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मजीठिया वेतनमान : आगे से कौन डरेगा सुप्रीम कोर्ट से…

मजीठिया वेतनमान को लेकर भले ही देश की कानून व्यवस्था और उसका पालन आलोचनाओं के घेरे में हो लेकिन प्रिंट मीडिया में भूचाल देखा जा रहा है, एबीपी अपने 700 से अधिक कर्मचारियों को निकाल रही है, भास्कर, पत्रिका आधे स्टाफों की छंटनी करने जा रहा है, हिंदुस्तान टाइम्स बिक गया आदि बातें स्पष्ट संकेत दे रही हैं सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेतनमान को लेकर कुछ बड़ा फैसला आने वाला है। अब ये उठा पटक नोटबंदी के कारण हो रही है या किसी और कारण? यह तो समय बताएगा लेकिन मार्च-अप्रैल तक प्रिंट मीडिया में बड़े उलट फेर देखने को मिल सकते हैं. क्योंकि डीएवीपी की नई नीति से उसी अखबार को विज्ञापन मिलेगा जो वास्तव में चल रहा है और जहां के कर्मचारियों का पीएफ कट रहा हो या फिर पीटीआई, यूएनआई या हिन्दुस्थान न्यूज एजेंसी से समाचार ले रहा हो। साथ ही लगने वाला समाचार कापी पेस्ट ना हो, कि बेवसाइट से उठाकर सीधे-सीधे पेपर में पटक दी गई हो। इसका असर प्रिंट मीडिया में पड़ेगा.

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मजीठिया वेतनमान को लेकर भले ही देश की कानून व्यवस्था और उसका पालन आलोचनाओं के घेरे में हो लेकिन प्रिंट मीडिया में भूचाल देखा जा रहा है, एबीपी अपने 700 से अधिक कर्मचारियों को निकाल रही है, भास्कर, पत्रिका आधे स्टाफों की छंटनी करने जा रहा है, हिंदुस्तान टाइम्स बिक गया आदि बातें स्पष्ट संकेत दे रही हैं सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेतनमान को लेकर कुछ बड़ा फैसला आने वाला है। अब ये उठा पटक नोटबंदी के कारण हो रही है या किसी और कारण? यह तो समय बताएगा लेकिन मार्च-अप्रैल तक प्रिंट मीडिया में बड़े उलट फेर देखने को मिल सकते हैं. क्योंकि डीएवीपी की नई नीति से उसी अखबार को विज्ञापन मिलेगा जो वास्तव में चल रहा है और जहां के कर्मचारियों का पीएफ कट रहा हो या फिर पीटीआई, यूएनआई या हिन्दुस्थान न्यूज एजेंसी से समाचार ले रहा हो। साथ ही लगने वाला समाचार कापी पेस्ट ना हो, कि बेवसाइट से उठाकर सीधे-सीधे पेपर में पटक दी गई हो। इसका असर प्रिंट मीडिया में पड़ेगा.

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ऐसी अवमानना सब पर चले
मजीठिया वेतनमान दिलाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में लगी अवमानना याचिका में जिस तरह सुनवाई चल रही है उससे पत्रकारों की परेशानी बढ़ रही है। यदि भारत का यही कानून है तो ठीक है, ऐसी ही सुनवाई हर केस में हो…  यदि ऐसा होगा तो कानून का भय किसे सताएगा? कोई भी बंदा कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करेगा। पीड़ित बंदा अवमानना में जाएगा तो आरोपी कुछ जवाब नहीं देगा। पीड़ित के साक्ष्य मान्य नहीं होंगे. पुलिस या प्रशासनिक अधिकारी जो जांच करेंगे उस पर भी पीड़ित और अधिकारी के अलग-अलग बयान मानकर कार्रवाई नहीं की जाएगी. आरोपी लिखित कह देगा कि हम कोर्ट के आदेश का पालन कर रहे हैं  तो उससे कुछ साक्ष्य नहीं मांगे जाएंगे क्योंकि 3 करोड़ केस पेंडिंग हैं, एक-एक व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट न्याय थोड़े ही दिला पाएगा। मजीठिया वेतनमान में जब सुप्रीम कोर्ट 18 हजार केसों में नियमानुसार वेतन दिलाने में असमर्थतता जता रहा हो तो उसे सवा अरब आबादी को न्याय दिलाना है, वह कैसे दिलाएगा?

सुनवाई भी अजीब है
चूंकि न्यायालय अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 5 के अनुसार न्यायालय के फैसले के बाद यदि कोई व्यक्ति न्यायालय की निष्पक्ष आलोचना करता है तो उसे न्यायालय अवमानना का दोषी नहीं माना जाएगा। इस अधिकार के तहत कुछ तथ्य पर चर्चा करना चाहूंगा। कोर्ट ने यह पूछा कि अपने मजीठिया वेतनमान क्यों नहीं दिया तो इस पर कुछ ने बाद में कहा कि हम 20 जे के अधिकार का उपयोग कर वेतन नहीं दे रहे हैं।

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अब बात यह उठती है कि परिवादी ने प्रकरण लगाया है उसने 20 जे के तहत कुछ लिखकर नहीं दिया. यदि दिया होता तो वेतन मांगने क्यों आता। पूर्व में चले मजीठिया वेतनमान की वैधानिकता में यह सवाल नहीं उठा तो अवमानना में यह बात कहां से आ गई? यह बात पत्रकार पक्ष के वकीलों ने भी रखी। कुल मिलकर प्रकरण को जानबूझकर लटकाने के लिए जबरन 20 जे का प्रकरण सुना जा रहा है। जबकि उसकी सुनवाई का कोई वैधानिक औचित्य ही नहीं है क्योंकि अवमानना में वही बात उठाई जा सकती है जो मूल प्रकरण में उठाई गई हो। जैसे आप हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में वही बात उठा सकते हैं जो निचले अदालत में रखी हो और उसे इगनोर कर फैसला सुनाया गया हो। अब हर अदालत में उसी प्रकरण के लिए नया तथ्य और नया साक्ष्य नहीं ला सकते।

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सैलरी स्लिप और उपस्थिति पंजीयन मांगे
सुप्रीम कोर्ट तो इस मामले में सिर्फ कर्मचारियों की ओरिजनल सैलरी स्लीप और ओरिजनल उपस्थिति पंजीयन मांगना चहिए और मजीठिया वेतन मान के अनुसार वेतन भुगतान का आदेश देना चहिए। वो भी जमानती वारंट के साथ, जो ना भुगतान करें उसे गैर जमानती वारंट में बदल दो। बस इत्ता सा न्याय करने के लिए बरसों बरस लग गए और अभी भी एक बड़ा कन्फ्यूजन है कि देश के आका जनता द्वारा चुनी सरकार है या मीडिया के मालिक हैं?

रमेश मिश्र
पत्रकार
[email protected]

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0 Comments

  1. mm

    February 17, 2017 at 6:54 pm

    kabhi kabhi to yahi lagta hai ki iss “Baniyon ke Sardar ‘BJP'” ko Vote hi na dein… Ssalaa abhi tak koi faisala nahin le saka hai aur lambi-lambi baatein karta hai… Theek hi opposition kehte hain- “FENKU”. BJP Govt. in Chor-Uchakke Baniiyon ka DAVP Advt kyon nahi rokti? Kya karan hai? Kisse inhein Darr lag raha hai? etc etc aisi kai sawal hain, jo BJP ke prati ghrina paida kar raha hai.. Bachpan se BJP Supporter raha hoon, aur mera poora pariwar hi BJP supporter hai, lekin ab thoda-2 iss party se moh bhung hota ja raha hai… Yahi lagta hai, ki sabhi “Chor” hi hain, koi Badaa, koi Chhota…

  2. Mohnesh singh

    February 19, 2017 at 5:46 am

    सुप्रीम कोर्ट को पता नहीं कैसे लोगों से पंगा ले रहा है । यदि मजीठिया वेतनमान को लेकर और लेट लतीफी हुई तो पत्रकारों और कोर्ट के बीच में जंग शुरू हो जाएगी। और लोकतंत्र के दो महत्वपूर्ण की स्तंभों के बीच न्याय की जंग देश के लिए अहम होगी।

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