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‘लल्लनटाप’ वाले ‘भड़ास’ को पढ़ा रहे शब्दों की मर्यादा का पाठ!

लल्लनटाप पोर्टल में कार्यरत आशीष मिश्रा ने भड़ास के खिलाफ फेसबुक पर अपनी भड़ास कुछ यूं निकाली है

Deepankar Patel : जिनके घर शीशे के होते हैं बाबू मोशाय…… वो पत्थरबाजी नहीं किया करते. खैर, लल्लनटॉप के पत्रकार अगर यही सलाह अपने ऑर्गेनाइजेशन को दें तो ज्यादा बेहतर है. खुद के यहां लल्लनटॉप में “लिंग चुराने वाली चुड़ैलों” की हेडलाइन बनती है. दूसरे के “लौंडिया” में भी सेक्स,अश्लीलता, नंगा-नाच दिख रहा है. सॉरी टू यू ब्रो, बट यूपी में, हरियाणा में लौंडा-लौंडिया बोला जाना बहुत ही कॉमन है. चौराहे पर भी एक्सेप्टेंस है इस शब्द को. हां चौराहे पर “लिंग” बोल दिये तो उधार समोसा भी नहीं मिलेगा.

अच्छी बात है आपने सवाल उठाया, लौंडिया शब्द का जहां से ओरिजिन हुआ है, इस्लाम से सम्भवत:, वहां इसका इस्तेमाल अलग अर्थ में होता था, गुलाम स्त्रियों के लिए, जिन्हें बेचा-खरीदा जाता था. कई हदीसों के अनुवाद में ये शब्द आते हैं. भारतीय उपमहाद्वीप में इस शब्द के अर्थ ने अपना स्वरूप बदल लिया. लल्लनटॉप की हेडलाइन में ही इस शब्द का इस्तेमाल किया गया है.

मैं Yashwant को डिफेंड नहीं कर रहा. मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि अगर ये शब्द फॉर्मल नहीं है तो अब अश्लील भी नहीं है. पियूष मिश्रा अपने गाने में इसका इस्तेमाल करते हैं … “अपनी आजादी तो भैया……”

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सेंसर बोर्ड को भी इस शब्द से आपत्ति नहीं है, कितनी बार फिल्मों में आता है. तो आई एम नॉट क्रिटिसाइजिंग यू … बट यू नो ब्रो .. तुमने एक्स्ट्रा “चटकी” दिखा दी है. बाकी तुम्हारे लिए एक एक्जाम्पल है…. समझ सकते हो तो समझो…..

युवा मीडिया विश्लेषक दीपांकर पटेल की एफबी वॉल से.

देखें कुछ प्रतिक्रियाएं-

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Pranesh Tiwari यहां तुम बचाव मोड में! यही कोई हार्डकोर मीडिया संस्थान करता तो तुम खुद ज्ञान देते। कंफ्यूज मत रहो ब्रो.. क्लियर रहो।

Avinish Kumar ब्रो समस्या तो यही है न ब्रो. आपके घर में बाढ़ आई रहेगी तो आप दूसरे कै मोहल्ले में जाकर राहत बचाव नहीं न करेंगे. सोशल एक्टिविस्ट बनना अच्छी बात है बट पहले अपना घर देखना चाहिए.

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Pranesh Tiwari लल्लनटॉप का बचाव नहीं किया है मैंने। इस शब्द पर भी दीपांकर का टेक देखा। अगर आप नेशनल पोर्टल हैं तो किसी क्षेत्र विशेष का सामान्य शब्द यूज करने से बचना चाहिए। मेरी टिप्पणी से इन स्क्रीनशॉट्स या लल्लनटॉप का कोई लेना-देना नहीं है।

Avinish Kumar हां, लेकिन इसकी आलोचना कौन कर रहा है? जो खुद कामुकता की खबर परोसकर हिट लेता है. आप भड़ास की खबर पर सर्जरी कर दीजिए और मुझे यह मालूम है कि आपका भड़ास पर लिखे विरोधी लेख को भी Yashwant Singh छापेंगे, लेकिन अपना पुराना गुस्सा निकालने के लिए टार्गेट करना सही है? जो लिख रहा है खुद गाली गलौज करता है. उसके एडिटर ‘पेल दो’ जैसे शब्द का उपयोग करता है. उसका वीडियो यूट्यूब पर डालता है और खुद दूसरों को गालीबाज का तमगा देता है. पहले खुद के घर झांकना चाहिए. बाकी भड़ास वाले को भी शब्दों का ख्याल रखना चाहिए. क्रेडिबिलिटी का सवाल है.

Pranesh Tiwari फिर मुद्दा नहीं समझे। बात लल्लनटॉप तक रहती तो कोई बात नहीं.. इसपर मुझे कुछ कहना भी नहीं। दीपांकर ने जो शब्द ज्ञान दिया है, यहां भड़ास का बचाव करते हुए, सही नहीं लगता। पॉइंट शब्द को जस्टीफाई करना है।

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Avinish Kumar इसको जस्टिफाई नहीं मानना चाहिए. दीपांकर दा ने उसका काउंटर किया है न कि बचाव भड़ास का. किसी एक का विरोध करना किसी दूसरे का सपोर्ट करना कैसे हो सकता है?

Pranesh Tiwari पोस्ट पढ़ो पहले अच्छे से। दो हिस्से हैं। पहले में लल्लनटॉप को लताड़ा गया है, और दूसरे में लौंडिया शब्द को जस्टीफाई किया गया है। सपोर्ट और विरोध शब्दों का प्रयोग मैंने नहीं किया, फिर समझो। दीपांकर ने भड़ास की ओर से लिखे गए शब्द को जस्टीफाई किया है, जो सही नहीं लगता।

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Deepankar Patel लौंडिया शब्द सामान्यत: U/A फिल्मों में भी सेंसर नहीं होता है, तो इसे अश्लील और नंगा नाच वगैरह कहना ठीक नहीं लगा मुझे. भड़ास की हेडलाइन की आलोचना सकारात्मक,नकारात्मक इफेक्ट क्रिएट करने के सन्दर्भ में हो सकती है. लेकिन वो आलोचना भाई साहब ने की ही नहीं है. मैंने भड़ास की हेडलाइन का बचाव नहीं किया है. मैंने सिर्फ ये कहा है ये अब आम सन्दर्भ में अश्लील शब्द नहीं रहा है. इतनी सी बात है. ये आलोचना की आलोचना है इसे किसी का समर्थन ना समझा जाय.

Pranesh Tiwari ऐसे कई शब्द हैं दीपांकर.. क्षेत्रीय साइट होती तो चलता.. सबके लिए अब भी ये शब्द कॉमन नहीं है और अखरता है। बाकी हेडलाइन को लेकर की गई टिप्पणी से मैं सहमत बिल्कुल नहीं हूं। तुमसे असहमति केवल इस शब्द को लेकर कही गई बात को लेकर है, किसी आलोचना को नहीं।

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अपूर्व भारद्वाज इंजीनियरिंग की डिग्री करके पत्रकारिता करेंगे तो हर जगह लॉजिक ही ढूंढेंगे

Manav Tyagi हमारे पश्चिमी यूपी में लौंडियाँ शब्द खूब धड़ल्ले से यूज होता है और किसी गाली की तरह नही बल्कि सम्बोधन के लिए. लड़के को लौंडा और लड़की को लौंडियाँ.

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Praveen Singh भड़ास तो अपना व्यूज नहीं छापता कभी। वहां इंडस्ट्री के लोग ही कभी नाम छिपाकर कभी अपने नाम से लिखते हैं। एक बात तो सही है कि चौराहे पर लिंग कह दिए तो लोग दूसरे गोला का पक्का समझ लेंगे।

Ankul Kaushik अपने मथुरा, हाथरस, अलीगढ़ और एटा की तरफ यह भाषा आम है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि लैंडिया शब्द गाली है। बाकी सबके अपने विचार….

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Yashwant Singh अब लल्लनटाप वाले ज्ञान पेलेंगे, इससे बड़ा जोक कुछ भी नहीं हो सकता. अरे यार अंग्रेजी में वूमेनाइजर शब्द है, उसे हिंदी में अगर लौंडियाबाजी लिख दिया गया तो क्या दिक्कत? ये अंग्रेजों के झांट के बाल टाइप लोग हैं जो अपनी भाषा अपनी बोली को लिखने पढ़ने में नाक भौं सिकोड़ते हैं. लौंडिया शब्द हरियाणा मेरठ में बाप अपनी बेटी को कहता है. लौंडिया माने लड़की, स्त्री ही होता है. इसका कोई अन्य अर्थ नहीं. पता नहीं क्यों ये पगलेट ज्ञान पेलने पर आमादा है 🙂 लगे रहो चिलांडु

Ashish Mishra यार Yashwant तू आज भी कल जितना ही बेहूदा आदमी होगा न… तकिए में मुंह रख के अपनी बेवकूफी पर रोता है रात को?

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Kumod Yadav पाद के कितने प्रकार होते हैं… लिखने वाले लल्लनटाप के लोग आज ज्ञान पेल रहे हैं

Nehal Rizvi ‘लौंडियाबाज़ी’ शब्द से जिन्हें दिक्कत है, उन्हीं लोगों ने बीजेपी नेता के वायरल सेक्स वीडियो को कितना अच्छा डिफेंड कर सही बताया था. मतलब लल्लनटॉप वालों की बीवियों को उनकी सहमति से कोई दूसरा लिबरल किसी आफिस के बाथरूम में ठीक करे तो ये लोगों को कोई दिक्कत नहीं होगी, क्योंकि बहुत बड़े लिबरल है ये लोग और प्राइवेसी और सहमति का मामला है

Ashish Mishra बाथरूम में बीवियां ठीक ठीक करते देखने का संस्कार मम्मी-पापा ने सिखाया या फेसबुक के गुरुओं ने। गिरो पर इतना भी न गिरो कि परवरिश लज़ा जाए।

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Ketan Mishra अब लल्लनटॉप वाले ज्ञान देंगे भाषा पर?

Ashish Mishra गरीबों का अगला आर्टिकल आ रहा होगा, भाषा पर लल्लनटॉप के पत्रकार ने की लल्लनटॉप की आलोचना 🙂

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Neha Amrev बहुत सारे फालतू के हिंदी न्यूज़ वेबसाइट्स हैं जो भड़कीले, उत्तेजक कंटेट परोसते हैं और मोरल पोलिसिंग भी करते हैं

ALtaf Ahmad मिश्रा जी आपको ऐक्सपोज कर दिया।।

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Ashish Mishra हां, तभी तुम गरीब Bio तक कॉपी किये बैठे हो।

Sumer Singh Rathore बीमार, बहुत बीमार हैं ये लल्लनटॉप वाले। भाषा पर ज्ञान देंगे अब।

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निखत सिंह आशीष गलती किया है.. आपने स्वीकार करें…!

Ashish Mishra LOL

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Saurav Shekhar अगर आप यशवंत सिंह के लिये कह रहे हैं कि “बिना टैलेंट, बिना मेहनत की इच्छा के आगे ना बढ़ पाने वाले कुंठित लोग हैं” तो बात ही खत्म है…

Swati Mishra ‘लौंडियों’ में अद्भुत टैलेंट है. लिखने वाले को इस टुच्चई के लिए अपनी उंगलियां चूम लेनी चाहिए. पत्रकारिता कहकर और बाकी मीडिया को उपदेश देकर अपनी दुकान चलाने वाले को इस हेडिंग पर गर्व होना ही चाहिए.

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Ashish Mishra मेरा ये मानना है कि ऐसे जाहिलों की उंगलियां चूमना कम ही होगा, इनके भक्त चाहें तो इनका मंदिर बना लेते हैं, धूप-बत्ती में पत्रकारिता जलेगी। ज्ञानीजन सुबह-शाम ऐसे जाहिलों का चरणामृत भी लेते रहें, जाहिलियत को मूढ़ता के साथ डिफेंड किया जा रहा है, इसके आगे बात ही खत्म है।

Saurav Shekhar हेडिंग सही है या वो शब्द सही ऐसा मैंने नहीं कहा है…. यशवंत सिंह कई अग्रणी मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं… पत्रकारिता में काम कर रहे अधिकतर लोग इन्हें जानते हैं…. तो ये कह देना की आगे ना बढ़ पाने की वजह से कुंठा है ये तो सरासर गलत है सर…. आपने भड़ास4मीडिया को भी खारिज कर दिया जब की कई ऐसी खबरें होती है जिसे छापने की हिम्मत सिर्फ़ भड़ास दिखाता है ये बात जगजाहिर है…. जब नोएडा में कोई पत्रकार पुलिस के हाथों पीट जाता है तब वो खबर सबसे प्रमुखता से इसी वेबसाइट में छपती है…. रही बात भक्त बनने की तो मीडिया में चमचई और भक्ति नौकरी पाने के लिए लोग करते हैं और यशवंत सिंह उस स्थिति में तो नहीं है….

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Ashish Mishra ये उचक्के, उठाईगीर और दलाल लोग हैं, इनकी कोई क्रेडिबिलिटी नहीं है, इनकी ख़बरों की कोई क्रेडिबिलिटी नहीं है, ज़्यादातर ख़बरें लगाई-बुझाई होती हैं, ऐसी ख़बरें होती हैं जो एक पक्षीय होती हैं, अमुक से तमुक का क्या चल रहा है टाइप गली छाप टुच्चई होती है, आपको ये ‘हिम्मत’ नज़र आती है तो आपकी बुद्धि को नमन है, सबकी अपनी फ्रीक्वेंसी होती है, आपकी फ्रीक्वेंसी औसत बुद्धि से आगे निकल चुकी होगी शायद। आपको फलाना सिंह बनने की स्थिति बड़ी पूजनीय लग रही हैं, आप बनें, बस बुद्धि की फ्रीक्वेंसी सही जगह आएगी तो ये रियलाइज होगा कि ये कितना मूर्ख आदमी था और उससे बड़े मूर्ख आप हैं।

Kamal Bhaskranand Pant “लौंडियों के मोबाइल में ” इसमे लौंडियों शब्द सच मे अच्छा नही लग रहा, वैसे हर शब्द को जस्टिफाई किया जा सकता है, मगर यह हेडिंग सच में बड़ी अजीब लग रही है, जैसे लड़की को अपमानित कर रही हो, सीधे सीधे। देशी शब्दों का प्रयोग लल्लनटॉप भी बहुत करता है, उनमे भी काफी शब्द अजीब होते हैं, लेकिन यह लल्लनटॉप की ऑफीशियल साइट नही है। यहां लल्लनटॉप को मेंशन करके अपनेआप को सही साबित किया जा रहा है बस।

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Aditya Navodit आह! Ashish Mishra ‘वरिष्ठ पत्रकार’ की ‘भड़ास’ का शिकार हुआ लल्लनटॉप का पत्रकार… इस हेडलाइन से स्टोरी करवा दें?

Yashwant Singh लौंडियाबाजी और लौंडिया शब्द हेडिंग में लगाने पर कई लोगों को मिर्ची लग गई. ये साले अंग्रेजों की औलाद आखिर अपनी देसज बोलियों से इतनी घृणा क्यों करते हैं… असल में ये शब्द पूरब की तरफ आम नहीं है. लौंडा लौंडिया थोड़े नकारात्मक भाव में पूरब में बोला जाता है. पर मैं मेरठ रहा हूं. हरियाणा के लोगों से संवाद होता रहता है. वहां लौंडे लौंडिया ही बोलते हैं बेटे बेटियों को… बोली के हर इलाके में अलग रूप होते हैं… उसकी संवेदना को समझना पहचानना चाहिए. लौंडा में लौंड़ा नहीं होता, लौंडा माने बेटा, युवक, बच्चा होता है.. पर जो लोग लौंडा को लौंड़ा समझते हैं उनसे बहस क्या करना…

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Shiivaani Kulshresthhaa सर लोगों ने लौडियां शब्द पर ध्यान दिया लेकिन न्यूज पर नही. लौडियां शब्द हमारे बृज क्षेत्र में बोला जाता हैं। यहान हमारे यहां सामान्य शब्द हैं।

Madhu Sudan सड़ चुके समाज के दिल में एक साजिशन ये भर दिया गया है कि भोजपुरी या हरियाणा मेरठ की बोली भाषा असंसदीय है… जाहिलों की भाषा है… ऐसा लोगो के दिमाग में भरा जा चुका है… हम कुछ लोग आपस में भोजपुरी में बात करते मुंबई के मराठा रूठ होटल के रेस्टोरेंट में गए…. चूंकि हम भोजपुरी में आपस में बात कर रहे थे इसलिए हमें टेबल नहीं मिला… इसके लिए हमें लड़ना पड़ा…

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Shivendra Singh Yadav पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लड़के लड़कियों को सामान्यतः लौंडा लौंडिया ही बोलते हैं।

Avanindr Singh Aman इ चिल्लाण्डु टाइप के लोग है, इनका काम थोड़े में पॉपुलर होना होता है, शब्दो का ज्ञान नहीं चले आते है टिप्पणीकार बनने, इसको कहिए जरा बनारस घूम जाए… पेलने का अर्थ भी पता चल जाएगा..

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Praveen Singh सब मंत्र की तरह फकिंग फकिंग करते हैं …लेकिन लौंडियाबाज लिख देने पर अक्ल देने लगते हैं.

Vikas Pandey यशवंत भैया कुछ लोग अपने विचार से पूरी दुनिया को जबरिया लपेटने के फिराक मे रहते है,लौंडिया शब्द पश्चिमी उत्तरप्रदेश,पूर्वी उत्तरप्रदेश राजस्थान,हरियाणा पंजाब मे घरों मे बोली जाती हैऔर तो और पुराने सांस्कृतिक शहर इलाहाबाद मे खूब बोली जाती है गलत अर्थ नही लगाया जाता देशज शब्द है।अपनी सांस्कृतिक विचार हम थोप नही सकते किसी व्यक्ति या समाज पर एक बात और ऐसे तथाकथित सलीके वाले हनी ट्रैप मे खूब पकडे गये है।

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Nitin Thakur पश्चिमी यूपी में इस शब्द का बुरा नहीं माना जाता। चूंकि हमारा संबंध पूरी तरह इसी बेल्ट से है इसलिए बताते चलें कि लौंडा या लौंडिया आम तौर पर लड़का या लड़की के लिए प्रयोग होता है लेकिन जो आपत्ति उठी है संभवत: वो आपत्तिकर्ता के क्षेत्र विशेष में इस शब्द को अनुचित मानने से आई है। आप इसका जवाब संयत होकर दे सकते थे, आप क्यों इतने अनियंत्रित हो गए ये नहीं समझ सका यशवंत भाई।

Rakesh Sarna नितिन जी भड़ासी बाबा से पंगा लिया उन्होंने, वो भी बिना तथ्य के। औऱ तो और, लल्लनटॉप शब्द स्वयं भी कोई अच्छे आशय से हमारे समाज में नही बोला जाता। फिर इस शब्द का प्रयोग करके एक संस्थान को चलाना भी गलत कहा जा सकता है। बात बस ये है कि – सूप बोलो सो बोलो, इहाँ चलनी ऊ बोलिस।

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Abhijit Singh उनकी खुद की भाषा ऐसी है मानो पोर्न वेबसाइट हो..दूसरों को ज्ञान पेलने चले हैं।

Vikash Mishra चिलांडुओ काम ही भौ करना है ।

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Sampurnanand Dubey अपने यहां भी “ई लवन्डा के बार बार कहलीं कि कुकुरन के मुँहे मत लगल कर।” बोलल जाला।

Akhil Kumar Shukla ये साला खुद ही लौंडियाबाज लग रहा है अब अंधे को काना कहोगे तो वह भड़केगा ही।।

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Sarthak Jain ये टट्टी जैसी शक्ल वाला आपको लंपट कह रहा है हद है ।

सैय्यद शकील अहमद अमा मियां ये किसके लवंडे हैं…जो लौंडो को लेकर लौंडियों जैसे नखरे कर रहे हैं

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निखत सिंह यशवंत भाई इनको सूजी की ज़रूरत है…!

Ashish Rai Kaushik लौंडिया या लौड़ा तो अपने भाषा में लड़का लड़की होता है। अनपढ़ चुटिए कुछ अलग समझते हैं

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Kapil Bhardwaj वो भाषा की खूबसूरती को घटाना चाहते हैं।

Ashok Thapliyal बेझिझक इस्तेमाल कीजिए।

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Adv Deepak Vidrohi लौंडी और लौंडिया को जेंडर से जोड़ देते है। लौंडिया या ऐसे अन्य शब्द उन को बुरे लगते है जो दूसरों को नैतिक मूल्यों और जेंडर का पाठ पढ़ाने लगे है।

Ashok Dhawan मोदी के साथ साथ आज दल्ले भी पहुंचे हैं, दलाली करने के लिए।

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Ravindra Ranjan हिंदीभाषियों में यह दोगलापन सबसे ज्यादा है।

Ravi Kumar Singh उनके भी विरोध का सम्मान होना चाहिए सर,

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Neeti Vashisht If this news belong to opposition party I am sure these bastards would have declared you best journalist of the year. But unfortunately this news belong to the leaders of that party which is headed by their Abbu Jaan. So that is the reason Mirchi bahoot tez lagg gayi Londiya word se…

Ram Murti Rai ना, बहस को विषयांतर देना चाहते हैं वो लोग। मेरे जैसे आदमी को तो बिल्कुल खराब नहीं लगा

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Manish Chandra Mishra सही पेले हैं…अब लल्लनटॉप वाले बताएंगे क्या सही क्या गलत।

अमित मीरा सिंह रघुवंशी भैया लल्लनटॉप खुद देशी भाषा के उपर अपना व्यापार खड़ा किया है तो दूसरों को कैसे बोल सकता है और सबसे बड़ी बात इनके अंदर किलसी है दुसरो से सेंटर ऑफ अट्रैक्शन में रहना.

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Abu Faisal Arman Ami एकदम सही जवाब कोई गलत शब्द नहीं है हरियाणा और वेस्ट उप में बोला जाता है

Uttam Agrawal मेरे मुंह से लौंडे लौंडियाँ निकलता है लेकिन कई लोग टोक देते हैं उनको इस शब्द में बाज़ार नज़र आता है

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Ram Janam Yadav लौंडिया ,लौंडा और लंवडा तो बचपन से ही सुनते आए थे आज एक और नाम मिला “चिलांडु” ।

Rajiv Tiwari रामपुर, मुरादाबाद के इलाके में भी बोले जाते हैं ये शब्द।

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SK Mukherjee “मधु जाल” शब्द से शायद ना मिर्ची लगती।

Yashwant Singh सही पकड़े हैं 😀 चूतियों की कमी नहीं है देश में… ये साले मां के पेट से निकलते ही सोच लेते हैं कि उन्हें अंतिम ज्ञान मिल गया है और बाकी जो हैं सब चूतिया हैं …. 😀

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SK Mukherjee चिकने पन्नों वाली पत्रिका में कभी हिंदी के मूर्धन्य लेखक स्व: मनोहर श्याम जोशी जी अपने लेखों में यदा-कदा बिकनी को चोली-चड्ढी लिखा करते थे।

Singhasan Chauhan देसज बोली से घृणा नहीं है, दरअसल यही भक्ति है, उन्हें भक्त मां लिया जाय

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Anil Pandey इन शब्दों पर एक पूरी पोस्ट लिख चुका हूं। पश्चिमी यूपी ,हरियाणा ,दिल्ली ,पंजाब की तरफ इन शब्दों का प्रयोग आम बोलचाल में किया जाता है।इन शब्दों का प्रयोग अपने तरफ भी होता है लेकिन वो कमजोरों के लड़कियों लड़कों के लिए बड़कों द्वारा किया जाता है। लवंडा शब्द के अर्थ से तो अवगत हो ही ।

Amit Rajpoot आपने इसका प्रयोग किया है, बधाई के पात्र हैं

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अजित सिंह तोमर बिल्कुल सही कहा सर। हमारी तरफ (मुजफ्फरनगर,शामली) लड़की को लौंडिया/लौंडी बोलते हैं।

Amit Rajpoot लौंडिया, मोड़ी और छोरी आदि बेहद चलनसार शब्द हैं। जिनको इसमें आपत्ति है उनको जल्दी भ्रूण से निकल आना चाहिए, इतनी देर तक वहीं बने रहना ठीक नहीं है। दिमाग़ के अंधे हैं ऐसे लोग।

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Manish Raj अभी गौर से देखे हैं।ई आशीष मिश्रा है कौन।बहुत अंग्रेजी झाड़ रहा है।उसको हमरा भड़ासी इंजेक्शन की जरूरत है।

Hemant Malviya “भोले भाले नेता अफसरों का का हनी ट्रेप” ये हनी ट्रेप शब्द ये क्या होता

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Gaurav Nirmal Sharma ये शब्द मर्यादित नही लगते है,एक सभ्य समाज में, बाकी आप वरिष्ट है,तो आप को क्या समझाये

Manish Raj बिहार में तो लौंडा नाच होता है।लौंडिया ताली बजाती है।तक धिं धिं तक धिं धिं तक।

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Vikash Rishi पश्चिम उत्तर प्रदेश में लौंडे लौंडिया जैसे शब्द आम हैं। ये ठीक वैसे ही इस्तेमाल किये जाते हैं जैसे कि पंजाब में कुड़ी मुंडा, गुजरात में छोकरा छोकरी राजस्थान में लाली लाला , हरियाणा में छोरा छोरी आंध्र प्रदेश में पोटा पोट्टी छत्तीसगढ़ में मोड़ा मोड़ी आदि।

Sourabh Sachan मालवा मध्यप्रदेश में लौंडे लौंडी कहना गाली माना जाता है। इसका अर्थ यहां वैश्या के बच्चों के संबोधन के रूप में लिया जाता है।

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Neeraj Tiwari माफ़ कर दीजिए। नादान है नालायक। आपकी महिमा को नहीं जान सका।

Sheebu Nigam जवाब सुन के निकल लिया होगा भैया

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2 Comments

2 Comments

  1. Vijay

    September 25, 2019 at 10:31 am

    लल्लनटॉप निहायती निचले स्तर की एक वेबसाइट है इसके लिए योग्यता भी निचले स्तर की ही चाहिए, अक्सर इसके नौकरी के विज्ञापन निकलते हैं तो उनमें भाषा के निम्न स्तर पर जाकर खिलवाड़ करने की योग्यता अनिवार्य होती है।

  2. Sanjay Sharma

    September 25, 2019 at 12:35 pm

    इस बहस को थोड़ा आगे ले जाना चाहिए। .. दिल्ली का मीडिया औरत और महिला में फर्क क्यों करता है, आखिर क्या वजह होती है एक दिन हेडलाइन यह बनती है ” महिला की दिनदहाड़े हत्या”, और दूसरे दिन एक अन्य हेडलाइन होती है कि ” औरत को मौत के घात उतारा ” .मीडिया की नज़र में ” औरत और महिला” में क्या बुनियादी फर्क है, किसी साथी का जवाब आने पर स्पष्ट करूँगा
    sanjay sharma

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