उत्तर प्रदेश पत्रकारों से भरा-पूरा राज्य है. यहां पत्रकारों की थोक उपलब्धता प्रचूर मात्रा में है. यहां प्रत्येक जिले में मेड़-पगडंडी, खेत-खलिहान, गली-मोहल्ले से लगायत नेशनल-इंटरनेशनल स्तर तक के झऊआ भर पत्रकार कहीं भी आसानी पाये जा सकते हैं. पाठक और दर्शक की भले ही कमी हो जाये, लेकिन किसी भी जिले में पत्रकारों की कोई कमी नहीं है. कक्षा पांच फेल से लगायत डाक्टरी पास तक के पत्रकार यहां आसानी से उपलब्ध हैं. लॉकडाउन में सारा देश और दुकानें बंद हैं, लेकिन पत्रकारों की दुकानें चल रही हैं.
और राजधानी लखनऊ की तो बात ही क्या पूछनी? साइकिल स्टैंड चलाते, जलेबी छानते, चाय-पान की दुकान चलाते, पंचर की दुकान पर पंचर बनाते, जमीन के धंधे में अपनी पूरी ऊर्जा खपाते पत्रकारों बड़ी फौज है. ऐसे लोग किसी पड़ोसी मुल्क या पुलिस के दबाव में नहीं बल्कि जनता की सेवा करने की नीयत से पत्रकारिता के पेशे में आये हैं. जनसेवा में तल्लीन ज्यादातर पत्रकारों को पढ़ने-लिखने से वैसा ही परहेज है, जैसा सुगर पेशेंट को मिठाई से. कुछ पत्रकारों को मुख्यालय की मान्यता भी इसीलिये मिली है ताकि वह समय से सचिवालय पहुंचकर अधिकारियों की उनके मुंह पर तारीफ कर सकें. सेल्फी ले सकें.
खैर, माफ करिये मैं असली मुद्दे से भटक गया. मामला यह है कि कोरोना के कहर से देश हिला हुआ है. सरकार हिली हुई है. जनता हिली हुई है. देश के एकमात्र राष्ट्र संदेशक ने समूचे भारत को एक रात आठ बजे लॉकडाउन मोड में डाल दिया. सब अपने घर में कैद है. केवल जरूरी सेवाओं को कुछ प्रतिबंधों के साथ बाहर निकलने की छूट दी गई है. इसमें पत्रकारिता भी शामिल है. इसे देखते हुए सूचना विभाग ने गैर-रिपोर्टिंग स्टाफ की सुविधा के लिये घर से कार्यालय तक के लिये पास जारी करने का फैसला लिया.
रिपोर्टिंग के लिये मान्यता कार्ड तथा जिला स्तर पर जारी पास को मान्य किया गया. बड़े अखबार और न्यूज चैनल वालों, यानी जिन्हें वास्तव में काम करना था, पास जारी कर दिया गया. यह जानकारी बाहर आते ही मेरे जैसे छुटभैये तथा चाय-पान आदि की दुकान पर ऊर्जा खपाने वाले पत्रकार सक्रिय हो गये. जब छुटभैयों के सक्रिय होने की सूचना मिली तो उन अखबारों के पत्रकार भी ताव खा गये, जिनका अखबार तभी छपता है, जब कहीं से विज्ञापन मिलता है. वे भी पास के चक्कर में पड़ गये, जिनका छपता-दिखता-बिकता कुछ नहीं है, बस बताने के लिये कि वे पत्रकार हैं.
बताते हैं कि सूचना विभाग ने गैर-रिपोर्टिंग स्टॉफ, जिनमें उस-संपादक, ऑपरेटर, मशीन मैन इत्यादि शामिल हैं, के लिये दो हजार के आसपास छपवाये थे, ताकि किसी चलते फिरते संस्थान को दिक्कत ना उठानी पड़े. लॉकडाउन के चलते विभागीय कर्मचारी कम आ रहे हैं, लिहाजा सूचना विभाग वन बाई वन पास जारी करने के संस्थानों से संख्या पूछकर कार्ड थमा दिया. भरने और फोटो चिपकाने की जिम्मेदारी उन्हीं संस्थानों को दे दी. इस तरह पास बंटने की सूचना मिली तो फिर कई पत्रकार मौका-ए-वारदात पर टूट पड़े.
कुकुरझांव के बीच जिसके हाथ जितना पास लगा, लेकर निकल भागा. फिर शुरू हुई पत्रकारिता. अपने हाथ से ही फोटो भरकर को विशेष संवाददाता बन गया, कोई प्रमुख संवाददता बन गया. बताते हैं कि गजब तो तब हुआ, जब एक उप-संपादक खुदे अपने संस्थान को बताये बगैर अपना प्रमोशन कर लिया. इसके बाद शुरू हुआ सड़क पर रेलमपेल. फिर यूं हुआ कि जिन्हें लिखना नहीं आता या जिनका महीने में तीसों दिन का अखबार एक ही दिन मात्र फाइल कॉपी के रूप में छपता है, पुलिस और प्रशासन को बताने निकल पड़े कि हम भी पत्रकार हैं.
इतना भी होता तो खैर चल जाता, लेकिन मेरे गुर्दों में दर्द तो तब शुरू हुआ, जब फेसबुक पर महान पत्रकारों ने फोटो और पास के साथ कैप्शन डालना शुरू किया. फेसबुक पर एकदम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और लोकतंत्र सेनानी टाइप की फीलिंग वाले फोटो और कैप्शन को देखकर मुझ जैसा छुटभैया पत्रकार खुद को रायबहादुर टाइप का फील करने लगा, जो अंग्रेजों की गुलामी में पदवी पाते थे. फोटो-कैप्शन देखकर ऐसा फील हो रहा था कि अपनी चाय, पान, बीड़ी, मिठाई की चलती दुकान छोड़ भाई लोग देशहित में कोरोना से दो-दो हाथ कर रहे हैं, और मैं देशद्रोही एवं डरपोक टाइप घर में छुपा बैठा हूं.
एक भाई ने सड़क पर अकेले घूमते फोटो के साथ कैप्शन डाला, ”हम आपके लिये लड़ेंगे, हम आपके लिये जीतेंगे. कोरोना को हरा के रहेंगे.” दूसरे भाई ने लिखा, ”मैं आपके लिये काम कर रहा हूं. आप अपने लिये घर पर रहें.” ऊ भाई भी फेसबुक पर फोटो डालकर लिख दिया, जिसकी सारी खबर दूसरा कोई लिखता है. लिखा, ”आप घर पर सुरक्षित रहें. हमें पास मिल गया है, अब हम सबकुछ बतायेंगे आपको. चीन को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. कोरोना से हम टकरायेंगे” एक और भाई ने लिख डाला, ”हम अपनी जान भी दे देंगे आपके लिये. सरकार की ईंट से ईंट बजा देंगे, लेकिन आपको कुछ होने नहीं देंगे.”
इन पत्रकारों के फोटो और कैप्शन देखकर हम बहुत शर्मिंदा महसूस किये. बिना लॉकडाउन पास हम रायबहादुर टाइप फील करते हुए फेसबुक पर लिख दिये, ”राष्ट्र संदेशक जी किसी भी आठ बजे कोरोना को सबक सिखायेंगे. कोरोना को उसकी औकात बतायेंगे. किसी रात कोरोना पर हवाई हमला करायेंगे. चीन मुर्दाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद. इमरान खान अब तुम जिंदा नहीं बचोगे, क्योंकि चीन के झांग झी को राष्ट्र संदेशकजी टहलते समय मरवायेंगे.” इतना लिखने के बाद भी अभी तक स्वतंत्रता सेनानी वाली फीलिंग नहीं आ पाई है, पर उम्मीद करने में क्या जाता है?
लेखक अनिल सिंह लखनऊ में पत्रकार हैं. संपर्क- 9451587800
Mratunjay
March 28, 2020 at 4:03 pm
वाह अनिल भैया
Anand Gopal
March 28, 2020 at 7:01 pm
प्रिय अनिल जी लगता है आपको ‘पास’ शायद नहीं मिल पाया इस वजह से आप इतने दुःखी क्षुब्द हुए कि आपने अंधे होकर खबर लिखी उसमें मेरा भी कार्ड दाल दिया।जब कि मै किसी भेड़चाल का हिस्सा नहीं था। मैंने साधारण तरीके से अप्लीकेशन दे कर पास माँगा और मुझे मिला जो कि मेरा हक़ था। और कोरोना को लेकर डेली कवरेज भी कर रहा हूँ।आपकी खबर और लिखने की भाषा शैली से आपकी मानसिककता का पता चल रहा है।मेरी आपको फ्री में सलाह है कि जीवन में कुछ सकारात्मक सोचिये और करिये इस तरह की नकारत्मकता से को लाभ नहीं होने वाला है। अगर आपका मन कुछ शान्त हुआ हो तो अर्ली न्यूज़ का कार्ड पोर्टल से हटाने का कष्ट करें। नहीं हटाएंगे तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता,इसमें भी अर्ली न्यूज़ का फायदा ही है,जो खबर पढ़ेगा वो अर्ली न्यूज़ को जानेगा।
आनन्द गोपाल चतुर्वेदी
अर्ली न्यूज़ 8795310000
मनीष दुबे
March 28, 2020 at 7:27 pm
फैलाये दियो सबको गुरु, तारीफ भी छोटी पड़ेगी अब तो
बस….एकदम भौकाल
जैजै
देवानन्द यादव
March 28, 2020 at 9:03 pm
बेमिसाल रिपोर्टिंग
Vivek Gupta
March 29, 2020 at 6:53 pm
बहुत बढ़िया और कोरोना की महामारी में पूरी तरह प्रासंगिक लेख, वैसे तो वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह जी के हर लेख में बहुत कुछ सीखने और जानने को मिलता है, लेकिन यहां पर उन्होंने व्यंग्यात्मक रूप से जो लिखा है वो खुद पत्रकार बिरादरी के लिए आइने के समान है.
विवेक
March 29, 2020 at 6:56 pm
बहुत बढ़िया और कोरोना की महामारी में पूरी तरह प्रासंगिक लेख, वैसे तो वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह जी के हर लेख में बहुत कुछ सीखने और जानने को मिलता है, लेकिन यहां पर उन्होंने व्यंग्यात्मक रूप से जो लिखा है वो खुद पत्रकार बिरादरी के लिए आइने के समान है.