डॉक्टर एमडी सिंह-
खुर पका मुंह पका… बदलते हुए इस मौसम में पशुओं का एक रोग आजकल तेजी से फैल रहा है वह है फुट एंड माउथ अर्थात खुर पका मुंह पका । इस रोग की चिकित्सा होम्योपैथिक औषधियों से सफलतापूर्वक की जा सकती है। कम खर्च और त्वरित लाभ के कारण पशुपालकों एवं पशुओं के लिए होम्योपैथी वरदान सिद्ध हो सकती है।
पर्याय- खुर पका मुंह पका को फुट एंड माउथ, एफ एम डी , मुहखुर, खुरहा, भजहा, एप्थस फीवर, खंगवा इत्यादि नामों से भी जाना जाता है।
परिचय- यह एक अत्यंत तेजी से फैलने वाला संक्रामक वायरल डिजीज है। जो गो वंशीय, मही वंशीय पशुओं के साथ-साथ भेड़ बकरी और सूअर को भी आक्रांत करता है। इसमें संक्रमित पशु के मुंह और खुर में छाले निकल आते हैं। यह छाले कभी-कभी थनों पर भी निकलते हैं। यह रोग पशुओं को अत्यंत दुर्बल बना देता है।किन्तु सूअरों के लिए यह प्राणघातक है । यह रोग कभी-कभी मनुष्यों को भी संक्रमित करते हुए पाया गया है।
कारक- इस रोग को फैलाने वाले एक फिल्टरेबुल वायरस के सात स्टेन दुनिया भर में सक्रिय हैं। जिनमें से ए, बीऔर सी यूरोपीय देशों एक, दो और तीन एशियाई देशों तथा चार अफ्रीकी देशों में खुर पका मुंह पका के कारक वायरस हैं । यह सभी करीब करीब एक तरह के ही लक्षण उत्पन्न करते हैं।
प्रसार काल एवं स्थान- खुर पका मुंह पका दुनिया भर में वसंत ऋतु एवं बरसात के मौसम में ज्यादा प्रभावी होता है।
संक्रमण प्रसार के माध्यम-
1- निकट संपर्क में रहने वाली पशुओं को यह लोग लाल एवं स्वास द्वारा फैलता है।
2- दूषित आहार, पशु चारा, पशु सेवकों की वस्त्र एवं दूषित हाथ नाद एवं एवं दूषित दूध के संपर्क में आने पर भी यह रोग एक से दूसरे पशु तक तेजी से संक्रमित होता है।
3- संक्रमित होकर ठीक हो चुके जानवर के त्वचा पर यह वायरस काफी दिनों तक जीवित रहता है। जिसके संपर्क में आने पर भी दूसरा स्वस्थ जानवर इस रोग से पीड़ित हो सकता है। ऐसी पशुओं के पीठ पर बैठने वाले पक्षी के पंजों द्वारा भी यह वायरस एक से दूसरों तक पहुंच सकता।
इनकुबेशन पीरियड – यह वह अवधि होती है जिसमें वायरस संक्रमित जानवर के शरीर में लक्षण उत्पन्न होने तक अपनी संख्या को बढ़ाता है। इस रोग में यह अवधि दो से दस दिन तक की है ।
लक्षण-
1- कंपकंपी के साथ तीव्र ज्वर 104°fसे 105°f अथर्व इससे भी ज्यादा।
2- खाने पीने की इच्छा का आंशिक अथवा पूरी तरह खत्म हो जाना।
3- मुंह, खुर एवं थनों पर छाले निकल आते हैं।
4- छालों के निकलने के बाद ज्वर खत्म हो जाता है।
5- मुंह से चपचपाहट की आवाज आती है।
6- प्रारंभ में मुंह के अंदर की म्यूकस में ब्रेन गर्म और लाल रहती है।
7- रोग लक्षण प्रारंभ होने की दो-तीन दिन के अंदर मुंह एवं होठों पर छाले निकल आते हैं जो एक-दो दिन में फटकर फैल जाते हैं ।
8- खुरों के नीचे ऊपर एवं बीच में छाले निकलने के कारण संक्रमित पशु लंगड़ाने लगता है।
9- सही देखभाल अथवा चिकित्सा की कमी की अवस्था में खुर सड़ने लगते हैं, उनमें कीड़े पड़ जाते हैं और कभी कभी वे उखड़ भी जाते हैं।
10- रोग की भयानक अवस्था में निमोनिया, प्लूरिसी, सेप्टीसीमिया एवं गर्भपात जैसे कंपनीकेशन पैदा हो सकते हैं।
11- दुधारू पशुओं की थनों पर भी छाले निकल आते हैं एवं दूध बनना अत्यंत कम हो जाता है।
12- शूकरों के मजल एवं स्नाउ पर छाले निकल आते हैं।
13- दुर्बलता अत्यधिक बढ़ जाती है।
विभेदक अध्ययन (डिफरेंशियल स्टडी)- किसी भी रोग के निदान के लिए समान लक्षण वाली व्याधियों का सही विभेद जानना जरूरी है।
A- रेंडरपेस्ट – इस रोग में भी जानवर लंगड़ा ने लगते हैं किंतु उनके मुंह में छाले नहीं पड़ते खूब पतली दस्त आने लगते हैं जो खुरपका मुंह पका में नहीं होते ।
B- लगनाला अथवा सेलेनियम पॉइजनिंग- इस व्याधि में भी पशुओं के खुर सड़कर गिर जाते हैं। किंतु यह रोग पूंछ के बाल झड़ने से शुरू होता है और पूंछ सड़कर गिर जाती है। जो खुर पका मुंह पका में नहीं है।
C-ऐप्थस(स्टोमेटाइटिस)- यह वयस्क पशुओं में नहीं होता एवं मुंह में छाले तो आते हैं किंतु खुरों पर नहीं आते ।
बचाव –
संक्रमण काल में पशुपालन अत्यंत सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता होती है। निम्न सावधानियां बरत कर हम खुर पका मुंह पका के संक्रमण से अपने पालतू पशुओं को बचा सकते हैं-
1- पशुओं के बाड़े की विशेष साफ सफाई की जाए।
2- नियमित सैनिटाइजेशन किया जाए।
3- पशुओं को दूर-दूर बांधा जाए।
4- एक नाद या बर्तन का प्रयोग न किया जाए।
5- पशु सेवक की अपने हाथों और वस्तुओं का सैनिटाइजेशन करके ही पशु आहार,चारा इत्यादि देने का कार्य करें ।
6-पीड़ित पशु को अन्य पशुओं से अलग कर दिया जाए।
7- पौष्टिक आहार लिया जाए।
8- टीकाकरण- संक्रमण फैलने की अवस्था में पहले से ही टीकाकरण करवा देना चाहिए।
होम्योपैथिक बचाव की औषधि- मैलेंड्रिनम 200 हफ्ते में एक बार। सभी पालतू पशुओं को पूरे संक्रमण काल में देते रहने से इस रोग से उन्हें बचाया जा सकता है। एम डी होम्यो लैब ने प्रोफिलैक्टो नामक एक कम्बीनेशन बनाया है जो पिछले 20 साल से कारगर सिद्ध हो रही है।
लाक्षणिक चिकित्सा – रोग हो जाने की अवस्था में होम्योपैथी की कई दवाएं अत्यंत कारगर हैं जिनमें एकोनाइट नैपलस 30,आर्स आयोडेटम 200,एसिड फ्लोर 200, ऐंटिम क्रुड 200, कैंथेरिस-30,एसिड नाइट्रिक 200,आर्सेनिक एल्बम 30,कारबोलिक एसिड 200,मर्क सोल 30,बोरैक्स 200,मैलेंड्रिनम 200 इत्यादि होम्योपैथिक औषधियों को होम्योपैथिक चिकित्सकों की राय से दिया जा सकता है।
वाह्य चिकित्सा- खुर पका मुंह पका मी मुंह और खुरों घाव हो जाते हैं । यदि उनकी साफ-सफाई ठीक से नहीं की गई तो सड़न की अवस्था में पशु स्वास्थ्य को बहुत नुकसान होगा।
1- पीड़ित पशु के मुंह और पैरों को 2% बोरिक एसिड के जलीय घोल से सुबह शाम धोना चाहिए।
2- घावों पर कपूर एवं कार्बोलिक एसिड लोशन का प्रयोग करना चाहिए।
3- फिटकरी के पानी से धोना चाहिए।
4- नीम के तेल के प्रयोग द्वारा मक्खियों से बचाना चाहिए।
5- होम्योपैथिक औषधियों कैलेंडुला क्यू दो भाग , हाइड्रेस्टिस क्यू एक भाग एवं इचिनेशिया क्यू एक भाग को चार भाग खौला कर ठंडा किए गए जल में मिलाकर लोशन बना लेना चाहिए। उससे संक्रमित पशु के आक्रांत अंगों को नियमित धुलाई करना चाहिए।
रोगमुक्त हुए पशु को स्वास्थ्यपरक पोषण देना अनिवार्य है।
डॉ एम डी सिंह
सी एम डी
एम डी होमियो लैब प्रा लिमिटेड महाराज गंज, गाजीपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
Farookh Ali
December 3, 2021 at 1:50 pm
Sir meri cow ke pero me chale ho gaye h aur muh se bhi daal tapak rahi h uchit ilaj batay sir please help me