Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

शुरू में मेरी खुशवंत सिंह के बारे में बहुत अच्छी राय नहीं थी!

उर्मिलेश-

विख्यात लेखक-संपादक खुशवंत सिंह का आज (2 फरवरी) जन्म दिन है. अचानक उनकी याद आई जब पता चला, 1915 में आज ही के दिन उनका जन्म हुआ था..उनका निधन 2014 में 20 मार्च को हुआ..

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेखक, संपादक, इतिहासकार, राजनयिक और सांसद के रूप में उनको ख्याति मिली. शुरू में मेरी उनके बारे में बहुत अच्छी राय नहीं थी. यह तब की बात है जब मैं इलाहाबाद में बी ए का छात्र था और देश में इमर्जेंसी लगी हुई थी. खुशवंत उन बड़े पत्रकारों/संपादकों में थे जिन्होंने इमर्जेंसी का समर्थन किया था. इसी वजह से उनके बारे में लंबे समय तक मेरी राय अच्छी नहीं रही.

उन दिनों मै सिर्फ उनके लेख और कॉलम ही पढता था. मुझे यह भी नहीं मालूम था कि वह A Train to Pakistan के लेखक भी हैं, जबकि यह किताब मेरे जन्म-वर्ष(1956 )ही प्रकाशित होकर देश और विदेश में बहुत लोकप्रिय हो चुकी थी. सन् 1978 में जब दिल्ली आकर JNU का छात्र बना तो कमल कॉम्प्लेक्स स्थित गीता बुक सेंटर से वह किताब खरीदी. पढ़ने के बाद खुशवंत सिंह नामक ‘इमर्जेंसी-समर्थक संपादक’ से जो भी गिला-शिकवा था, वह ख़त्म हो गया.

बाद के दिनों में उन्हें कई मौकों पर देखा और सुना भी. पर वन-टू-वन मिलने का मौका तब मिला, जब मैं राज्यसभा टेलीविजन का कार्यकारी संपादक था. मुलाकात बहुत दिलचस्प और खुशनुमा रही.

Advertisement. Scroll to continue reading.

निजी जीवन में भी वह बिंदास, निडर, हंसमुख और मस्तमौला थे. खुशवंत के चुटीले हास्य-व्यंग्य आधारित अखबारी कॉलम भी खूब लोकप्रिय हुए.

बेहद अमीर घर में पैदा हुए खुशवंत सिंह की शिक्षा-दीक्षा दिल्ली, लाहौर और लंदन हुई. अपनी पृष्ठभूमि के चलते वह बेहद कुलीन तो थे लेकिन ज्यादातर भारतीय कुलीनों की तरह उनमें सामंती ऐंठ और दंभ-भरी अशिष्टता नहीं थी. उनकी कुलीनता काफी कुछ यूरोप के उदार पूंजीवादी समाजों के अमीरों जैसी थी. एक बात जरूर कहनी होगी कि रहन-सहन की शैली भले यूरोपीय अमीरों जैसी थी पर उनके जीवन-मूल्य पूरी तरह देसी थे. पेड़ों-पौधों, पर्वतीय इलाकों की वनस्पतियों और पक्षियों के बारे में उनकी गहरी रुचि थी.

Advertisement. Scroll to continue reading.

भारतीय समाज और इतिहास की उनकी समझ बहुत अच्छी थी. अंग्रेजी के वह उन इक्का-दुक्का बड़े भारतीय संपादकों में थे, जो भारतीय समाज और शासकीय प्रतिष्ठानों पर ब्राह्मणवादी वर्चस्व की आलोचना से परहेज नहीं करते थे. उनके अंग्रेजी पाठक तो निश्चय ही इस बात से अच्छी तरह परिचित होंगे लेकिन हिंदी जगत में यह बात उतनी ज्ञात नहीं है.

हिन्दुत्ववादी राजनीति, मंदिर मस्जिद विवाद, मस्जिद ध्वंस और अन्य सांप्रदायिक विवादों व दंगों को उन्होंने सिरे से खारिज किया. गुजरात से केंद्रीय राजनीति की तरफ मुखातिब होते भाजपा नेता नरेंद्र मोदी के भी वह मुखर आलोचक थे. उनका निधन 2014 में मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही हो गया था. उनकी आखिरी किताब का शीर्षक स्वयं ही उसकी कथा कसता है: The End of India. खुशवंत सिंह ने सिख हिस्ट्री लिखकर इतिहास-लेखन के क्षेत्र में बडा योगदान दिया. उनकी किताब History of The Sikh दो खंडों में प्रकाशित है. इन दोनों में उन्होंने सन् 1469 से 1988 तक का सिख इतिहास लिखा है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहुत सारे लोग समझते रहे कि वह इंदिरा गांधी या कांग्रेस के खासमखास या कि चाटुकार थे पर यह सच नहीं है. हां, लंबे समय तक उनके समर्थक जरूर रहे. वैचारिक स्तर पर वह अपने आपको लिबरल और डेमोक्रेटिक विचारों का व्यक्ति मानते थे. शायद, इस नाते कांग्रेस और ऐसे अन्य दलों के नेताओं के साथ उनका संवाद और उठना-बैठना चलता रहता था. लेकिन सांप्रदायिकता जिसकी तरफ से हो, उस पर उन्होंने कभी समझौता नहीं किया. स्वर्ण मंदिर में सैन्य कार्रवाई-ऑपरेशन ब्लू स्टार के खिलाफ उन्होंने अपना पद्मभूषण का सरकारी सम्मान तक वापस कर दिया था.
आज के दौर में खुशवंत सिंह जैसी शख्सियत को निश्चय ही आदर और प्यार के साथ याद किया जाना चाहिए.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement