है कि मोदी ने अंग्रेज़ी में जवाब देने का फ़ैसला किया। हालांकि आज उनकी अंग्रेजी भाषा पर पकड़ अच्छी है, लेकिन 2007 में उतनी नहीं थी। मेरा स्वयं का व्यक्तिगत एक ख्याल ये भी है कि हिंदी की जगह अंग्रेजी में ही उत्तर देने की चुनने के कारण मोदी के कॉन्फिडेंस में कमीं जरूर आई होगी, शायद जितने अच्छे से वह हिंदी में हैंडल करते पाते, उतने अच्छे से अंग्रेजी भाषा में नहीं कर पाए। मैंने मोदी के कई पुराने इंटरव्यूज भी देखे हैं, उन सबमें मोदी की हाजिरजवाबी काबिलेतारीफ है। लेकिन मोदी इस इंटरव्यू में गड़बड़ा गए। खैर कारण चाहे जो भी रहा हो…

करण ने आगे एक और सवाल पूछा-
‘मैं आपको यह याद दिलाना चाहूंगा कि 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गुजरात से उसका विश्वास उठ चुका है। अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने खुली अदालत में कहा था कि आप आधुनिक नीरो हैं। असहाय बच्चे और मासूम महिलाएं जलती रहीं और आप मुंह फेर कर खड़े रहे। सुप्रीम कोर्ट को आपसे कोई समस्या है?”

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करण ने आगे एक सवाल के जबाव में काउंटर करते हुए कहा ‘यह केवल मुख्य न्यायाधीश की सार्वजनिक तौर पर की गई टिप्पणी की ही बात नहीं है। अगस्त 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी 4600 में से 2100 मामले पुनः खोले और उन्होंने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि उनका मानना था कि मोदी के गुजरात में न्याय नहीं मिलेगा।’

आपको बता दूं कि ज़ाहिरा हबीबुल्ला एच.शेख विरुद्ध गुजरात राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने लिखा था, ‘जब बेस्ट बेकरी में मासूम बच्चे और असहाय महिलाएं जल रही थीं, तब आधुनिक दौर के “नीरो” संभवतः यह सोच रहे थे कि अपराध करने वालों को कैसे बचाया जाए।’

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साक्षात्कार को जारी रखते हुए करण ने आगे कहा-

‘मैं बताता हूं कि समस्या क्या है। 2002 में गोधरा के हत्याकांड के पांच वर्ष बाद भी गोधरा का भूत आपको परेशान करता है। इसे शांत करने के लिए आपने काम क्यों नहीं किया?’

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मोदी ने जबाव दिया – ‘यह काम मैंने मीडिया के करण थापर जैसे लोगों को दे रखा है। उन्हें आनंद करने दो।’

करण थापर ने कहा ‘क्या मैं आपको कोई सलाह दे सकता हूं।’

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मोदी- ‘मुझे कोई समस्या नहीं है।’

करण- ‘आप ऐसा क्यों नहीं कह सकते कि जो भी लोग मारे गए हैं या जो हुआ है, उसका मुझे क्षोभ है? आप ऐसा क्यों नहीं कह सकते कि सरकार मुस्लिमों को बचाने के लिए और भी कुछ कर सकती थी?’

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मोदी- ‘मुझे जो कहना था मैंने वह उस वक़्त कह दिया, आप मेरे बयान देख सकते हैं।’

करण- ‘लेकिन इसे दोबारा नहीं कहकर और लोगों को फिर से यह संदेश न देकर आप ऐसी छवि गढ़ रहे हैं, जो गुजरात के हितों के ख़िलाफ़ है। इसे बदलना आपके हाथों में है।’

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इस पूरी वार्तालाप को अब तक दो से तीन मिनट ही हुए होंगे नरेंद्र मोदी का चेहरा भावशून्य हो गया, लेकिन यह स्पष्ट दिख रहा था कि वह ख़ुश नहीं थे, अब उनका धैर्य टूट रहा था। नरेंद्र मोदी ने थापर से कहा मुझे आराम करना है। मुझे पानी पीना है। इसके बाद उन्होंने माइक्रोफ़ोन निकाल दिया। पहले करण को भी लगा कि वाक़ई में उन्हें प्यास लगी होगी और उन्होंने टेबल की ओर इशारा भी किया कि पानी तो आपके पास की टेबल पर रखा है। लेकिन इतना वक्त कहाँ था? मोदी कुर्सी छोड़ चुके थे, इस तरह पूरा साक्षात्कार वहीं ख़त्म हो गया। इसी तीन मिनट के टेप को सीएनएन-आईबीएन अगले दिन बार-बार दिखाता रहा जिसमें मोदी कह रहे थे, ‘आपसे दोस्ती बनी रहे बस, मैं ख़ुश हूं। आप यहां आए। आपको धन्यवाद। मैं यह साक्षात्कार नहीं कर सकता… आपके विचार हैं, आप बोलते रहिए, आप करते रहिए… देखिए मैं दोस्ताना संबंध बनाना चाहता हूं।’

यहां पर आपको लगता होगा कि दोनों के सम्बंध एकदम से बिगड़ गए होंगे। आप सही हैं। एकदम सही हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद से खासकर 2016 से भाजपा का कोई भी नेता या प्रवक्ता करण थापर के किसी भी शो में नहीं आता। लेकिन मोदी ने तब एक राजनेता के तौर पर चतुराई दिखाई। उन्होंने इंटरव्यू के बाद भी करण थापर को साथ में कोई एक घन्टा बिठाए रखा। करण को चाय, मिठाई और गुजराती ढोकला खिलाए। उस कठिन हालात में भी मोदी की आवभगत बहुत ज़ोरदार थी। ये पूरा किस्सा करण थापर की जीवनी Devil’s Advocate: The Untold Story में लिखा हुआ है। दरअसल मोदी का मीडिया मैनेजमेंट बाकी राजनेताओं से बेहद अलग और चतुराई भरा है। मोदी ऐसे ही देश के शीर्ष पद पर नहीं पहुंच गए। उन्हें आता है कि पत्रकारों को, अभिनेताओं को, कलाकारों को कब और कैसे लाइन में लगाना होता है।

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नरेंद्र मोदी को भारतीय राजनीति के उन चुनिंदा राजनेताओं में गिना जाता है जो हाजिरजवाबी में अभ्यस्त हैं। जिन्हें इंटरव्यू में कठिन सवालों से कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन करण थापर ने मात्र 3 मिनट में हलक में पानी सुखा दिया। एज ए पर्सन करण आपको एलीट लग सकते हैं, एरोगेंट और सटके हुए लग सकते हैं लेकिन पत्रकार के रूप में उन्होंने शानदार इंटरव्यू लिए हैं। नरेंद्र मोदी पहले आदमी नहीं हैं जो करण का इंटरव्यू छोड़कर भाग गए इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के सुप्रसिद्ध वकील रामजेठमलानी और AIDMK की नेता और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता भी करण का इंटरव्यू छोड़कर भाग गए थे।

मैं नहीं कहता कि पत्रकार को राजनेताओं या जनप्रतिनिधियों से बदतमीजी से बात करनी चाहिए, बिल्कुल नहीं। ऊंची आवाज में बात करने का हक बिल्कुल भी किसी को नहीं है। लेकिन आज जब नरेंद्र मोदी के आगे दुम हिलाते पत्रकारों को देखते हैं तो तमाम बुराइयों के साथ भी करण थापर जैसे पत्रकारों के लिए सम्मान बढ़ जाता है।

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नरेंद्र मोदी जैसे कथित मजबूत और शक्तिशाली नेता “आम कैसे खाते हैं, और बटुआ किस रंग का रखते हैं?”
इसी तरह के प्रश्नवाचक सवालों का जबाव दे सकते हैं। असली पत्रकार के सामने तो उनका टाइम पीरियड केवल 3 मिनट का है। साक्षात्कारों के इतिहास में इस इंटरव्यू को “शीघ्रपतन” के रूप में याद रखा जाएगा।…. खैर अब तो वे तीन मिनट का इंटरव्यू भी नहीं देते…

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1 Comment

1 Comment

  1. आसिफ खान

    May 4, 2021 at 10:43 pm

    बेनज़ीर भुट्टो की मौत बम धमाके में नहीं हुई थी बल्कि उनको पीछे से सर में गोली मारी गयी थी.. गोली मारने वाले के हाथ में पिस्टल था जो वीडियो में साफ नज़र आता है…

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