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आपको बरखा के लिए न सही, कपिल सिब्बल के विरोध के लिए न सही, पत्रकारों के शोषण पर तो बोलना ही चाहिए

किसी पत्रकार संगठन की उपयोगिता तब समझ में आती है जब कोई पत्रकार मुसीबत से जूझ रहा होता है, उसके साथ अन्याय होता है या उसका आर्थिक मानसिक शोषण किया जाता है.. अभी कुछ दिनों पहले की बात है.. फिल्म अभिनेत्री कंगना रानावत से एक पत्रकार वार्ता में किसी सवाल को लेकर पत्रकार से विवाद हो गया.. इसके जवाब में पत्रकारों ने न केवल उस पत्रकार वार्ता का बहिष्कार किया बल्कि फिल्मी खबरों से जुड़े एडिटर गिल्ड ने कंगना से जुड़ी किसी भी खबर को अब कवर करने से मना कर दिया.. अच्छा है.. फिल्मी सेलिब्रिटी हों, नेता हों या कोई खिलाड़ी अगर वह बदतमीजी करता है… तो उसका बहिष्कार करना ही श्रेयस्कर है. और इसमें कहीं कोई बुराई नहीं है…

बात पत्रकार संगठनों की उपयोगिता की है और हमने पहले ही बताया कि किसी पत्रकार संगठन की उपयोगिता तब समझ में आती है जब कोई पत्रकार मुसीबत से जुझ रहा होता है, उसके साथ अन्याय होता है या उसका आर्थिक मानसिक शोषण किया जाता है.. अब मुख्य मुद्दे पर आते हैं… लोकसभा 2019 के चुनावों से पहले कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने तिरंगा टीवी की शुरूआत की और वरिष्ठ पत्रकार बरखा दत्त सहित करीब दौ सौ पत्रकारों ने चैनल को जॉइन किया..

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लेकिन जैसा कि अब खबर है कि इन पत्रकारों को चार महीने से सैलरी नहीं दी गई है.. और मांगने पर उन्हें धमकी दी जा रही है.. भला बूरा कहा जा रहा है.. बरखा दत्त का दावा है कि सिब्बल की पत्नी ने उन्हें कुत्ता तक कहा है… तो इस तरह देखा जाए तो यह न केवल पत्रकार का आर्थिक मानसिक शोषण है बल्कि उनके साथ अन्याय भी किया जा रहा है.. अब भूमिका यहां पर अगर सबसे ज्यादा किसी की बनती है तो वह पत्रकारों संगठनों की, पत्रकारों की.. लेकिन कोई संगठन अब तक सामने आया हो या कांग्रेस की किसी भी खबर को कवर न करने का ऐलान किया हो, फिलहाल ऐसी खबर तो अभी नहीं है..

यहां तक कि इस पूरे मामले में लेफ्ट मीडिया (हालांकि पत्रकारों का अपना कोई लेफ्ट-राइट नहीं होता) में भी पूरी तरह से चुप्पी छाई हुई है.. मुझे नहीं मालूम इस चुप्पी की वजह में कोई मोदी एंगल होना है या नहीं है? और यहां मुझे उनके होने न होने से भी बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है.. बात केवल पत्रकारों के शोषण और तथाकथित पत्रकार संगठनों की भूमिका की हो रही है… वह कैसे समझ में आए, उनकी उपयोगिता कहां है, यह सवाल ज़रूर है… आपकी बरखा से भी वैचारिक मतभेद हो सकते हैं.. लेकिन एक बार इन संगठनों को उन 200 पत्रकारों के बारे में अवश्य सोचना चाहिए..

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अभी लोकसभा चुनावों के वक्त आप सबने देखा कि किस प्रकार पूण्य प्रसून वाजपेई और अभिसार पर हंगामा काटा गया था.. पत्रकारिता की हत्या बताई गई थी.. यहां तक की मीडिया को खुद मीडिया कर्मियों ने गालियों से नवाजा था.. फिर इस मामले में इतनी शांति क्यों है, यह समझ से परे हैं… आप सेफ जोन में हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि मुसीबत आप पर नहीं आएगी, वह किसी पर भी कभी भी आ सकती है.. आप बरखा के लिए न सही, कपिल के विरोध के लिए न सही.. पत्रकार और पत्रकारिता के लिए तो बोलना ही चाहिए.. अगर नहीं तो फिर इन तमाम वेलफेयर, जिला, राजधानी, राष्ट्रीय स्तर के पत्रकार संगठनों को बंद देना चाहिए.. इनकी कोई उपयोगिता नहीं है और ये पत्रकारों का वेलफेयर कर सकते हैं..

दीपक पाण्डेय

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2 Comments

2 Comments

  1. charan singh

    July 17, 2019 at 4:10 pm

    जो पत्रकार या पत्रकारों से जुड़ा संगठन पत्रकारों के उत्पीड़न के खिलाफ नहीं बोल सकता है वह बेकार है। मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई में कितने पत्रकार या संगठन साथ दे रहे हैं ? जो साथी विभिन्न मीङिया हाउस से निकाल दिये गये हैं उनका साथ कितने पत्रकार या संगठन दे रहे हैं ? कितने पत्रकार या संगठन कमजोर के पक्ष में खड़े हो रहे हैं ? कितने पत्रकार या संगठन अपने कनिष्ठों के मान-सम्मान और अधिकार की बात करते हैं। जवाब होगा नाम मात्र के । तो भाई ये सब ड्राम क्यों ? यदि किसी नामी गिरानी पत्रकार पर आंच आये तो नौटंकी होने लगी है और यदि पत्रकारिता के सम्मान की बात आती है तो सबको सांप सूंघ जाता है। जितने भी बड़े नाम देश में हैं बतायें ये लोग पत्रकारिता, देश और समाज के लिए क्या कर रहे हैं बस अपने लिए और अपने मालिकों के लिए बस।

  2. Abhimanyu

    July 22, 2019 at 6:07 pm

    सबसे पहले बरखा खुलकर सामने आए। तिरंगा में शामिल बाक़ी पत्रकार अपनी आपबीती साझा करें। हालाकि बरखा ने जिस तरह की पत्रकारिता की है उसके कारण व्यापक समर्थन शायद ही मिले पर पत्रकार को कुत्ता कहने वालो की बैंड बजाने के लिए पर्याप्त बल मिल जाएगा ।

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