अजय कुमार, लखनऊ
भारतीय नववर्ष के पहले ही दिन उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी को अपना नया हाकिम मिल गया। यूपी में अगले साल होने वालो विधान सभा चुनाव में कमल खिलाने की जिम्मेदारी भाजपा आलाकमान ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की सहमति के बाद कट्टर हिन्दूवादी छवि वाले नेता और सांसद केशव प्रसाद मौर्य पर डालकर बड़ा दांव चल दिया है। अति पिछड़ा वगै से आने वाले केशव के उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनते ही यूपी की सियासी पारा एकदम से बढ़ना स्वभाविक था और ऐसा ही हुआ। कांग्रेस, सपा और बसपा एक तरफ केशव की कुंडली खंगाल रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी ताजपोशी से होने वाले नफा-नुकसान का भी आकलन भी इन दलों द्वारा किया जा रहा है।
केशव को सूबे की कमान सौंपे जाते ही यह साफ हो गया है कि दिल्ली-बिहार में सियासी प्रयोग का खामियाजा भुगत चूकी भाजपा यूपी में ऐसी गलती नहीं करना चाहती है। वह यूपी की सत्ता हासिल करने के लिये उन्हीं तौर-तरीकों को अजमायेगी जिस पर कांग्रेस से लेकर सपा, बसपा और अन्य छोर्ट-छोटे दल दशकों से चले आ रहे हैं। भाजपा आलाकमान ने संकेत दे दिया है कि वह 55 प्रतिशत पिछड़ों-अति पिछड़ों को लुभाने के लिये सपा-बसपा और कांग्रेस को कांटे की टक्कर देगी। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की संसदीय सीट पर पहली बार कमल खिलाने वाले केशव प्रसाद मौर्य का यूपी भाजपा अध्यक्ष बनना काफी आश्चर्यजनक रहा। वह यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनने के इच्छुक नेताओं की दौड़ में सबसे पीछे चल रहे थे, लेकिन अचानक ऐसे समीकरण बदले की र्मार्य सबसे आगे हो गये।
केशव के चयन का हिसाब-किताब लगाया जाये तो आलाकमान को उनकी संघ से उनकी करीबी,पिछड़ा चेहरा, कट्टर हिन्दुत्व और भगवा छवि काफी रास आया। केशव ऐसे नेता हैं जो भले ही राम मंदिर की बात नहीं करेंगे,लेकिन लम्बे समय तक राम आंदोलन से रहा उनका जुड़ाव लोंगो को याद आता रहेगा। इसी तरह भले ही नये भाजपा अध्यक्ष अपनी कट्टर हिन्दुत्व और भगवा छवि का प्रचार करने से बचेंगे, मगर सियासी पिच पर वह कई बार हिन्दू समाज के हितों की रक्षा करने के लिये कर्णधार की भूमिका में नजर आ चुके हैं, जिसे कोई भूलेगा नहीं। पिछड़ा चेहरा तो हैं ही। केशव भाजपा के उस वोट बैंक को वापस ला सकते हैं जो पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कमजोर पड़ने के कारण पार्टी से दूर चला गया था। ओम प्रकाश सिंह की निष्क्रियता के कारण उनकी पकड़ वाला वोट बैंक भी जो भाजपा से दूर चला गया था, केशव प्रसाद के अध्यक्ष बनने से वापस आ सकता है।
नवनिुयक्त अध्यक्ष को सियासी रीति-रिवाजों के अनुसार नई पीढ़ी का नेता भी माना जा सकता है।उम्र के हिसाब से केशव और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के बीच कोई खास अंतर नहीं है।छात्रों के बीच सक्रियता और छात्र राजनीति से उनका लगाव कई मौको पर उजागर हो चुका है। केशव प्रसाद भले ही प्रदेश की कमान संभालने वाले 12 वें भाजपा नेता हो,लेकिन पिछड़ा समाज से आकर प्रदेश की कमान संभालने वाले वह चौथे नेता हैं। इससे पूर्व कल्याण सिंह, ओम प्रकाश सिंह और विनय कटियार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रह चुके हैं। केशव के खिलाफ विरोधी यह प्रचार कर सकते हैं कि उनके ऊपर कई आपराधिक मुकदमें दर्ज हैं, मगर ऐसा करते समय विपक्ष को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि कहीं यह दांव उलटा न पड़ जाये। केशव पर ज्यादातर मुकदमें ऐसे दर्ज है जिनका संबंध उनके (भाजपा) वोट बैंक की मजबूती से जुड़ा है। एक वर्ग विशेष को खुश करने वाली सपा, बसपा सरकारों और कांग्रेस की कथित धर्मरिपेक्षता के खिलाफ उन्होंने कई बार सड़क पर आकर संघर्ष किया है। इस वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा और मुकदमें भी दर्ज हुए, लेकिन आज तक किसी मुकदमें में फैसला नहीं आ पाया है। इसलिये उन्हें गुनाहगारों की लिस्ट में नहीं खड़ा किया जा सकता है।
लेखक अजय कुमार उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
satyendra
April 10, 2016 at 4:45 am
भाजपा कुछ नया नहीं कर रही है। वही करने जा रही है जो आरएसएस अपनी स्थापना के समय से कर रहा है। जातीय और धार्मिक आधार पर समाज को बांटकर मलाई चाभना। यूपी में भी उसे यही गफलत है कि वह 2 कोइरी 4 बाभन पकड़़ जाएगी और लोग उसे वोट दे देंगे। ऐसा होता नहीं है।