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सियासत

हे केकेआर एण्ड कम्पनी, मोदी को अभिमन्यु मत समझो यार!

-एलएन शीतल-

‘केकेआर एण्ड कम्पनी’ ने मोदी को अभिमन्यु समझ लिया है. ‘केकेआर एण्ड कम्पनी’ बोले तो केजरीवाल-कन्हैया-राहुल और उनके हमख़याल संगी-साथियों का वह हुज़ूम, जिनमें धुर वामपन्थी, नक्सली और प्रकारान्तर में वे तमाम गुट शामिल हैं, जो ‘आज़ादी’ के लिए छटपटा रहे हैं. आज़ादी बोले तो ‘कुछ भी बोलने’ की आज़ादी और अगर ‘कुछ भी बोलने’ से काम न चले तो ‘कुछ भी करने’ की आज़ादी. अभिमन्यु बोले तो वही महाभारत वाला अभिमन्यु, जिसे चक्रव्यूह भेदना नहीं आता था. वह बेचारा अपनी इसी लाचारी की वजह से धूर्त कौरवों के अनैतिक सामूहिक हमले में वीरगति को प्राप्त हुआ था.

<p><span style="font-size: 8pt;">-एलएन शीतल-</span></p> <p>‘केकेआर एण्ड कम्पनी’ ने मोदी को अभिमन्यु समझ लिया है. ‘केकेआर एण्ड कम्पनी’ बोले तो केजरीवाल-कन्हैया-राहुल और उनके हमख़याल संगी-साथियों का वह हुज़ूम, जिनमें धुर वामपन्थी, नक्सली और प्रकारान्तर में वे तमाम गुट शामिल हैं, जो ‘आज़ादी’ के लिए छटपटा रहे हैं. आज़ादी बोले तो ‘कुछ भी बोलने’ की आज़ादी और अगर ‘कुछ भी बोलने’ से काम न चले तो ‘कुछ भी करने’ की आज़ादी. अभिमन्यु बोले तो वही महाभारत वाला अभिमन्यु, जिसे चक्रव्यूह भेदना नहीं आता था. वह बेचारा अपनी इसी लाचारी की वजह से धूर्त कौरवों के अनैतिक सामूहिक हमले में वीरगति को प्राप्त हुआ था.</p>

-एलएन शीतल-

‘केकेआर एण्ड कम्पनी’ ने मोदी को अभिमन्यु समझ लिया है. ‘केकेआर एण्ड कम्पनी’ बोले तो केजरीवाल-कन्हैया-राहुल और उनके हमख़याल संगी-साथियों का वह हुज़ूम, जिनमें धुर वामपन्थी, नक्सली और प्रकारान्तर में वे तमाम गुट शामिल हैं, जो ‘आज़ादी’ के लिए छटपटा रहे हैं. आज़ादी बोले तो ‘कुछ भी बोलने’ की आज़ादी और अगर ‘कुछ भी बोलने’ से काम न चले तो ‘कुछ भी करने’ की आज़ादी. अभिमन्यु बोले तो वही महाभारत वाला अभिमन्यु, जिसे चक्रव्यूह भेदना नहीं आता था. वह बेचारा अपनी इसी लाचारी की वजह से धूर्त कौरवों के अनैतिक सामूहिक हमले में वीरगति को प्राप्त हुआ था.

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तब कलयुग शुरू होने को था, और अब घोर कलयुग है. लेकिन ‘केकेआर एण्ड कम्पनी’ की यही सबसे बड़ी ग़लती है कि वह येन-केन-प्रकारेण ‘सत्ता-लक्ष्य’ पाने की हड़बड़ी में या ज़रूरत से ज़्यादा ‘काक-चातुर्य’ के कारण मोदी को अभिमन्यु समझ रही है. उन मोदी को, जिन्हें न केवल चक्र-व्यूह रचना आता है, बल्कि उसे भेदना भी बखूबी आता है. वही मोदी, जिनके ख़िलाफ़ एक वक़्त उनके अपने सियासी कुनबे सहित पूरी क़ायनात खड़ी थी. इसे समझने के लिए थोड़ी ही अक्ल की ज़रूरत है कि मोदी ने तब हार नहीं मानी थी, तो अब क्या मानेंगे!

यह जगजाहिर बात है कि कन्हैया उस ग़रीब तबक़े से ताल्लुक रखता है, जिसे दो वक़्त की रोटी भी बमुश्किल मयस्सर हो पाती है. पढ़ाई, और वह भी दिल्ली में–बहुत दूर की बात है. लेकिन वह लगभग मुफ़्त में जेएनयू नामक ‘वामपन्थी किले की प्राचीर’ से इस देश के प्रधानमन्त्री को ऐसे लताड़ रहा है, मानो प्रधानमन्त्री स्वतन्त्रता दिवस पर लालकिले की प्राचीर से देशद्रोही ताकतों या पाकिस्तान को ललकार रहे हों.

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कन्हैया जी! माना कि इस समय आपका जोश हिमालय से भी ज़्यादा ऊंचाई तक उछल रहा है, माना कि आपके भाषण की तारीफ़ के कशीदे काढ़ने में येचुरी-केजरी-नीतीश- दिग्विजय आदि तमाम सियासी दिग्गज बेतरह व्यस्त हैं, माना कि आप प. बंगाल में वाम-पंथियों के स्टार प्रचारक होंगे, लेकिन मेरे बन्धु! इस देश के मुझ जैसे लाखों आयकर-दाताओं की गाढ़ी कमाई का इस्तेमाल भोंपू बनने के लिए तो न करो यार! तुम्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि तुम्हें दिल्ली पढ़ने के लिए भेजा है, प्रधानमन्त्री को ललकारने के लिए नहीं.

अहसासे कमतरी के शिकार सियासतदां तो अपनी क्षुद्र सियासी खुदगर्जियों के चलते सही- ग़लत का फ़र्क भुला बैठे हैं, लेकिन तुम्हें तो यह नहीं ही भूलना चाहिए कि हमारे पैसे का इस्तेमाल तुम्हें पढ़ाई के लिए ही करना चाहिए, न कि ओवैसी की तरह ज़हर उगलने के लिए. और अगर तुम्हारे खून में सियासत इतनी ही ज़्यादा तेज़ दौड़ रही है तो अब मौका है. अपनी पार्टी के टिकट पर प. बंगाल में जाकर चुनाव लड़ लो, ताकि तुम्हें अपनी औकात का पता चल सके.

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वैसे, कन्हैया बाबू! तुम उसी पार्टी के कारिन्दे हो न, जिसने तमाम तरह की आज़ादियों को बेड़ियों में जकड़ने वाली इमरजेंसी का समर्थन किया था. और, आज तुम देश में ‘आज़ादी’ के लिए आकाश-पाताल एक करने पर उतारू हो. माना कि जेएनयू परिसर में देश-विरोधी नारे तुमने नहीं लगाये होंगे, लेकिन जो लोग नारे लगा रहे थे, उनका विरोध भी तो तुमने नहीं किया था. जबकि तुम छात्रों के विधिवत निर्वाचित नेता हो. तो क्या तुम कानूनन शरीकेजुर्म नहीं हुए?

तुम तो बन्धु, उस जेएनयू के ‘बौद्धिक रत्न’ हो, जिसे तुम्हारे हमराही ‘बुद्धिजीवियों की टकसाल’ बताते नहीं थक रहे. तो तुम्हें इतना तो मालूम होना ही चाहिए कि बात 21 या 31 फ़ीसद वोटों की नहीं है. बात बहुमत की है. वह बहुमत, जो इस सरकार को बाकायदा शानदार ढंग से हासिल हुआ है. तो क्या तुम या तुम्हारे वे सरपरस्त, जिनके तुम भोंपू बने इतरा रहे हो, अपनी इन बेमतलब बातों से उन करोड़ों मतदाताओं का अपमान नहीं कर रहे, जिन्होंने इस सरकार को बनाया है?

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लेखक एलएन शीतल वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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0 Comments

  1. Dilip

    March 6, 2016 at 12:08 pm

    Good writeup. Pls give yout email

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