विधानसभा अध्यक्ष ने जांच एजेंसियों को आरोप पत्र दाखिल करने की अनुमति नहीं दी इसलिए कोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति के मामलों से कृपा शंकर सिंह और उनके परिजनों को कर दिया बरी….
क्या आपको पता है कि मुम्बई के कांग्रेसी नेता और तत्कालीन एमएलए कृपा शंकर सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की जांच के बाद आरोप पत्र दाखिल करने के लिए जब कई केंद्रीय और राज्य एजेंसियों ने नियम पालन करते हुए विधानसभा अध्यक्ष से मंजूरी मांगी तो उन्होंने इनकार कर दिया। इसी के बाद कोर्ट ने कृपा शंकर समेत उनके सभी आरोपी परिजनों को बरी कर दिया।
धन्य हैं अपने देश के नेता लोग। इसी को राजनीति कहते हैं। महाराष्ट्र में अभी विपक्ष की सरकार है तब केस चलाने की अनुमति नहीं मिली। जब कृपा शंकर की अपनी सरकार होगी तो मामला वापस हो जाएगा।
उल्लेखनीय है कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व राज्यमंत्री कृपाशंकर सिंह के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने की अनुमति विधानसभा अध्यक्ष से न मिलने के कारण कोर्ट ने इन्हें करप्शन के ढेरों मामले में बरी कर दिया. वहीं कृपा के बरी होने के साथ ही उनकी पत्नी व बेटे को भी न्यायालय ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में दोषमुक्त करार दिया है.
कृपाशंकर सिंह जब मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष थे, उस समय उनके विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति मामले की शिकायत एंटी करप्शन ब्यूरो में दर्ज कराई गई थी. इस मामले के तूल पकड़ने के बाद कृपाशंकर सिंह को मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष पद छोडऩा पड़ा था और जांच के दौरान राजनीतिक हाशिए पर चले गए थे. लेकिन 14 फरवरी 2018 को सत्र न्यायालय ने एसीबी से कृपाशंकर की जांच करने से पहले सक्षम प्राधिकरण की मंजूरी न लिए जाने की वजह से पूरा मामला खारिज कर दिया था.
जिन दिनों करप्शन के चार्जेज की जांच एजेंसियां कर रहीं थीं, उन दिनों कृपाशंकर सिंह का बंगला और फ्लैट सील कर दिया गया था. मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच ने छापेमारी के बाद पहले उनका बंगला सील कर दिया था. तरंग नाम का कृपाशंकर का बंगला बांद्रा पश्चिम में है और इसमें उनके बेटे-बहू रहते थे. बंगले के बाद कृपाशंकर सिंह के हीरानंदानी की किंगस्टन बिल्डिंग में मौजूद फ्लैट को भी सील कर दिया गया. ये फ्लैट उनके दामाद राजू सिंह और बेटी सुनीता के नाम पर हैं. फ्लैट का नंबर 401 और 1006 हैं.
धोखाधड़ी, फरेब और जालसाजी के आरोपों से घिरे रहने वाले कृपाशंकर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट जाकर हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने की मांग की थी, जिसमें हाई कोर्ट ने कृपाशंकर सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उनकी संपत्ति जब्त करने का आदेश मुंबई पुलिस कमिश्नर को दिया था. उल्लेखनीय है कि आरटीआई एक्टिविस्ट संजय तिवारी की याचिका के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने ईडी, इनकम टैक्स और एंटी करप्शन ब्यूरो को कृपाशंकर सिंह और उनके बेटे नरेंद्र मोहन सिंह की जांच के लिए कहा था.
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसे डीबी रियलटी के प्रोमोटर शाहिद बलवा और कृपाशंकर सिंह के कनेक्शन का भी खुलासा हो चुका है. बलवा की कंपनी डीबी रियलटी ने कृपाशंकर सिंह के बेटे नरेंद्र मोहन सिंह के खाते में चार करोड़ रुपए जमा किए. ये पैसे जनवरी और फरवरी 2009 में नरेंद्र के सांताक्रूज के समता सहकारी बैंक के खाते में डाले गए. इस रकम में से दो करोड़ रुपये की पहली किश्त 1 जनवरी 2009 को नरेंद्र के खाते में डाली गई. एक करोड़ रुपये की दूसरी किश्त करीब एक महीने बाद दस फरवरी को खाते में डाली गई. वहीं एक करोड़ रुपये की ही तीसरी किश्त फरवरी 2009 में इसी खाते में जमा हुई. कृपा के बेटे नरेंद्र के खाते में मुंबई की कई कंस्ट्रक्शन कंपनियों ने भी समय समय पर पैसे जमा किए हैं.
कृपाशंकर सिंह पर दो-दो पैन नंबर रखने के भी आरोप हैं. कृपा शंकर सिंह ने 2004 और 2009 के विधानसभा चुनावों में जमा किए गए हलफनामे में अलग-अलग पैनकार्ड के नंबरों का उल्लेख किया है. चुनाव आयोग की वेबसाइट पर प्रकाशित सिंह के हलफनामे के अनुसार 2004 में पैन नंबर एवीएपीएस 1485एल है जबकि 2009 में उन्होंने अपना पैन नंबर सीएफवाईपीएस 989पी बताया है. नियमत: किसी व्यक्ति के पैन नंबर में परिवर्तन नहीं हो सकता. इससे यह साबित होता है कि उन्होंने जानबूझकर आयकर कानून का उल्लंघन किया है. अगर विभाग की गलती से किसी व्यक्ति को दो पैन नंबर जारी होते हैं तो एक नंबर लौटाना होता है.
कृपा शंकर सिंह का जीवन और करियर बिलकुल फिल्मी टाइप का है. वर्ष 1971 में जो शख्स मुंबई की सड़कों पर ठेले घसीट कर अपना गुजारा करता था वो एक रोज अरबपति बन जाता है. कृपाशंकर सिंह मुंबई कांग्रेस के सबसे मजबूत और साथ ही सबसे विवादित नेताओं में से एक रहे हैं. कृपाशंकर के खिलाफ भ्रष्ट तरीकों से करोडों की संपत्ति हासिल करने के बार बार आरोप लगे. 70 के दशक में उत्तर प्रदेश से यह शख्स जब मुंबई आया था तब उसे दो वक्त की रोटी हासिल करने के लिए भी खूब पसीना बहाना पड़ता था. उनकी फकीर से अमीर बनने की कहानी बडी दिलचस्प है.
कृपाशंकर सिंह जब दिसंबर 1971 में जौनपुर के सहोदरपुर गांव से मुंबई पहुंचे तब उनके पास न तो सिर छुपाने के लिए खुद को घर था और न ही रोजी रोटी के लिए कोई पुख्ता रोजगार. वे सब्जी बेचनेवालों को ठेले पर आलू, प्याज़ वगैरह लाद कर पहुंचते थे. दिनभर सड़क पर ठेला खींचने के बाद जो पैसे मिलते उसी से इनका पेट भरता. कुछ दिनों बाद यह रोशे इंडिया लिमिटेड नाम की कंपनी में बतौर मजदूर काम करने लगे.
इस बीच इनकी जान पहचान कांग्रेस के कुछ छुटभैए नेताओं से हो गई और वे राजनीतिक गतिविधियों में दिलचस्पी दिखाने लगे. कृपाशंकर को सियासत में पहली बड़ी क़ामयाबी मिली 1988 में जब वे महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमिटी के संगठन सचिव नियुक्त हुए. इसके बाद लगातार राजनीति में इनकी तरक्की होती गई. कृपाशंकर सिंह को महाराष्ट्र कांग्रेस का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया और 1994 में विधान परिषद के लिए इनका नामांकन हुआ. 1999, 2004 और 2009 में महाराष्ट्र का विधान सभा चुनाव भी लड़ा और हर बार जीते. 1999 की कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार में कृपाशंकर को महाराष्ट्र का गृहराज्यमंत्री बनाया गया. महाराष्ट्र की कांग्रेस पार्टी में कृपाशंकर एक दबंग उत्तर भारतीय नेता के रूप में उभरे.
कृपाशंकर सिंह का सियासी सफर जिस रफ्तार से चल रहा था उसने कइयों को चौंकाया. जानकारों के मुताबिक कृपाशंकर की कामियाबी का एक फार्मूला जो सभी को पता था वो था हमेशा सत्ताधारी लोगों के करीब रहना. कांग्रेस में कृपाशंकर ने गांधी परिवार और इस परिवार के करीबी बड़े काँग्रेसी नेताओं के बीच अच्छी पैठ बना रखी थी.
सियासी हलकों में माना जाता था कि कृपाशंकर सिंह कांग्रेस आलाकमान और महाराष्ट्र के कांग्रेसी नेताओं के बीच पुल का काम करते थे. एक ओर जहां कृपाशंकर सिंह का सियासी कद बढ रहा था तो वहीं दूसरी ओर उनकी संपत्ति भी बढ़ती ही जा रही थी. 1971 में जो शख्स बमुश्किल दो वक्त की रोटी जुटा पाता था वो 2011 तक अरबों में कैसे खेलने लगा. 30 साल के भीतर उसे कौनसी जादुई छडी मिल गई?
इसी सवाल के साथ आरटीआई कार्यकर्ता संजय तिवारी ने बॉम्बे हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की. जनहित याचिका में कृपाशंकर सिंह की संपत्ति से जुडे कागजात और उनके और उनके परिवार के बैंक अकाउट्स का ब्यौरा सौंपा गया. इस ब्यौरे के मुताबिक, कृपाशंकर सिंह और उनके परिजनों के नाम मुंबई के विलेपार्ले, बांद्रा, पवई और कुर्ला इलाकों में छह आलीशान फ्लैट्स हैं, जिनमें से कुछ डुप्लैक्स और कुछ त्रिप्लैक्स हैं. बांद्रा के कार्टर रोड़ पर एक तरंग नाम का बंगला हैं.
रिहायशी संपत्ति के अलावा कृपाशंकर और उनके परिजनों के पास पनवेल, जौनपुर, भांडुप और पवई इलाके में दुकानें हैं. इनके अलावा रत्नागिरी के वाडापेठ में 250 एकड़ जमीन भी कृपाशंकर सिंह के पास है. कृपाशंकर की संपत्ति की फेहरिश्त में बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लैक्स में दो बडे औफिस परिसर भी शामिल हैं जिनकी कीमती करोड़ों में है.
आरोप है कि कृपाशंकर सिंह ने अपनी अरबों की यह मिल्कियत भ्रष्टाचार और अपने सरकारी पदों का गलत इस्तेमाल करके हासिल की. अदालत के सामने भी यही सवाल था कि हर महीने महज 45 हजार रूपए की विधायक की तनखाह पाने वाला व्यक्ति अरबों की संपत्ति का मालिक कैसे बन गया. अदालत ने इस पूरे मामले में कृपाशंकर सिंह, उनकी पत्नी, बेटे नरेंद्रमोहन सिंह, बेटी अंकिता सिंह के बैंक खातों से हुए लेन देन पर सवाल खडे किए हैं और कहा कि इन्हें देख कर ऐसा लगता है कि कृपाशंकर सिंह को आय से ज्यादा संपत्ति हासिल करने में इन सभी रिश्तेदारों ने भी अहम भूमिका निभाई.
इस मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के एंटी करप्शन ब्यरो पर भी उंगली उठाते हुए कहा कि ब्यूरो ने ठीक तरह से अपनी तहकीकात नहीं की. लिहाजा अब यह जांच मुंबई के पुलिस कमिश्नर की देखरेख में होगी. यह जानना दिलचस्प होगा कि कांग्रेसी सरकार की पुलिस मुंबई के एक दिग्गज कांग्रेसी नेता के खिलाफ ईमानदारी से और बिना किसी दबाव के जांच कर पाती है या नहीं.
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