ब्रेन स्ट्रोक के कारण दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती वरिष्ठ पत्रकार और देशबंधु ग्रुप के प्रधान संपादक ललित सुरजन के निधन की सूचना आ रही है।
ललित सुरजन के परिजन राजीव रंजन श्रीवास्तव ने फेसबुक पर इस बाबत एक संदेश जारी किया है जो इस प्रकार है-
अत्यंत दुःखी मन से सूचित कर रहा हूँ कि देशबन्धु के प्रधान संपाद ललित सुरजन जी का आज रात 8:06 मिनट पर निधन हो गया।
ललित सुरजन के निधन की ख़बर से पत्रकार जगत शोक में डूब गया है।
अभी-अभी पता चला कि देशबंधु के प्रधान संपादक ललित सुरजन नहीं रहे। जनोन्मुखी पत्रकारिता का एक मजबूत पैरोकार चला गया। उन्हें अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि। -शम्भूनाथ शुक्ला
देशबंधु के प्रधान संपादक ललित सुरजन सर का जाना बहुत तकलीफदेह है, संपादक के तौर पर कुछ बचे लोगों में से वो एक लेकिन महत्वपूर्ण थे। सादर आदरांजलि। -विनय द्विवेदी
बहुत दुखदाई समाचार-अग्रणी पत्रकार व कवि ललित सुरजन नहीं रहे। उनका जाना समसामयिक हिंदी पत्रकारिता के एक बरगद का ढहना है। तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी ललित जी ने देशबंधु के माध्यम से जनपक्षीय पत्रकारिता की अलख जगाए रखी थी। नमन। -देवप्रिय अवस्थी
बीजेपी से जुड़े विचारक पंकज कुमार झा ने कुछ यूं श्रद्धांजलि दी-
पत्रकारिता के आचार्य का चले जाना… अंतर्मुखी होना कोई उतनी बुरी बात भी नहीं लेकिन मेरे मामले में यह बीमारी का रूप लेता जा रहा है। मनीषियों से भी मिलने-जुलने के प्रति आपराधिक अरुचि के कारण पता नहीं क्या-क्या खोता जा रहा हूं। न जाने कितना, पता नहीं क्या-क्या नुक़सान नहीं उठाया है। अपने इस रोग के कारण एक और विपन्नता का अहसास हो रहा अभी।
विपन्नता यह कि छत्तीसगढ़, ख़ास कर रायपुर में दशकों से रहते हुए लिखने-पढ़ने वाली नौकरी करते रहने के बावजूद अपने पास आदरणीय ललित सुरजन जी से मिल पाने की कोई स्मृति थाती नहीं है। कोई भी प्रत्यक्ष संस्मरण नहीं।
हम जैसे लोगों में यह क्षमता नहीं कि उनके अवदान पर कुछ लिख पायें। इसे लिखने के लिए भी पर्याप्त पात्रता की आवश्यकता होती है। पर अब, जब प्रदेश-देश की पत्रकारिता के इस चमकते नक्षत्र की स्मृति ही शेष है, अपने पास बताने के लिये बस दो-चार बार फ़ोन पर हुई बातचीत की यादें ही शेष हैं। हालांकि उतना भी नव सम्पादकों, पत्रकारों के लिये पढ़ना अब पाथेय ही होगा।
बात पहले दशक के उत्तरार्ध की होगी। वह दौर नक्सलवाद को लेकर गरमा-गरम बहसों का था। अपने जैसे नव लिक्खु भी कम जानकारी लेकिन अधिक उत्साह के साथ लगातार अख़बारों में लिख रहे था। प्रदेश में ज़ाहिर है ‘देशबंधु’ से ही निकले अधिकांश पत्रकार हैं, और उनका अन्नप्राशन वाम विचारों के साथ ही हुआ है, इस कारण अधिकांश लिखने वाले अप्रत्यक्ष अथवा प्रत्यक्ष तौर पर नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले ही थे। फिर भी अपने जैसे राष्ट्रवादी धारा वाले युवक को भी अन्य अख़बारों में तब ख़ूब जगह मिलती थी। हालांकि मन में ये तो था ही कि कभी ‘देशबंधु’ में छपूँ। पर विचारधारा की उलटबाँसी के कारण कभी वहां लेख भेजने हिम्मत नहीं हुई थी।
उन्हीं दिनों आ. सुरजन जी नक्सल संकट पर सिरीज़ लिख रहे थे। अख़बार में पहले पेज पर उनका सिरीज़ रोज़ प्रकाशित होता था। उसकी ख़ूब चर्चा होती थी। आश्चर्यजनक ढंग से सुरजन जी ने उस सिरीज़ की समाप्ति इन शब्दों के साथ की थी – ‘और अंत में युवा पत्रकार पंकज झा से आग्रह कि वे जब भी लिखें तो इस बात का ज़िक्र ज़रूर करें कि वे भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं।’
मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। झट फ़ोन लगाया उन्हें, अपना परिचय देकर मेरा ज़िक्र करने के लिये कृतज्ञता व्यक्त करते हुए अति विनम्रता से उन्हें बताया कि मैं अपना आलेख परिचय के साथ ही अख़बारों में भेजता हूं। अख़बार वाले उसका ज़िक्र नहीं करते हैं। लम्बी बात हुई। फिर सुरजन जी ने यह कहा कि वे और लिखना चाह रहे थे, फिर सोचा कि कभी निजी तौर पर बतायेंगे। उनके अनुसार- भाषा मेरी काफ़ी तल्ख़ होती है। बुरा लगता है पढ़ने में। अच्छे से अच्छे शब्दों में भी कड़ी बात की जा सकती है। मुझे ध्यान देना चाहिये। ख़ैर।
बातों के क्रम में यह भी आया कि अगर लिखूँगा तो ‘देशबंधु’ भी छापेगा। अगले एक-दो दिनों में ही एक लेख – नक्सलवाद : अब कारण नहीं, निवारण पर बात हो- लिख कर भेजा। जिसे अख़बार में अच्छा स्थान मिला। फिर अगला लेख भेजने पर उन्होंने प्रकाशित करने से मना किया। यह भी बताया कि एक तथ्य भी मैंने ग़लत लिखा है उसमें। लेकिन बड़ी बात यह कि लेख अस्वीकृत करने की सूचना भी उन्होंने ख़ुद फ़ोन कर दी।
ऐसा बड़प्पन, इस तरह का सौजन्य वास्तव में आज के सम्पादकों में दुर्लभ ही है। अंचल में पत्रकारिता के उस स्कूल से निकल कर प्रदेश-देश में स्थान बनाने वाले सम्पादकों-पत्रकारों में भी यह सौजन्यता अब अपवाद जैसा ही होगा। निश्चित ही हज़ारों लोगों के पास आ. ललित सुरजन जी को लेकर अनेक संस्मरण होंगे। मेरे हिस्से बस इतना ही आ पाया था। प्रदेश की पत्रकारिता के इस चलते-फिरते इतिहास का सानिध्य नहीं पा सकने के लिए सदा अफ़सोस रहेगा। सुरजन जी हमेशा प्रदेश में पत्रकारिता के आधार पुरुष के रूप में स्मरण किये जाते रहेंगे।
सादर प्रणाम। विनम्र श्रद्धांजलि।