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खबर छापने का यह तरीका टाइम्स ऑफ इंडिया के मुकाबले ज्यादा सही है!

संजय कुमार सिंह-

ये कैसा ‘पलटवार’ है?

राहुल गांधी अमेरिका में हैं और उससे संबंधित खबरें कल दिन भर सोशल मीडिया पर छाई रहीं पर मैं जो अखबार देखता हूं उनमें नवोदय टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और द टेलीग्राफ में ही इसकी खबरें हैं। (अमर उजाला का पहला पन्ना मैं रोज नहीं देखता क्योंकि पहले पन्ने पर विज्ञापन हो तो तीसरा पन्ना मुफ्त में नहीं खुलता है। और पैसे देकर सिर्फ पहला पन्ना महंगा लगता है।) इंडियन एक्सप्रेस में राहुल गांधी के अमेरिका में होने की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि राहुल गांधी अब सांसद तो नहीं ही हैं, कांग्रेस के पदाधिकारी भी नहीं हैं। लेकिन उनकी विदेश यात्रा से परेशानी आप जानते हैं और वहां उनका भाषण आज अखबारों में छपता उससे पहले ही सबको पता था और टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर का शीर्षक है, “अमेरिका में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को ‘नमूना’ कहा; भाजपा ने पलटवार किया”।

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नवोदय टाइम्स में इस खबर का शीर्षक है, “मोदी पर तंज : बगल में बैठकर भगवान को भी समझा सकते हैं’। अखबार ने दो कॉलम की इस खबर के साथ सिंगल कॉलम की एक खबर छापी है, “भाजपा का पलटवार”। मुझे लगता है कि खबर छापने का यह तरीका टाइम्स ऑफ इंडिया के मुकाबले ज्यादा सही है। अव्वल तो राहुल गांधी का दौरा कोई खबर नहीं है, चूंकि वे कुछ हैं ही नहीं इसलिए बिल्कुल नहीं है। लेकिन वहां वे कुछ महत्वपूर्ण बोलें तो जरूर खबर हो सकती है पर भाजपा ने पलटवार किया – यह पहले पन्ने की खबर कैसे होगी? पलटवार तो मूल खबर के बाद की चीज है और खबर बताये बिना पलटवार की चर्चा करना जरूरत से ज्यादा भक्ति है। इसलिए तरीका यही है जो नवोदय टाइम्स ने अपनाया है। इसमें पलटवार को आवश्यक प्रमुखता भी मिल गई है।

भाजपा की ओर से तथाकथित पलटवार प्रहलाद जोशी ने किया है और वह, ‘मिस्टर फर्जी गांधी’ को संबोधित है। हमेशा की तरह कांग्रेस ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की है। पलटवार के जवाब में राहुल गांधी ने जो कहा उसका समर्थन करने वाला वीडयो जरूर दिखा था याद नहीं किसका था। पर प्रसार में तो है। मैं बात संबोधन और पलटवार के वजन की कर रहा था। मुझे लगता है कि अगर किसी के बारे में अपमानजनक नहीं बोला जाना है (मीडिया को कम कम इस दिशा में प्रयास करना चाहिए) और प्रधानमंत्री यह गिनती रखते हैं कि उन्हें कितनी गालियां दी गईं तो यह तय होना चाहिए कि असली जोशी या गांधी कोई कैसे होता है और नकली गांधी का क्या मतलब है? पाठकों को यह बताया जाना चाहिए प्रहलाद जोशी कैसे असली जोशी हैं। उन्होंने पलटवार का विभाग संभवतः नया संभाला है इसलिए यह अभी ही हो जाना चाहिए।

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इससे असली नकली की पहचान वाला भाजपाई फॉर्मूला पता चल जाएगा और यह जाना जा सकेगा कि उस फॉर्मूला से राहुल गांधी नकली गांधी कैसे हैं। क्या महात्मा गांधी के साथ गांधी उपनाम खत्म हो जाना चाहिए था? जब राहुल गांधी और कांग्रेस को चिन्ता नहीं है तो एक आम पाठक के रूप में यह बहुत सामान्य मुद्दा है लेकिन 91 गालियों का हिसाब रखने वाले प्रधानमंत्री और सारे मोदी चोर क्यों होते हैं जैसे सवाल पर अदालत जाने वालों में असली कोई था कि नहीं या चोरों में सब असली थे कि नहीं यह तय है क्या? मीडिया जब फालतू और टाइमपास मुद्दा ही उठाता है तो ऐसे मुद्दे क्यों नहीं उठाता है? और इन मुद्दों से भी तो सरकारी पार्टी का महिमामंडन किया जा सकता है। कहां सब असली है और कहां नकली।

जब तब असली नकली का मुद्दा नहीं निपटता है तब तक क्या मैं यह बताना शुरू करूं कि मैं असली सिंह नहीं हूं। मनुष्यों के फ्लैट में रहता हूं और दो पैरों पर चलता हूं, मेरी पूंछ नहीं है आदि आदि। ये किस स्तर के लोग हैं?

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