पत्रकार तुशिता पटेल बोलीं- तुझसे अदालत में भी निपट लेंगे अकबर! प्रिया रमानी ने लिखा है कि अकबर ने कुछ “किया” नहीं। इसी आधार पर अकबर कह रहे हैं कि कुछ किया नहीं तो यह सब (मीटू) काहे का। अवमानना हो गई। प्रिया रमानी के खिलाफ अदालत में अवमानना का मामला दाखिल किए जाने से नया मामला सामने आना नहीं रुका है। अब तुशिता पटेल ने अपनी आपबीती लिखी है।
शीर्षक है, “अकबर साब झूठ बोलना बंद कीजिए। आपने मेरा भी यौन उत्पीड़न किया है। आपकी धमकियां हमें चुप नहीं करा पाएंगी”। स्क्रॉल डॉट इन पर प्रकाशित तुशिता की आप बीती का दूसरा शीर्षक है, “अगर मैं अब भी न बोलूं तो मुझे आपके अपराधों में शामिल होने का अफसोस रहेगा”। मीटू अभिय़ान के तहत विदेश राज्य मंत्री के खिलाफ अभी तक 16 महिलाएं आरोप लगा चुकी हैं। मुकदमा दायर करने के अगले ही दिन दो और मामले सामने आए। इनमें एक स्वाति गौतम और दूसरी तुशिता पटेल हैं।
पत्रकार तुशिता पटेल ने दावा किया कि अकबर ने उन्हें होटल के कमरे में बुलाया था। जब उन्होंने दरवाजा खोला तो वह सिर्फ अंडरवियर में थे। उन्होंने आरोप लगाया कि हैदराबाद में डेक्कन क्रॉनिकल के साथ काम करने के दौरान भी अकबर ने दो बार उनका यौन उत्पीड़न किया। वहीं, क्विंट के लिए लिखने वाली महिला कारोबारी स्वाति गौतम ने दावा किया कि कोलकाता में पढ़ाई के दौरान वह अकबर को सेंट जेवियर कॉलेज के कार्यक्रम का न्योता देने गई थी। उस दौरान होटल के कमरे में अकबर सिर्फ बाथरोब में उनसे मिले और परेशान करने वाली बातें कहीं।
तुशिता पटेल ने लिखा है कि 1992 में वो कलकत्ता से प्रकाशित होने वाले टेलीग्राफ में ट्रेनी थीं। तब अकबर पत्रकारिता छोड़कर राजनीति में आ गए थे और कलकत्ता आए हुए थे। मेरे सहकर्मियों का एक समूह आपसे मिलने के लिए आपके होटल जा रहा था। मुझसे पूछा गया कि मैं एमजे अकबर से मिलना चाहती हूं? (उस समय) कौन नहीं चाहता? जरूर। मैं भी साथ गई। मेरी आपसे मुलाकात हुई। वह एक अच्छी शाम रही। उस दिन के बाद आपने मेरा फोन नंबर मालूम कर लिया (किसी और से) तथा मुझे कॉल करना शुरू कर दिया। निरंतर। और कहने लगे कि मैं आपसे आपके होटल में आकर मिलूं।
यह हमेशा काम से संबंधित किसी चर्चा के मामूली बहाने से होता था। आपके कई प्रस्तावों को नकारने की कोशिशों के बाद आपने आखिरकार मुझे का दिया। खुद से यह कहकर कि पुराने फैशन की नहीं बने रहना चाहिए मैंने आपके दरवाजे की घंटी बजाई। “आपने दरवाजा खोला सिर्फ अधो वस्त्र (अंडरगारमेंट) में थे। मैं दरवाजे पर खड़ी रही, घबड़ाई, डरी और अजीब महसूस करती। आप वहीं खड़े रहे अतिविशिष्ट पुरुष की तरह, मेरे डरने से खुश। मैं अंदर गई और डर के मारे तब तक बकबकाती रही जब आखिरकार आपने बाथरोब नहीं डाल लिया। आप उसके बारे में क्या कहेंगे? क्या 22 साल की किसी लड़की के लिए अधनंगी हालत में दरावाजा खोलना नैतिकता के आपके पैमाने पर सही है? क्या यह कुछ “करना” नहीं है? मेरी कल्पना में आप ऐसे ही हैं। उसके बाद आपके बारे में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले विदेश राज्य मंत्री के रूप में कल्पना करना थोड़ा मुश्किल है।
तुशिता ने आगे लिखा है, 1993 में आप डेक्कन क्रोनिकल के प्रमुख संपादक थे, मैं सीनियर सब एडिटर थी। आप शहर में आए और मेरे पन्नों पर चर्चा करने के लिए मुझे होटल में बुलाया। मैं थोड़ी लेट थी (मुझे अपना काम पूरा करना था)। जब मैं आपके कमरे में पहुंची तो आप नाराज, चाय पी रहे थे और खराब मूड में थे। देर से पहुंचने और मेरे काम को लेकर आप मुझ पर बिगड़ने लगे। मैं कुछ बोलना चाह रही थी। अचानक आप उठे, मुझे अपनी जकड़ में लिया और जोर से चूम लिया – बासी चाय की आपके मुंह की बदबू और कांटे जैसी आपकी मूंछ अभी भी मेरे मस्तिष्क में दर्ज है।
मैं तड़पती हुई निकल भागी और सड़क पर पहुंचने तक दौड़ती रही, उछलकर एक ऑटो में बैठी और रोने लगी। सहानुभूति रखने वाले किसी अनजान व्यक्ति द्वारा चलाए जा रहे एक खुले ऑटो में रोने का सुकून था। अगले दिन सुबह मैं ऑफिस आई एक कोने में छिपने और अपना पेज (काम) पूरा करने की कोशिश की। …. जब आप मुझे तलाश नहीं पाए तो आपने मुझे ढूंढ़ने के लिए लोगों को लगाया। एक समय, किसी ने मुझे देख लिया औऱ बताया कि अकबर साब तुम्हे तलाश रहे हैं।
अनिष्ट की आशंका से डरी-सहमी मैं इंतजार करती रही कि आपकी फ्लाइट का समय हो जाए और आपसे ऑफिस की सबसे खुली जगहों में एक – रीसेप्शन पर मिली। आपने कहा, “तुम कहां गायब हो गई थी? मैं तुम्हे ढूंढ़ रहा था – तुम्हारे पेज पर बात करनी है।” और इसके साथ ही आपने मुझे खाली कांफ्रेंस रूप में ले गए, फिर से जकड़ लिया और चूमा। हारी, अपमानित, दुख और आंसू से विवेकशून्य, मैं उस कमरे में रोती रही। मैंने आपके बिल्डिंग से बाहर जाने का इंतजार किया, बाथरूम में गई, चेहरा धोया और अपना पेज बनाने का काम पूरा किया।
इसके बाद तुशिता ने लिखा है, इसलिए झूठ बोलना छोड़िए। एशियन एज में प्लाईवुड औऱ कांच के अपने केबिन के बारे में झूठ बोलना छोड़िए। गजाला वहाब उस केबिन में सताई गई अकेली महिला नहीं हैं। ऐसी पीड़िताएं भी हैं जिन्हें आपने अपनी कामुकता और संपादकी से तकरीबन तकरीबन तोड़ दिया और नष्ट कर दिया। वे नाराज भी हैं। वे सामने आएंगी। और कानून की धमकी बहुत हुई। हम आपसे अदालत में भी निपट सकते हैं। हमारे जीवन के सबसे मुश्किल समय में जिस बहनापा और एकजुटता ने हमें साथ रखा वह बाहर आएगा क्योंकि आप अब भी निर्लज्ज बने हुए हैं। अब हम भ्रमित, संघर्ष पीड़ित या असुरक्षित नहीं हैं । बोलने का हमारा समय अब आया है – जब हमें कोई सुने उससे पहले शिकायत दर्ज कराने के लिए थाने भागने की जरूरत नहीं है। आप जानते हैं कि हम कौन हैं। जब आप हमें बैरीकड्स पर देखेंगे तो पहचान लेंगे। कुछ पछतावा दिखाइए। थोड़ी मदद लीजिए।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की टिप्पणी, शीर्षक और अनुवाद। संपर्क : [email protected]