Connect with us

Hi, what are you looking for?

आयोजन

इलेक्ट्रोनिक मीडिया से प्रिंट मीडिया ज्यादा विश्वसनीय है : केदारनाथ सिंह

अलवर। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली में मानद प्रोफेसर व ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार केदारनाथ सिंह ने कहा कि वर्तमान में पेड न्यूज सबसे बड़ी चुनौती है। इसने सच्ची खबरों  के बीच फासले खड़े कर दिए हैं। शुक्रवार को महावर ऑडिटोरियम में बाबू शोभाराम राजकीय कला महाविद्यालय के हिन्दी विभाग व आईसीसीएसआर की ओर से “मीडिया: अतीत, वर्तमान व भविष्य”  पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने कहा कि वर्तमान में मीडिया चुनौती के दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि खबर देने का काम मीडिया का है। सच्चाई भाषा के प्राण हैं। वर्तमान में मीडिया व साहित्य के बीच की दूरी बढ़ी है। नेशनल व भाषाई अखबारों का वर्गीकरण भी चिंता का विषय है।

<p>अलवर। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली में मानद प्रोफेसर व ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार केदारनाथ सिंह ने कहा कि वर्तमान में पेड न्यूज सबसे बड़ी चुनौती है। इसने सच्ची खबरों  के बीच फासले खड़े कर दिए हैं। शुक्रवार को महावर ऑडिटोरियम में बाबू शोभाराम राजकीय कला महाविद्यालय के हिन्दी विभाग व आईसीसीएसआर की ओर से "मीडिया: अतीत, वर्तमान व भविष्य"  पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने कहा कि वर्तमान में मीडिया चुनौती के दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि खबर देने का काम मीडिया का है। सच्चाई भाषा के प्राण हैं। वर्तमान में मीडिया व साहित्य के बीच की दूरी बढ़ी है। नेशनल व भाषाई अखबारों का वर्गीकरण भी चिंता का विषय है।</p>

अलवर। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय नई दिल्ली में मानद प्रोफेसर व ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार केदारनाथ सिंह ने कहा कि वर्तमान में पेड न्यूज सबसे बड़ी चुनौती है। इसने सच्ची खबरों  के बीच फासले खड़े कर दिए हैं। शुक्रवार को महावर ऑडिटोरियम में बाबू शोभाराम राजकीय कला महाविद्यालय के हिन्दी विभाग व आईसीसीएसआर की ओर से “मीडिया: अतीत, वर्तमान व भविष्य”  पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में उन्होंने कहा कि वर्तमान में मीडिया चुनौती के दौर से गुजर रहा है। उन्होंने कहा कि खबर देने का काम मीडिया का है। सच्चाई भाषा के प्राण हैं। वर्तमान में मीडिया व साहित्य के बीच की दूरी बढ़ी है। नेशनल व भाषाई अखबारों का वर्गीकरण भी चिंता का विषय है।

ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार प्रोफेसर केदारनाथ सिंह ने शुक्रवार को संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि इलेक्ट्रोनिक मीडिया से प्रिंट मीडिया ज्यादा विश्वसनीय है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में बाजार का दबाव मीडिया पर बढ़ता जा रहा है। इससे उसकी विश्वसनीयता घट रही है। मीडिया निहित स्वार्थो को परे रखकर कार्य करे, तभी सच्चे तथ्य सामने आएंगे। उन्होंने माना कि मीडिया में अब भी अच्छी प्रतिभाएं आ रही हैं। बस उन्हें सारे दबावों को परे रखकर सच को जनता के सामने रखने का प्रयास करना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मुख्य वक्ता जेएनयू नई दिल्ली के प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह ने लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ मीडिया को और अधिक जिम्मेदार बनने की बात कही। उन्होंने कहा कि मीडिया ने दूरियां कम की हैं, लेकिन कुछ अखबार व चैनलों ने गुमराह भी किया है। दूरदर्शन केन्द्र जयपुर के उपमहानिदेशक कृष्ण देव कल्पित ने कहा कि लोगों की आवाज उठाने की जिम्मेदारी मीडिया की है। प्रोफेसर गंगा प्रसाद विमल ने मीडिया पर भी कुछ पाबंदिया लगाने की बात कही। उन्होंने कहा कि कई चैनल अंधविश्वास परोस रहे हैं। उन्हें पूरी जांच-पड़ताल के बाद कार्यक्रम प्रस्तुत करने की अनुमति दी जानी चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डॉ. यशोदा मीणा ने कहा कि जनसहभागिता व पत्रकारिता एक-दूसरे के पूरक हैं। पत्रकारिता सत्यम शिवम व सुन्दरम होनी चाहिए। इससे पूर्व कार्यक्रम की  शुरुआत में एक डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन भी किया गया। इसमें मीडिया की विकास यात्रा को दर्शाया गया। संगोष्ठी के समन्वयक डॉ. कैलाश पुरोहित ने अतिथियों का स्वागत व उपाचार्य डॉ. आरसी खण्डूरी ने आभार जताया।

आयोजन सचिव डॉ. उमेश कुमार राय ने परिचय कराया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रेखा अजवानी व डॉ. जयकोमल ने किया। कार्यक्रम के सह प्रायोजक राजस्थान इंस्टीट्यूट थे। एसोसिएशन ऑफ एशिया स्कोलर्स ने सहयोग प्रदान किया। राष्ट्रीय सम्मेलन में तकनीकी सत्र भी हुए। प्रथम सत्र “मीडिया ऎतिहासिक परिप्रेक्ष्य” में 12 पत्रों का वाचन किया गया। द्वितीय सत्र “मीडिया का वैश्विक परिदृष्य: सीमाएं एवं संभावनाएं” में 20 पत्रों का वाचन हुआ। तृतीय सत्र “मीडिया: नैतिकता, कानून एवं अपराध” में 16 पत्रों का वाचन हुआ। चतुर्थ सत्र खुला सत्र था। इसमें 18 पत्रों का वाचन किया गया। इस मौके पर डॉ. संजीव भानावत, डॉ. दीपक श्रीवास्तव, डॉ. फिरोज अख्तर, डॉ. भगवान साहू, डॉ. रविन्द्र कात्यायन, डॉ. प्रमोद पाण्डेय, डॉ. लवलीना व्यास, डॉ. सुधीर सोनी सहित हिन्दी के कई विद्वान, प्राध्यापक व शोधार्थी मौजूद थे।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. santosh singh

    December 9, 2014 at 1:25 pm

    Real baat hai electronic media print media acha kam kar rha hai aur bahut biswasniy bhi hai.

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement