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साहित्य

सलिल सरोज की रचना पढ़ें- ”क़त्ल हुआ और यह शहर सोता रहा…”

क़त्ल हुआ और यह शहर सोता रहा
अपनी बेबसी पर दिन-रात रोता रहा ।।1।।

भाईचारे की मिठास इसे रास नहीं आई
गलियों और मोहल्लों में दुश्मनी बोता रहा ।।2।।

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बेटियों की आबरू बाज़ार के हिस्से आ गई
शहर अपना चेहरा खून से धोता रहा ।।3।।

दूसरों की चाह में अपनों को भुला दिया
इसी इज्तिराब में अपना वजूद खोता रहा ।।4।।

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जवानी हर कदम बेरोज़गारी पे बिलखती रही
सदनों में कभी हंगामा, कभी जलसा होता रहा ।।5।।

बारिश भी अपनी बूँदों को तरस गई यहाँ
और किसान पथरीली ज़मीन को जोता रहा ।।6।।

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महल बने तो सब गरीबों के घर ढह गए
और गरीब उन्हीं महलों के ईंट ढोता रहा ।।7।।

रचनाकार सलिल सरोज से संपर्क [email protected] या 996863826 के जरिए किया जा सकता है.

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इसे भी पढ़-देख सकते हैं…

पहले तो तू मेरी आँखों का पानी भी पढ़ लेता था….

https://www.youtube.com/watch?v=jWBKxjk2zEc

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1 Comment

1 Comment

  1. फ़िरोज़ खान बाग़ी

    August 30, 2018 at 8:50 am

    शानदार , बहुत अच्छे

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