मजीठिया वेज बोर्ड की जांच के लिए लेबर इंस्पेक्टरों को दिए गए सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद श्रम विभाग से बहुत अच्छे की उम्मीद नहीं की जा सकती। क्योंकि अधिकतर लेबर इंस्पेक्टर मजीठिया वेज बोर्ड की एबीसीडी से बाकीफ नहीं हैं और न ही उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड के तहत वेतन की गणना करने का अनुभव व प्रशिक्षण दिया गया है। लिहाजा वे विवशता में आदेशों का पालन करने के लिए समाचार पत्रों की यूनिटों व कार्यालयों में तो जा रहे हैं, मगर वहां जाकर क्या करना है इस संबंध में उनके पास कोई गाइडलाइन नहीं है। हिमाचल प्रदेश के संबंध में तो ऐसा ही देखने को मिला है। बाकी प्रदेशों में भी शायद इससे अलग स्थिति नहीं होगी, क्योंकि केंद्र सरकार की ओर से इस संबंध में कोई ट्रेनिंग नहीं दी गई है।
इतना ही नहीं मेरे द्वारा एक साल पहले जब श्रम अधिकारी कांगड़ा स्थित धर्मशाला से आरटीआई के माध्यम से मजीठिया वेज बोर्ड के तहत सैलरी की गणना करके जानकारी मांगी गई थी, तो विभाग से जवाब मिला था कि श्रम विभाग सैलरी की गणना नहीं कर सकता। इसके बाद जब श्रम आयुक्त से अपील की गई तो यही जवाब वहां से भी मिला था। अपील के दौरान श्रमायुक्त ने कहा था कि आप वेतनमान न लागू करने की शिकायत कर सकते हैं, जब शिकायत की तो आज तक कोई नतीजा नहीं निकला। हालांकि यह बात जरूर पता चली कि विभाग के इंस्पेक्टर दोनों पक्षों के बयान दर्ज करने और फिर कोई समझौता न होने पर समझौता वार्ता असफल होने की रिपोर्ट ही बनाते हैं। उन्हें यह तक नहीं पता कि मजीठिया वेज बोर्ड के तहत किस समाचारपत्र की आय कितनी है और इसके कर्मचारी के कितना वेतन मिलना चाहिए।
फिलहाल लेबर इंस्पेक्टर समाचारपत्रों की यूनिटों में एचआर प्रभारी या अन्य अधिकारी को सूचित करके उनसे वेतन को लेकर जानकारी देने को कह रहे हैं। यह जानकारी कितनी सही है, इसकी जांच तभी हो पाएगी न जब लेबर इंस्पेक्टर को पता होगा कि किसी समाचारपत्र स्थापना में किस कर्मी को मजीठिया वेज बोर्ड के तहत कितना वेतनमान मिलना चाहिए था। इतना ही नहीं कई समाचारपत्र तो अभी तक मनीसाना वेतनमान ही नहीं दे रहे हैं। इसके चलते मजीठिया वेतनमान के लिए एग्जिस्टिंग एमोल्युमेंट़स यानि मौजूदा मेहनताना ही नहीं बन पा रहा है। इसमें 11 नवंबर 2011 को आपको पूर्व के वेज बोर्ड के तहत मिलने वाली बेसिक व डीए के अलावा बेसिक का 30 फीसदी अंतरिम राहत के तौर पर दिया गया लाभ जुडऩा है।
फिलहाल मेरा मत यही है कि जहां तक संभव हो सके, तो अपने क्षेत्र के लेबर इंस्पेक्टर सहित प्रदेश के लेबर कमीशनर को लिखित तौर पर अपनी-अपनी समाचारपत्र स्थापना की कुल आय व अपने पदों के अनुसार मजीठिया वेजबोर्ड के तहत बन रही सेलरी की जानकारी मुहैया करवाई जाए। इससे लेबर इंस्पेक्टर को अपनी रिपोर्ट बनाने में मदद मिलेगी। नहीं तो लेबर इंस्पेक्टर केवल श्रम विवादों की तरह ही दोनों पक्षों के दावों की रिपोर्ट बनाकर भिजवा देंगे। इससे न्यायालय में फिर से अस्पष्टता का माहौल बनेगा और मामला और लंबा लटक सकता है।
धर्मशाला में मजीठिया संघर्ष मंच की ओर से लेबर आफिसर को इस संबंध में एक पत्र लिखा गया है, जिसमें नोएडा के साथियों द्वारा मुहैया करवाई गई समाचार एजेंसी पीटीआई की एक कर्मचारी की सेलरी व एरियर की कैल्कुलेशन की प्रतियां लगई गई हैं। इसे लेबर कमीशनर के माध्यम से सभी इंस्पेक्टरों तक भिजवाने की भी मांग की जा रही है।
लेखक रविंद्र अग्रवाल हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. अमर उजाला समेत कई संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं. मजीठिया वेज बोर्ड के लिए अमर उजाला प्रबंधन से लंबी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. उनसे संपर्क : 9816103265, [email protected]
संलग्र:
1. मजीठिया वेज बोर्ड के तहत प्रारंभिक वेतन की गणना करने का तरीका ।
2. श्रम विभाग से आरटीआई से प्राप्त जानकारी जिसमें लिखा गया है कि लेबर विभाग शिकायतकर्ता की सेलरी की कैल्कुलेशन नहीं कर सकता।
3. श्रम अधिकारी धर्मशाला को पीटीआई में लागू सेलरी की गणना की सूचना से संबंधित अर्जी की प्रति।
madhavan
July 24, 2015 at 5:17 am
Well done Mr Ravinder Aggarwal. Wholehearted appreciation to Appellate Authority.
An English version of Hindi text would be much help. Pl consider.
BaSKAR
July 26, 2015 at 9:54 am
its simple, if even after this details form HP Lc if any press deny the wage board or offer a different DA it is understood by them as if Himachal Pradesh is in America