अनिल सिंह-
उत्तर प्रदेश के नोएडा में भाजपा नेता श्रीकांत त्यागी की गुंडागर्दी की कारगुजारियों के बाद अचानक नोएडा सांसद डा.महेश शर्मा शर्मिंदा हो गये हैं कि प्रदेश में उनकी सरकार है। प्रदेश में सरकार होने की अपनी शर्मिंदगी का सार्वजनिक प्रदर्शन वह मीडिया के सामने करते हैं। श्रीकांत त्यागी से भाजपा ने अपना पल्ला झाड़ लिया है, और यह पार्टी इस मामले में उस्ताद रही है। वोटरों से भी पल्ला झाड़ती रही है। अगर भाजपा गर्दन तक ना फंसी हो तो फिर पल्ला झाड़ने में एक पल की देर नहीं करती। खैर, सवाल यह है कि डा. महेश शर्मा क्यों इतना शर्मिंदा हो गये कि नोएडा पुलिस कमिश्नर को गाली बैठे? गाली देने के बाद डा. शर्मा शर्मिंदा हुए हैं कि नहीं यह किसी शरमखोर ने अभी नहीं बताया है?
खैर, ओमेक्स सोयायटी में महिला के साथ अभद्रता के मामले में डा. शर्मा अचानक एंग्री अधेड़मैन बनकर उभरे हैं। इधर, श्रीकांत त्यागी भाजपा का मूल कॉडर का कार्यकर्ता नहीं है तो भाजपा ने उससे किनारा कर लिया है, लेकिन डा. शर्मा जिन गुंडों की वजह से शरमा रहे हैं उनमें कई के फोटो उनके साथ हैं! जिन लोगों ने बवाल किया उसमें गाजियाबाद भाजयुमो का जिला मंत्री रवि पंडित भी शामिल है, जिसके साथ खड़े होकर फोटो खिंचवाने में डा. महेश शर्मा तनिक भी शर्मिंदा नहीं दिख रहे हैं। इन्हीं में शामिल एक लोकेश भी भाजपा का कार्यकर्ता है, जिसकी भाजपा नेताओं के साथ तस्वीर है।
अब सवाल है कि डा.महेश शर्मा अपनी ही पार्टी के युवा कार्यकर्ताओं के हंगामे को लेकर क्यों शरमा रहे हैं? क्या डा.महेश शर्मा योगी आदित्यनाथ सरकार को घेरने के लिये शर्मिंदा हुए हैं या पुलिस कमिश्नर से उनकी कोई निजी खुन्नस है या फिर यह कोई साजिश है? सवाल कई हैं, जिनके जवाब तलाशे जा रहे हैं। इस बीच सवाल यह भी है कि जब डा. शर्मा के साथ तस्वीर खिंचाने वाले कई भाजपाई ही सोसायटी पहुंचकर हंगामा किये तो क्या यह कोई सोची समझी रणनीति थी योगी सरकार को घेरने की या कोई और मंशा थी? खबर है कि जो दस-पंद्रह युवा सोसायटी में घुसे थे, उनमें ज्यादातर भाजपा से जुड़े और ब्राह्मण-त्यागी समाज के युवा थे, जो श्रीकांत की पत्नी को एकता का ढांसस बंधाने आये थे। और सोसायटी वालों से जा भिड़े।
चर्चा-ए-आम है कि श्रीकांत त्यागी स्वामी प्रसाद मौर्य का नजदीकी था, और उनके भाजपा में आने के बाद पार्टी में आया था। स्वामी और उनके समर्थकों को भाजपा में लेकर कौन आया था, यह तस्वीर भी सोशल मीडिया पर ढूंढने से मिल जायेगी। खैर, श्रीकांत इसके पहले भी विवादों में रह चुका है। लखनऊ के गोमतीनगर थाने में उसकी पत्नी ने दूसरी महिला से नाजायज संबंध रखने को लेकर हाई वोल्टेज ड्रामा किया था। बहुत नौटंकी हुई थी। भाजपा की भी किरकिरी हुई थी, लेकिन तब भाजपा ने उसे बाहर का रास्ता नहीं दिखाया, क्योंकि तब स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा के नेता हुआ करते थे। उसी वक्त भाजपा संगठन ने उसे बाहर का रास्ता दिखाया होता तो आज पार्टी और सरकार की इतनी किरकिरी नहीं होती और ना ही डा. महेश शर्मा को शार्मिंदा होना पड़ता।
भाजपा में पैसा बोलता है यह अब ढंका-छुपा रहस्य नहीं है। कई बार आरोप लगे हैं कि पार्टी में पद पैसे पर बंटते हैं। अब यह दूसरी बात है कि इसे साबित करना मुश्किल होता है क्योंकि लेनेवाले और देनेवाले दोनों की सहमति होती है, लिहाजा ऐसी बातें बस चर्चा बनकर रह जाती हैं। पर ऐसी चर्चाएं असरकारी होती हैं कि कैसे और किसके कहने पर श्रीकांत त्यागी को पांच-पांच गनर मिले हुए थे? किसके दम पर उसने अपना भौकाल टाइट कर रखा था? दरअसल, मोदी-शाह की भाजपा को सत्ता के लिये दागियों से भी परहेज नहीं है। उसे नैतिकता की तसल्ली नहीं सत्ता की चाभी चाहिए। भाजपा में ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का दौर जा चुका है, अब ‘पार्टी विद डिटर्जेंट’ का दौर आ चुका है। दागी होकर आइए और धोआ पोंछाकर साफ माने जाइये।
डा.महेश शर्मा ने पहले दिन कहा कि वह गृहमंत्री अमित शाह के कहने पर सोसायटी में आये हैं। बड़ा सवाल है कि क्षेत्र का सांसद होने के नाते वह खुद से क्यों नहीं पहुंचे? तो क्या वह अमित शाह के कहने पर शर्मिंदा हुए हैं या खुद ही मौके पर शर्मिंदा होने का निर्णय ले लिया? ऐसा क्यों है कि जब भी योगी सरकार के खिलाफ बात होती है, उसका दूसरा सिरा अमित शाह से जुड़ जाता है। कुछ दिन योगी सरकार के राज्यमंत्री दिनेश खटिक ने इस्तीफा देने का पत्रीय अभिनय किया, तब उन्होंने पत्र मुख्यमंत्री, राज्यपाल, पार्टी अध्यक्ष या पार्टी प्रभारी के नाम से लिखने की बजाय सीधे अमित शाह को लिखा, जबकि अमित शाह इस समय ना तो पार्टी अध्यक्ष हैं और ना ही प्रदेश प्रभारी, फिर क्यों चिट्ठी शाह को लिखी गई? क्या जेपी नड्डा का अध्यक्ष होने का कोई मतलब नहीं है?
इसके पहले उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी प्रदेश सरकार सौ दिन पूरे होने पर अपने विभाग के एसीएस को पत्र लिखा था। विभागीय स्तर पर लिखा गया यह पत्र अचानक मीडिया में वायरल हो गया, जबकि ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर लिखा गया कोई भी पत्र बाहर नहीं निकला। सवाल यह भी उठा कि ऐसा कौन सा वज्रपात हो रहा था कि जब योगी सरकार सौ दिन के जश्न मना रही थी, उसी दिन पत्र लिखकर वायरल करना जरूरी हो गया? दरअसल, विभागीय एवं गोपनीय पत्रों का सार्वजनिक हो जाना इत्तेफाक या संयोग नहीं है बल्कि यह एक प्रयोग है। इसके पहले भी कानून एवं विधायी मंत्री रहते हुए ब्रजेश पाठक ने कोरोना काल में योगी आदित्यनाथ की सरकार और अधिकारियों को पत्र लिखकर प्रयोग कर चुके हैं।
विधायी मंत्री रहते हुए सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति में भी ब्रजेश पाठक ने सरकार की किरकिरी कराई थी। अब उपमुख्यमंत्री बनने के बाद भी ब्रजेश पाठक सरकार के अन्य मंत्रियों से अलग लाइन लेने के चलते लगातार चर्चा में बने हुए हैं। अपने विभाग में छापेमारी के जरिये वह लगातार साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि स्वास्थ्य महकमा नाकारा है। स्वास्थ्यकर्मी कामचोर हैं। जबकि स्वास्थ्य विभाग में सुधार छापेमारी का नहीं बल्कि प्रबंधन का मामला है। पर्याप्त डाक्टर एवं चिकित्सा कर्मियों की पर्याप्त नियुक्ति हुए बिना राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में गुणोत्तर सुधार संभव नहीं है। छापेमारी से हालात सुधर सकते तो अब तक उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं में गुणात्मक प्रभाव नजर आने लगता, लेकिन हालात जस के तस हैं।
दरअसल, यह स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का मसला नहीं बल्कि शुद्ध सियासत का मामला है। छापेमारी से ज्यादा दिखावे का मसला है। सियासत में ज्यादातर खेल पर्दे के पीछे खेला जाता है। यूपी की सियासत में कल्याण सिंह जैसे दिग्गज पर्दे के पीछे से निपटा दिये गये, और इस खेल को अंजाम किसने दिया यह भी कम से कम सत्ता के गलियारे में ढंका छुपा रहस्य नहीं है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के प्रिय और गृह मंत्री अमित शाह के करीबी ब्रजेश पाठक बहुत ठोंक बजाकर उपमुख्यमंत्री बनाये गये हैं। भाजपा के वैचारिक एवं लकीर के फकीर नेताओं के विपरीत ब्रजेश पाठक लाइमलाइट और दिखावे की राजनीति के बेहतरीन खिलाड़ी हैं। अपनी इसी खूबी की बदौलत वह संघनिष्ठ वरिष्ठ भाजपायी ब्राह्मण नेताओं को पीछे छोड़ते हुए उपमुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे हैं।
डा. दिनेश शर्मा दिल्ली की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाये थे, लिहाजा ब्रजेश पाठक को उपमुख्यमंत्री बनाकर यूपी की ठाकुर-ब्राह्मण जातीय सियासत को गरम रखने का प्रबंध किया गया है। कहते हैं कि दिल्ली की शह पर पिछली सरकार में उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने योगी आदित्यनाथ के समानांतर सत्ता का केंद्र बनने का प्रयास किया था तो इस बार यह जिम्मेदारी ब्रजेश पाठक के कंधों पर है। क्या पता इसी कड़ी में डा. महेश शर्मा भी शर्मिंदा हुए हों, क्योंकि नोएडा में इससे पहले हुए किसी भी मामले में उन्हें शरम से लाल होते या यंग्री अधेड़मैन बनते नहीं देखा गया है? ये सियासत है हर रोज नये रंग दिखाती है। खैर, योगी सरकार ने श्रीकांत त्यागी के अवैध अतिक्रमण पर बुलडोजर चलाकर बता दिया है कि कानून के आगे ‘स्वामी’ तो क्या किसी के भी चमचे की खैर नहीं है!