मौत जाने कब कहां किस रूप में किसके पास आ जाए, कुछ पता नहीं. इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मास कम्युनिकेशन (IIMC) के प्रोफेसर केएम श्रीवास्तव ने कल दोपहर बाद लगभग साढ़े तीन बजे फेसबुक पर एक फोटो अपलोड किया. फोटो में उनके साथ आईआईएमसी जम्मू सेंटर के करीब आठ-नौ छात्र हैं. उन्होंने फोटो के कैप्शन में इस बात का जिक्र भी किया है, यूं- ”With students at IIMC Jammu Centre”.
केएम श्रीवास्तव के उपरोक्त आखिरी फोटोयुक्त स्टेटस पर पहले कमेंट को छोड़ कर बाकी सारे 11 कमेंट्स उनके छात्रों और उनके जानने वालों ने श्रद्धांजलि के लिखे हैं. आईआईएमसी के ही एक दूसरे प्रोफेसर हेमंत जोशी ने आज तड़के स्टेटस अपडेट कर अपने जानने वालों को सूचित किया कि केएम श्रीवास्तव का निधन हो गया. प्रोफेसर केएम श्रीवास्तव को बीते शाम हजरत निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पर अटैक आया और उन्हें बचाया नहीं जा सका. नीचे प्रोफेसर हेमंत जोशी का स्टेटस और उनके स्टेटस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ चुनिंदा कमेंट दिए जा रहे हैं.
Hemant Joshi : I have lost a good friend Prof KM Srivastava who collapsed at H. Nizamuddin railway station last evening and could not be revived. I have no word to describe what IIMC and its students have lost by his sudden demise!
Santosh Tewari : It’s a great loss to the entire communication educaton fraternity. Only last year I met him at a function organised by the Law Commission of India. He was a good friend of mine. At IIMC Dhenkanal, he brought out ‘Media Mind Occasional Papers’. I’m shocked by his sudden passing away.
Rajesh Kumar Jha : Shocked to hear this. Only the other day I was asking about him to a person from IIMC and he told me he was fine. Sad news indeed.
Sudhir Tiwari : विनम्र श्रद्धांजलि। अपने सर्विस टेन्योर में पांच बार IIMC गया हूँ और हर बार श्रीवास्तव जी से कुछ न कुछ सीखने को मिला।
Chaman Lal Jnu : So sad, he was my colleague for few years at Punjabi University Patiala, before he shifted to IIMC New Delhi. Pl convey my condolences to his family and freinds.
rajesh Badal
September 6, 2015 at 11:44 am
ख़ामोशी से चले गए के एम
——————————–
वैसे भी के एम ज़्यादा नहीं बोलते थे । हाँ जिनसे दिल मिल जाए तो खूब बातें करते थे । खबर मिली तो एकबारगी यक़ीन नहीं आया ।
क़रीब पच्चीस -तीस बरस पहले हम लोगों का भोपाल में परिचय हुआ और तब से लगातार संपर्क में थे । हो सकता है कई दिन तक न मिलें लेकिन जब
मिलते थे तो उसी गर्मजोशी के साथ । मिजाज़ से वो दफ़्तरी नहीं थे इसलिए काफी समय से परेशान थे । हाँ मूल्य आधारित पत्रकारिता और उसके सरोकारों
को लेकर हमेशा संवेदनशील रहे । पत्रकारिता पर लिखी उनकी किताबें इसकी मिसाल हैं । अफ़सोस एक शानदार धीर ,गंभीर,पत्रकार हमारे बीच से चला गया ।
राजेश बादल