आराधना मुक्ति-
kuttey में बस एक चीज़ अच्छी लगी रेखा भारद्वाज की आवाज़ में फ़ैज़ की नज़्म “ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते” बाकी की फ़िल्म बकवास है।
शशि सिंह-
विशाल भारद्वाज के सिनेमा क्राफ़्ट की समझ का मैं मुरीद रहा हूँ लेकिन जब से हैदर फ़िल्म में मार्तंड मंदिर को शैतान के घर के रूप में प्रस्तुत करने की बात जानी तब से ये चित से उतर गये। बौद्धिक रूप से ये और इनके जैसे तमाम शानदार टेक्नीशियन सब के सब मवाद से भरे हैं। कला को साधने के लिए तप इन्होंने भी किया है, लेकिन असुरों की तरह। भोले-भंडारी नटराज तो दयालु हैं, सबको आशीर्वाद दे देते हैं। आसुरी प्रवृत्ति वाले उस आशीर्वाद से भस्मासुर बन जाते हैं। सिनेमा के क्राफ़्ट की समझ का आशीर्वाद पाए एक भस्मासुर यह भी हैं। हाहाकार मचा रखा था। सौभाग्य से इनके जैसे सारे भस्मासुर एक-एक करके अति आत्मविश्वास में अपने सिर पर हाथ रख रहे हैं। कुत्तई का आख़िर कहीं तो अंत होना ही है!