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साहित्य

लंदन में जारी हुई ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ की प्रोमो पुस्तिका

लंदन : ‘लप्रेक : फेसबुक फिक्शन श्रृंखला की दूसरी किताब ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ को पाठकों के बीच लाने की तैयारियाँ जब ज़ोरों  पर हैं, इसी बीच इसका प्रोमो लंदन में आयोजित एक कार्यशाला के उपरान्त अनौपचारिक रूप से लांच किया गया।

<p>लंदन : 'लप्रेक : फेसबुक फिक्शन श्रृंखला की दूसरी किताब 'इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं' को पाठकों के बीच लाने की तैयारियाँ जब ज़ोरों  पर हैं, इसी बीच इसका प्रोमो लंदन में आयोजित एक कार्यशाला के उपरान्त अनौपचारिक रूप से लांच किया गया।</p>

लंदन : ‘लप्रेक : फेसबुक फिक्शन श्रृंखला की दूसरी किताब ‘इश्क़ कोई न्यूज़ नहीं’ को पाठकों के बीच लाने की तैयारियाँ जब ज़ोरों  पर हैं, इसी बीच इसका प्रोमो लंदन में आयोजित एक कार्यशाला के उपरान्त अनौपचारिक रूप से लांच किया गया।

एसओएएस, लंदन विश्वविद्यालय, लंदन में 27-28 मई, 2015 को ‘हिंग्लिश’ को लेकर हुई दो दिवसीय कार्यशाला के समापन-सत्र के बाद ‘लप्रेक’ श्रृंखला की इस दूसरी कड़ी की प्रोमो पुस्तिका जारी तो की ही गई, साथ ही, इस कार्यक्रम में लप्रेककार विनीत कुमार ने दुनिया के अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों से आए लोगों के बीच लप्रेक लिखे जाने के पीछे की पूरी प्रक्रिया की विस्तार से चर्चा करते हुए अपनी पुस्तक की थीम को भी सामने रखा।

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यह सच है कि जो न्यूज़ चैनल और मीडिया दुनिया-भर की ख़बरों को अपनी ज़रूरत और मिज़ाज के हिसाब से पेश करता है, उसके माध्यम से ऐसी कई कहानियाँ, इमोशनल मोमेंट्स न्यूज़रूम की चौखट नहीं लाँघ पाते जो खुद मीडिया कर्मियों के बीच के होते हैं। इश्क़ और इमोशन के नाम पर मीडिया भले ही लव, सेक्स, धोखा से लेकर ऑनर किलिंग तक के मामले को लगातार प्रसारित करता रहे, लेकिन क्या सचमुच वह  इश्क़ के इलाके में घुसने और रचनात्मक हस्तक्षेप का माद्दा रखता है। इसी प्ररिप्रेक्ष्य के अन्तर्गत प्रोमो में शामिल कुल पाँच कहानियों में से तीन कहानियों का पाठ करते हुए लेखक ने लप्रेक लिखे जाने की इस पूरी प्रक्रिया की चर्चा की।

ट्रैफिक जाम, मेट्रो की खचाखच भीड़, डीटीसी बसों के इंतज़ार के बीच लिखी जानेवाली इन फेसबुक कहानियों के बारे में प्रो.फेरचेस्का 

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ओरसिनी (हिन्दी एवं दक्षिण एशियाई साहित्य, एसओएएस, लंदन विश्वविद्यालय, लंदन) ने कहा कि इस तरह के लेखन से हिन्दी एक नए पाठक वर्ग के बीच पहुँच सकेगी और जो कहानियाँ अब तक सोशल मीडिया के भरोसे रह गई थीं, उनके हिन्दी पाठकों के बीच किताब की शक्ल में आने से विचार-विमर्श में नया आयाम जुड़ सकेगा।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में अध्यापन कर रहे ऐश्वर्ज पंडित ने कहा कि ये कहानियाँ बताती हैं कि हिन्दी में अलग तरह की सामग्री आने की गुंजाइश बनी हुई है और यह अच्छा ही है कि इस तरह से अलग-अलग रूपों में हिन्दी का विस्तार हो।

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लप्रेक सीरीज की तीसरी किताब ‘इश्क़ में माटी सोना’

लप्रेक सीरीज की तीसरी किताब के नाम की घोषणा ‘सार्थक’ ( राजकमल प्रकाशन का उपक्रम ) ने कर दी है। इसका नाम होगा ‘इश्क़ में माटी सोना’। अपनी किताब के नाम की घोषणा होने पर अपनी पहली टिप्पणी फेसबुक पर साझा करते हुए लप्रेककार गिरीन्द्रनाथ झा लिखते हैं कि, “राजकमल प्रकाशन ने लप्रेक श्रृंखला की तीसरी किताब का नाम भी सार्वजनिक कर दिया है, जिससे खुश भी हूँ और डरा हुआ भी। 

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किताब की दुनिया में यह मेरा पहला क़दम होगा।” 

‘इश्क़ में माटी सोना’ के लप्रेककार गिरीन्द्रनाथ झा दिल्ली की पत्रकारिता छोड़कर अपने गाँव में किसानी जीवन जी रहे हैं और इन्होंने वहाँ हाल ही में कदम्ब वृक्षों का अद्भुत बगीचा लगाया है। अपने गाँव में ही आस-पास और दूरदराज के सोशल मीडिया से जुड़े सभी साथियों का एक अच्छा जमावड़ा कर चुके हैं। गाँव के बच्चों को अर्थपूर्ण फ़िल्में दिखाने का भी इन्हें ख़ूब शौक है। खेती-किसानी में नए प्रयोगों को लेकर जिज्ञासु रहनेवाले गिरीन्द्र गाँव में रेणु के ‘जीतन बाबू’ की तरह परती में जीवन और श्रम का काव्य रचने को आतुर हैं।

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0 Comments

  1. Gurmail

    June 14, 2015 at 11:21 am

    फेसबुक लप्रेक ने अपनी पुस्तक के माध्यम से हिंदी के पाठकों को एक अलग ही एहसास कराया है और पुस्तक पढ़ते समय पाठक कहीं खो जाता है पहली पुस्तक इश्क़ में शहर होना को पढ़ते हुए ये कहीं नही लगा की मैं एक किताब पढ़ रहा हूँ

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