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सुख-दुख

लखनऊ में एक युवा शख़्स को पब्लिक प्लेस पर अचानक ब्रेन हैमरेज हुआ, पढ़ें आगे का हाल… (ध्यान रखें, ये आपके साथ भी हो सकता है)

अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-

कल मेरे एक परिचित को सुबह 11 बजे उस वक्त अचानक अटैक आ गया, जब वह एक ऑफिस के बाहर खड़े मेरा इंतजार कर रहे थे। मैंने उन्हें सड़क पर धूलधूसरित और लगातार हो रही उल्टियों से सनी अवस्था में पड़े देखा तो वहां खड़े कुछ सहृदय लोगों की मदद से एक नर्सिंग होम में एडमिट कराया। नर्सिंग होम ने ब्रेन हैमरेज की आशंका जताते हुए उन्हें मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराने के लिए कहा।

सरकारी एम्बुलेंस बुलाई तो एम्बुलेंस वाला अड़ गया कि प्राइवेट हस्पताल से मरीज नहीं लेंगे न स्ट्रेचर देंगे। वहां मौजूद कुछ और सहृदय लोगों की मदद से उल्टी करते और उसी में सने मरीज को लादकर नर्सिंग होम से बाहर कुछ दूर ले गए।

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वहां से फिर एम्बुलेंस वाले ने जिद पकड़ ली कि लोकबंधु से आए हैं तो वहीं ले जाएंगे। लोकबंधु पहुंचे तो वहां कुछ जांच हुईं और दवाएं दी गईं। फिर उन्होंने कहा कि आप सिविल से सीटी स्कैन करा लाइए क्योंकि लोकबंधु में सीटी सुविधा नहीं है। फिर एम्बुलेंस मंगाई।

वहां से सिविल पहुंचे तो सिविल वालों ने मरीज को कुछ और दवाएं दी। कुछ जांच की। लेकिन सीटी स्कैन करने से पहले ही बता दिया कि तगड़ा ब्रेन हैमरेज है इसलिए मेडिकल ले जाइए क्योंकि सिविल में न्यूरो नहीं है। फिर एम्बुलेंस मंगाई और मेडिकल पहुंचे।

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मेडिकल कॉलेज में बिना ct स्कैन के न्यूरो में भर्ती नहीं करने के कारण उन्हें तत्काल इमर्जेंसी में भर्ती करा दिया। फिर घंटों की मशक्कत के बाद ct स्कैन हो पाया। Ct स्कैन की रिपोर्ट में ब्रेन हैमरेज की पुष्टि होने के बाद भी वहां मौजूद कुछ स्टूडेंट रिपोर्ट और मरीज पर अपनी पढ़ाई लिखाई में जुट गए। मेरे बार बार अनुरोध करने पर वह आधा एक घंटा बाद पसीजे तो फिर इमर्जेंसी विभाग के डॉक्टरों ने न्यूरो के लिए रेफर कर दिया।

रात में करीब आठ बजे के आसपास न्यूरो गया तो वहां एक युवा महिला डॉक्टर मिलीं। उन्होंने रिपोर्ट देखकर बड़ी हमदर्दी जताई और कहा कि 30 साल की उम्र में यह जानलेवा स्थिति बड़ी दुखदाई है। फिर उन्होंने कहा कि आप इमर्जेंसी पहुंचिए , वहां मैं चलकर पहले मरीज को देख लूं।

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फिर वह महिला डॉक्टर वार्ड से बाहर निकल कर गायब हो गई। करीब डेढ़ दो घंटे हम उसकी तलाश में भटकते रहे।

उसी समय न्यूरो में एक युवा पुरुष डॉक्टर ने मुझे भटकते देख खुद बुलाकर रिपोर्ट मांगी और उसको देखते ही तत्काल मरीज को न्यूरो में लाने को कहा। स्ट्रेचर में लादकर दो मंजिल पर स्थित न्यूरो में लाए तो कोविड के टीके का सर्टिफिकेट मांगा गया क्योंकि उसके बिना भर्ती नहीं किया जा सकता। फिर भागकर आरटीपीसीआर कराने मरीज को दो मंजिल नीचे लाए। वहां वह सज्जन ही एक घंटे तक अपनी सीट से गायब थे, जिन्हें वह टेस्ट करना था। खैर, टेस्ट आदि करवा कर किसी तरह न्यूरोलॉजी के उस सहृदय डॉक्टर अंकित की कृपा से मरीज को बेड मिल सका।
जब मरीज को बेड पर लिटाया जा रहा था तो उसी समय वही लापता युवा महिला डॉक्टर कहीं से प्रकट हुईं और अपना झोला- पर्स लेकर घर जाने की तैयारी करने लगीं।

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उन्होंने हमें कनखियों से देखा मगर कहा कुछ नहीं।

बहरहाल, मरीज को बेड तो मिल गया मगर कल सुबह 11 बजे से ब्रेन हैमरेज का शिकार होने के लगभग 12 घंटे बाद। और इससे भी बड़ी चिंता की बात यह है कि अभी तक ऑपरेशन नहीं हो सका है।

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ईश्वर के भरोसे चल रहे हमारे देश में उन मरीजों को शायद ईश्वर ही बचाता है, जिनको बदहाल हस्पताल या ड्यूटी में लापरवाही करने वाले डॉक्टर अपनी लापरवाही से मारने में कोई कसर नहीं छोड़ते।

इतनी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था , लापरवाही, डॉक्टरों और कर्मचारियों की मक्कारी और इलाज में इतनी देरी के बावजूद अगर मरीज की सांस चल रही है तो वह ईश्वर के भेजे उन्हीं देवदूतों की कृपा से चल रही है, जो उल्टी में लिथड़े एक अनजान व्यक्ति की जान बचाने के लिए अपने सारे काम छोड़कर मेरा सहयोग कर रहे थे या उस देवतुल्य डॉक्टर के कारण, जिसने बिना किसी सिफारिश के मरीज की हालत देखकर उसे बेड दे दिया।
बाकी खुद ईश्वर उस मरीज की सांसे बनकर अभी तक उसको जिलाए ही हुए है।

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मेरे बस में जितना था, वह मैंने यथासंभव कर दिया या करने की पूरी कोशिश की। उसके या किसी अन्य मरीज का उदाहरण देकर इस देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर दुख, क्षोभ, चिंता या कुछ भी नकारात्मक कहना सुनना सरकार के मेरे परिचित समर्थकों को नाराज कर सकता है।

लिहाजा दुष्यंत की कविता की कुछ पंक्ति लिखकर अपने मनोभाव को निजी परेशानी मानकर बात खत्म करता हूं….

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मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।

सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।

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इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।

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हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है।

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7 Comments

7 Comments

  1. Parveen thakur

    April 2, 2022 at 10:58 am

    Greebo ki Kon sunta hai agar yahi baat kisi v i p.ke saath me Hoti to uska hota ye SAB ka Koi jimmedar nahin Hamara system h Jo pata hota h magar karte kuchh nahi sirf inko paise se matalab h ok

    • P L Verma

      April 2, 2022 at 10:54 pm

      Jimmedar log mrit tulya hai. Doctor apane pese ko gali de rahen hai. Dikkar hai. Atyant dukhad.

    • B k Pandey

      April 3, 2022 at 5:40 am

      Netao ko koe frak nhi pdega

  2. Pawan Mishra

    April 2, 2022 at 4:49 pm

    Hospitals And School collage
    Sabse bde lutere In India.
    Aur sabse bdi bat Governments sb kuchh jante huye aankh band kiye h

  3. Deepak singh kushwaha.

    April 2, 2022 at 7:18 pm

    Hope aapka frnd ab sahi hoge. Bagwan jaldi sahi kre unko. Stroke k situation me 2 hour k ander treatment Milne se. Patient k problem me jaldi sudhaar aata hai. Muje b brain stroke hua tha age 36 thi tab. Medanta Lucknow me turant upchaar hua dec 2020. 3 din admint the saare checkup CT, xray, kidney heart full body check up hua, q ki BP admission k time 200/160 tha. Bill 3 din ka icu milkar. 50000 advance jama hua tha, refund 38000 k hua insurance se. BP ki medicine tab se regular le rhe hai.

  4. Vijay Kumar

    April 3, 2022 at 12:00 am

    Yahi sach hai yahi Hakikat yahi kadva sach hai. Kaun kahta hai ki ham Azad hue loktantra mein kahin na kahin ham fir se gulam ho gaye hain
    Andhe ko andha kahe turate jave Ruth batn-batan poochh Lo bhaiya kaise gai hai fhoot l
    The darti politics of India

  5. Satish Chandra

    April 3, 2022 at 7:59 pm

    Chahe koi bhi government aa jaye ye log sudharna nahi chahte.
    Ishwar aapke Mitra ko swasth rakhein.

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