सत्येंद्र पी एस-
एलजीबीटी के बाद सेक्स के 4 और वेराइटी के बारे में 2010 के आसपास मुझे पता चला। इसमें ट्रांसजेंडर यानी हिजड़ा को मैं हमेशा से इस ग्रुप से अलग करना चाहता था और मुझे यह फील होता था कि उनकी समस्या जेन्यून है। भारत में उनकी समस्या इसलिए और भी भयावह हो जाती है क्योंकि जिसके घर में ऐसा बच्चा पैदा होता है, वह भीख मांगने के लिए छोड़ देता है जो बहुत बड़ी त्रासदी है। मैं हमेशा इसके पक्ष में रहा हूँ कि इसे दंडनीय अपराध घोषित किया जाए। ट्रांसजेंडर लोग केवल बच्चे नहीं पैदा कर सकते, इसके अलावा वह हर कार्य करने में सक्षम होते हैं, जो एक सामान्य मनुष्य कर सकता है। ऐसे में बच्चे को पैदा होते ट्रांसजेंडर के हवाले करने को संगीन अपराध घोषित किया जाना चाहिए।
बहरहाल ट्रांसजेंडर के अलावा जिन अन्य सात किस्मों के बारे में मैंने पढ़ा, वह मुझे मानसिक विकृति या मनोरोग लगता था। मुझे 10 साल पहले रीना सैटिन जी ने फेसबुक पर समझाया कि वह कोई मनोरोग नहीं बल्कि सामान्य स्थिति है। इसके अलावा तमाम जनवादी लोग मेरे ऊपर टूट पड़े कि आप गलत हैं। मुझे यही फील होता था कि यह दिल्ली के खाए अघाए अमीरों के चोचले हैं कि सामान्य प्रचलित तरीके से सेक्स न करके मुंह में, पिछवाड़े में सेक्स किया जाए। इसी टेस्ट के मुताबिक इन लोगों ने गे, लेस्बियन, बाई सेक्सुवल, क्वीर और जाने कौन कौन सा नाम रखा है और क्या क्या टेस्ट विकसित कर रखा है…
मैंने बुझे मन से मॉन लिया कि मैं गलत हूँ। भाजपा सरकार केंद्र में आई तो आरएसएस से जुड़े एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट से आर्डर करा लिया कि पुरुष-पुरुष या महिला-महिला का विवाह अवैध नहीं है। तमाम लोग बल्लियों उछले और तमाम लोग यह सोचकर दुखी हो गए कि अगर उनकी लड़की किसी लड़की या लड़का किसी लड़के को लेकर आ गया कि हमें इससे विवाह करना है तो क्या होगा!
अभी पिछले 7 साल में करीब 5 साल आपदा का दौर रहा भारत में। आपदा का यह दौर अभी भी जारी है। इन एलजीबीटी का हर 3 महीने में जंतर मंतर पर होने वाला प्रदर्शन, उनकी खबरें बन्द हैं। क्या 377 ही उनकी समस्या थी, जो मोदी सरकार ने खतम कर दी! या सचमुच में इस आर्थिक, साम्प्रदायिक और जातीय घृणा, स्वास्थ्य आपदा के इस दौर में सेक्स के अजीबोगरीब टेस्ट को लेकर लोगो की रुचि खत्म हो गई?
दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने दो जून को अमेरिकी एक्टिविस्ट फ्रैंक केमिनी को अपना डूडल समर्पित किया. फ्रैंक ने समलैंगिकता को सम्मान और उनके अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ी और अब समलैंगिकता को उसकी पहचान मिल चुकी है. ऐसे में हर साल जून का महीना ‘प्राइड मंथ’ के रूप मनाया जाता है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ‘प्राइड मंथ’ को लेकर लोगों को शुभकामनाएं दी हैं. राहुल ने इंस्टाग्राम पर रेनबो फ्लैग शेयर करते हुए लिखा, “शांतिपूर्ण व्यक्तिगत विकल्पों का सम्मान किया जाना चाहिए. प्यार प्यार है।”
सीरियसली। अब मैं ऐसे लोगों से मिलना चाहता हूँ जो एलजीबीक्यू वगैरा हैं। मुझे बात करनी है। क्या ऐसे दिन आ सकते हैं जब हमको इतना सुकून हो कि इन विषयों पर सोचा जा सके?
हम तो इस सब के बारे में कभी सोचते ही नहीं थे कि और भी गम हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा। पहली बार जब इस पर लिखना पड़ा तो खोजने लगे कि यह क्या बला मेरे सिर पर पड़ गई। आठों वेराइटी के बारे में गूगल पर खोजा की यह कौन कौन सी किस्में हैं। अभी तो आठों वेराइटी का नाम भी भूल गया और भी आइडिया नहीं है कि इन 8 वैरिएंट के अलावा भाइयों बहनों ने कोई नई किस्म भी विकसित कर ली है या नहीं । लेकिन अब शिद्दत से मन कर रहा है कि इस तरह की भी खबरें आनी चाहिए। अब तो लू,अलाव, ठंड तक खतम कर दी महामहिम ने। गर्मी में लस्सी छाछ पना, लू से मौतें यह सब दुर्लभ चीजें हो चुकी हैं। इन पर अब चर्चा नहीं होती।
कुछ पाठकों की टिप्पणियाँ-
-मेरा खयाल से दो लोगों का सहमति से कोई भी सम्बंध से किसी तीसरे को दर्द नही होना चाहिये. जिन्हे दो लोगो के सम्बंध से दर्द होता है मानसिक रोगी वो हैं. या फिर इसे भी नार्मल कह सकते हैं क्योंकि दो लोगो के सम्बंध देखकर (पॉर्न) उत्तेजित होने को को भी हम नार्मल ही कहते हैं तो दो लोगो के सम्बंध से दर्द महसूस करने वाले भी कुछ तो हैं ही. इनके अंदर कुछ गया भी नही फिर भी दर्द से तडप उठते हैं. शायद इनके दिल या दिमाग मे भी एक हाइमन होता है जो पीढियो की ट्रेनिंग से काफी मजबूत हो गया है इसलिये उस पर दबाव पडता है तो ये बेचारे छटपटा जाते हैं. साइंस को इस समस्या पर रिसर्च करना चाहिये कि जब इनके अंदर कुछ गया नही तो ये काहे दर्द से तडप उठते हैं? सिर्फ देखकर फैंटसाइज करने से इनके दिल दिमाग के हाइमन मे इतना तेज दर्द काहे उठता है. ये रिसर्च एक पीढीगत बीमारी के विरुद्ध संघर्ष मे मानवता की सेवा होगी.
-भिन्न सेक्स प्रकृति वाले लोगों को बार बार इनकी सेक्स के प्रति रुचि या तरीके के ही सन्दर्भ में व्याख्यायित करना भी बेहद शर्मनाक है। ये लोग जबरदस्त कलाकार, डॉक्टर, पायलट, अभिनेता, नेता , सैनिक कुछ भी हो सकते हैं। सेक्स इनके लिए भी जिंदगी का एक भाग है, इनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व या पहचान नही।
-समलैंगिकता जैविक और अजैविक दोनों होती है। अधिकतर मामलों में समलैंगिकता एक दोषपूर्ण सामाजिक अधिगम है, जो एक खास तरह के परिवेश और वातावरण से निर्मित होती है। स्त्री आंदोलन के इतिहास में एक ऐसा दौर भी रहा है, जब लेस्बियनिज्म एक नारा बनकर उभरा था। स्त्रीवादी चिंतकों का एक बड़ा तबका पुरुषों पर यौन निर्भरता खत्म करना जरूरी समझने लगा था। पुराने ऐतिहासिक विवरणों में पुरुष समलैंगिकता किन्हीं विशेष परिस्थितियों में एक वैकल्पिक यौन क्रियाकलाप के रूप में स्वीकृत थी। जैसे युद्ध आदि में।
-आश्चर्य की आप आज तक इन लोगो से नही मिले जबकि यह लोग हमारे परिवार , समाज से ही आते हैं, किसी दूसरे ग्रह से नही। हाँ हमारे -आपके व्यहवार की वजह से बहुत सारे लोग खुल के हम से नही मिलते, जैसे अगर आपके मन मे किसी समाज विशेष के प्रति दुर्भावना हो तो उस समाज का व्यक्ति आप को कोई मूल्य नही देगा, आपको अवॉयड करेगा और मस्त रहेगा। इसी तरह इन लोगों का भी जीवन भी मस्त गुजर रहा है, आपके और हमारे वावजूद।
– ट्रांसजेंडर कुदरती है, बकिया तो गुरु खोजी लोग कुछ अद्भुत हमेशा से करते रहे हैं। किं आश्चर्यम! हिजड़ा ट्रांसजेंडर को कहते हैं। बाकी सब सेक्स के तरीके हैं। मेरे मुहल्ले में LGBTQ कहिए या हिजड़ा कहिए रहते है रोज सबेरे सजधज कर बाहर अपनी गाड़ी से जाते है देर शाम लौटते है। इसमें कई ऐसे है जो परिवार वाले है उनके बच्चे है पर वे घर छोड़कर हिजड़ो के साथ रहते है। कई तो सेक्स चेंज करा लिए है । यह पूर्वांचल में हर जगह मिल रहे है सेक्स बदलवाकर सेक्स ऑर्गन कटवाकर इस मंडली में शामिल हो जाते है।
-सच में मुझे भिन्न सेक्स रुचि वाले लोग नहीं मिले। एक बार किसी लड़के ने मुझे सेक्स का ऑफर फेसबुक पर दिया। तो मैं डर गया कि यह क्या हो रहा है? ऐसे ही गे होते हैं क्या।
उसका स्क्रीनशॉट लेकर मैंने फेसबुक पर साझा कर दिया और उसने अपनी फेसबुक आईडी ही डिएक्टिवेट कर दी थी।
-चिकित्सकों के मुताबिक यह मनोविकार नहीं है। नॉर्मल दिनों में सीपी का रात दस बजे के बाद चक्कर लगा लीजिए। खासतौर खादी भवन के अपोजिट ब्लॉक में। बहुत सारे मिल जाएँगे। नॉर्मल लोग होते हैं। डरने की जरुरत नहीं!
सौजन्य-फ़ेसबुक