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आयोजन

खोजी पत्रकार आयुष गौड़ ने ‘मदद गुरु’ के माध्यम से खेली दिलों को जीतने वाली होली

हर बार की तरह मदद गुरु ने अपने अंदाज़ में होली मना कर लोगों का दिल जीत लिया। मदद गुरु द्वारा हर त्योहार में किए जाने वाले प्रयास किसी से छुपे नहीं हैं। चाहे दिवाली ईद हो या फिर क्रिसमस, मदद गुरु ने हर बार ज़रूरत मंद लोगों का ध्यान रखते हुए हर त्योहार अपने ढंग से मनाया है और लोगों में खुशियां बाँटी है।

होली के पर्व पर भी मदद गुरु द्वारा तक़रीबन 11 बस्तियों में जाकर ज़रूरतमंद बच्चों के बीच होली की खुशियां मनाई गईं. सभी बच्चों में पिचकारियां, गुलाल रंग आदि और मिठाइयां बाँटी गईं. साथ ही इन बस्तियों में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया.

मदद गुरु के संस्थापक पंडित आयुष गौड़ ने बताया कि होली पर मलिन बस्तियों में रहने वाले मज़दूर भाई अपने बच्चों को हमारे और आपकी तरह सुख सुविधाएँ नहीं दे पाते लेकिन बच्चे सभी के बराबर होते हैं। जिस तरह संपन्न घरों के बच्चों को पिचकारी और गुलाल का शौक और इंतज़ार रहता है उसी तरह इन बच्चों को भी त्यौहार का चाव रहता है. इसलिए इन बस्तियों में बच्चों के चेहरे पर ख़ुशी लाने का मदद गुरु का यह एक छोटा सा प्रयास है।

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जहाँ एक तरफ़ मदद गुरु द्वारा पिचकारियां और गुलाल बच्चों में बाँटे गए वहीं दूसरी ओर बच्चों ने भी DJ पर ज़बर्दस्त डान्स परफॉर्मेंस दिया।

उड़ते हुए गुलाल और मीठी मीठी गुझिया के साथ बच्चों का रंगारंग कार्यक्रम तक़रीबन 3 घंटे से भी ज़्यादा चला जहाँ बच्चों के साथ साथ उनके माँ बाप ने भी जमकर आनंद लिया।

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होली मिलन समारोह के इस मौक़े पर मदद गुरु के फ़ाउंडर मेंबर आयुष पंडित जी की ८ वर्षीय पुत्री समृद्धि ने भी ज़रूरतमंद बच्चों को पिचकारी बाट कर उन्हें गुलाल लगाया. साथ ही मदद गुरु की मुख्य संस्था दिव्य प्रकाश सेवा समिति की अध्यक्षा श्रीमती सुनीता गौड़ ने भी बस्ती के सभी लोगों को होली की शुभकामनाएं देकर आशीर्वाद दिया।

समाज में इस तरह की सोच रखने वाले मदद गुरु को दिनार टाइम का सलाम है. यदि इसी तरह की सोच समाज में सभी लोग रखने लग जाए तो जल्द ही भारत आपसी एकता, अखंडता और भाईचारे का सबसे मज़बूत और असरदार उदाहरण बनेगा।

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मदद गुरु के संस्थापक पंडित द्वारा लिखी गई एक कविता ज़रूर पढ़ें-

होली के इस त्योहारों में
रंगों की बौछार में
मस्ती की बयार में
कैसे झूमूँ गाऊँ मैं?
उत्सव कैसे मनाऊँ मैं?
उल्ल्हास में कैसे खो जाऊँ में?
कैसे खुशियाँ मनाऊँ मैं

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वो पीछे एक बस्ती मेरे घर के पास है।वहाँ रहते कुछ बच्चे उदास है
उन बच्चों को मेरे आने की आस है।
मुझे भी इस बात का एहसास है।

उनके लिए गीत गाएगा कौन?
पिचकारी लाएगा कौन?
उन्हें रंग दिलवाएगा कौन
उनका मन बहलायेगा कौन
उनके चेहरे पे ख़ुशी लाएगा कौन

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ये समाज इन सवालों पे कब तक रहेगा मौन??

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1 Comment

1 Comment

  1. Shivam

    April 1, 2021 at 3:56 pm

    Mainey har festival main bhaiya ko ISO Tarah sabka khayal rakhtey air Dil jeetey Dekha hai. Jan nayak hai bhai

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