दिल्ली के उप मुख्यमंत्री Manish Sisodia ने 2015 में सरकार बनाने के बाद दिल्ली के शिक्षा क्षेत्र में जो काम किया है उस पर एक किताब लिखी है– ‘शिक्षा’। अंग्रेजी और हिन्दी में पेनग्विन इंडिया द्वारा प्रकशित 188 पेज की यह छोटी सी किताब मैं एक दिन में एक ब्रेक लेकर पढ़ गया। किताब पढ़ते हुए लगा कि चुनाव जीतना एक काम है और मंत्री बनकर काम करना उससे बहुत अलग। किताब में इस बात की चर्चा है, लोग कहते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में आप अच्छा काम जारी रखें इसके लिए जरूरी है कि आप सरकार में रहें। मनीष मानते और जानते हैं कि चुनाव जीतने के लिए अलग तरह के काम करने होते हैं और जनहित के काम चुनाव जीतने से अलग है। यह अलग बात है कि दिल्ली सरकार ने चुनाव जीतने वाले काम भी किए हैं पर फिलहाल मनीष सिसोदिया की किताब।
मनीष सिसोदिया सरकारी स्कूल के शिक्षक के बेटे हैं और शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रयोग किए हैं जो मील का पत्थर बन जाएंगे। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए मिशन बुनियाद जैसी योजना से लेकर हैप्पीनेस करीकुलम लाने का श्रेय मनीष सिसोदिया को है। दिल्ली के सरकारी स्कूलों की सूरत बदलने की दिशा में भी सिसोदिया ने जो काम किए हैं और कैसे कर पाए उसका वर्णन पुस्तक में है। पुस्तक में यह भी लिखा है कि मौजूदा स्थितियों में शिक्षा मंत्री बनने के लिए कोई अनुभव या समझ होना जरूरी नहीं है। कोई भी व्यक्ति जिसकी पार्टी को बहुमत मिल जाए शिक्षा मंत्री बन सकता है।
दो सौ पचास रुपए की यह किताब चुनाव प्रचार के लिए नहीं हो सकती है वरना इसकी कीमत 100 रुपए के अंदर होनी चाहिए थी पर 200 पेज एक दिन में पढ़ने लायक हो तो ढाई सौ रुपए कीमत ज्यादा भी नहीं है। दिल्ली के शिक्षा मंत्री के रूप में अपने अनुभव बताने वाली इस किताब में मनीष ने बताया है कि जीवन विद्या समूह के सोम त्यागी ने अमरकंटक में मिलने जाने पर उनसे कहा था, शिक्षा से दिल्ली का मानवीयकरण करो। इसी आधार पर उन्होंने कहा है कि मैं एक ऐसा सिस्टम बनाना चाहता हूं जिसमें किसी शहर में हिंसा में वृद्धि होने पर मुख्यमंत्री ना सिर्फ अपने पुलिस प्रमुख को दो दिन में हिंसा रोकने का निर्देश दे बल्कि अपने शिक्षा प्रमुख को ऐसी योजना बनाने का निर्देश भी दे जिससे लोगों की हिंसक प्रवृत्तियां दो साल में खत्म हो जाए।
सिसोदिया अपनी कोशिशों और इच्छा में कितने कामयाब होंगे यह बाद की बात है पर अभी उन्होंने चुनाव जीतने की प्राथमिकता को छोड़कर शिक्षा के क्षेत्र में काम किया है और आज के नेताओं को जानना चाहिए कि जनता उनमें अपना विश्वास जताती है तो कुछ काम करने के लिए – फर्जी प्रचार और आदर्शों से चुनाव जीतने की कोशिश में लगे रहने के लिए नहीं। दिल्ली में यह दावा करना कि परीक्षा परिणाम ही नहीं, स्कूल बिल्डिंग तक के मामले में सरकारी स्कूल निजी स्कूलों से अच्छे हैं बड़ी बात है। दूसरे राज्यों के मंत्रियों को यह किताब पढ़ना चाहिए। मैं उस दिन का इंतजार करूंगा जब दिल्ली के अस्पताल निजी अस्पतालों से बेहतर हो जाएंगे और नेता फिर से राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मरेंगे ना कि किसी निजी अस्पताल में जिसका नाम खबरों में इसलिए नहीं बताया जाता है कि प्रचार न हो जाए।
वरिष्ठ पत्रकार और सोशल मीडिया के चर्चित लेखक संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.