दिल्ली : राज्यसभा टीवी पर मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू करने, न करने को लेकर एक ‘मालिकाना’ किस्म की बहस प्रायोजित की गई। बहस में प्रभात खबर के संपादक एवं राज्यसभा सदस्य हरिवंश, डीयूजे के एसके पांडे, कोलिन गोंजाल्विस, अजय उपाध्याय ने भाग लिया। ‘मजीठिया मंच’ फेसबुक पेज से साभार प्राप्त बहस-सामग्री यहां वक्ताओं के कथन और उस पर मजीठिया मंच के प्रति-कथन के साथ प्रस्तुत है….
बहस में हरिवंश का कहना था कि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने पर छोटे अखबार बंद हो जाएंगे। सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जरूर लागू किया जाना चाहिए क्योंकि यह देश के सर्वोच्च अदालत का फैसला है। उन्होंने यह भी कहा कि बीस वर्षों में उदारीकरण के बाद बहुत बदलाव आया है और यह वेज बोर्ड अन्य बेज बोर्ड की तुलना में सबसे बेहतर है। एंकर ने उनसे पूछा कि क्या प्रभात खबर ने अपने यहां लागू किया, तो उनका जवाब था, हम देख रहे हैं। अभी फैसले का इंतजार है। इसके अलावा अपनी व्यथा सुनाने लगे कि उनका अखबार बहुत छोटा है और 400 कॉपी से शुरू किया था।
मजीठिया मंच की प्रति-टिप्पणी : ”बहस में हरिवंश कहीं से संपादक या पत्रकार नजर नहीं आ रहे थे। मालिकों की तरह मालिकों की बात कर रहे थे। और तो और, उन्हीं की तरह अंगुली पर लाभ और घाटे का सौदा गिनाने लगे। प्रभात खबर ने भी मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया है। यह सच कहा लेकिन या तो झूठ यह कहा या फिर लोगों को बरगलाने के लिए कहा कि आप फैसले का इंतजार कर रहे हैं। ( ताज्जुब हुआ गिरीश ने भी इस पर कुछ नहीं कहा।) दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 7 फरवरी 2014 को फैसला दे चुका है। 63 पेज के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर देखा जा सकता है। रिव्यू पीटिशन भी 10 अप्रैल 2014 को खारिज हो चुका है। फिर हमारे महान पत्रकार –सह संपादक -सह सांसद –सह मालिक किस फैसले का इंतजार कर रहे हैं। पत्रकार मालिकों के खिलाफ किसी फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई नहीं लड़ रहे । यह मालिकों द्वारा सुप्रीम कोर्ट का अवमानना करने का केस है। इसका मतलब प्रभात खबर ने लागू नहीं किया है और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की है। साथ में यह भी कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को जरूर लागू किया जाना चाहिए। इस समय तय यह होना है कि अखबारों ने सच में सुप्रीम कोर्ट की बात मानी है या नहीं । फैसला मजीठिया वेज बोर्ड पर नहीं होना है। इसलिए शर्म है तो अपने कहे अुनसार अपने यहां सिफारिश अपने कहे अनुसार लागू करें। और जहां तक 400 कापी की बात है हरिवंश के संपादक बनने से पहले प्रभात खबर देश का पहला अखबार था, जो रोटरी मशीन पर छप रहा था। उनको भी पता है और जाने वालों को भी, तब लेटेस्ट मशीन पर छपने वाला अखबार चार सौ कॉपी तो नहीं ही छप रहा हेागा। किसको उल्लू बना रहे हैं!”
बहस के दौरान डीयूजे के एसके पांडे से पूछा गया कि जब उन्होंने मुख्य लड़ाई लड़ी थी तो लागू कराने के लिए फिर सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का मामला दर्ज क्यों नहीं किया? उन्होंने कहा – समय की बर्बादी ही कही जाएगी, क्योंकि सब जानते हैं कि कहीं भी, किसी भी अखबार ने वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया है।
मजीठिया मंच की प्रति-टिप्पणी : बहस के दौरान डीयूजे के एसके पांडे खूब मुंडी हिला-हिला कर, अंग्रेजी-हिंदी में बोलकर पांडेय असली मुद्दे को गोल कर गए। अभी जो उन्हें टीवी पर मुंडी हिलाने का वक्त और सौभाग्य जो मिला है वह भी दैनिक जागरण के उन साहसी कर्मचारियों की वजह से ही मिला है जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जाने की पहल की और अब तक डटे हैं। यूनियनों की हालत पर तो क्या कहने। अभी चार आदमी भी उनके पास मुश्किल से मिलेंगे धरना- प्रदर्शन के लिए। बहुत निराश किया पांडेय जी ने। उनके पास तो लगता है सुप्रीम कोर्ट में कितने मामले चल रहे हैं, ये भी जानकारी शायद ही हो।
समाचार पत्र कर्मचारियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में इस समय भी लड़ रहे कोलिन गोंजाल्विस ने जो कहा, वह वास्तविकता के काफी करीब था लेकिन सबके बीच कोऑर्डिनेशन की कमी के कारण उनके पास भी जानकारी सीमित ही लगी। गोंजाल्विस का कहना कि सबसे पहले यूनियन बनाकर लोगों को जमा करना जरूरी है, यह बहुत ही मुश्किल काम है। गोंजाल्विस ने कर्मचारियों का पक्ष रखने की भरसक कोशिश की लेकिन उन्हें भी पूरे देश में चल रहे मामले के बारे में पता करना चाहिए। उन्हें विभिन्न समाचार पत्रों में चले रहे गोरखंधंधें को उजागर करना चाहिए। उनके लिए यह अच्छा फोरम था। वैसे उनका सुझाव स्वागत योग्य है। आशा है सभी साथी इस ओर ध्यान देंगे।
अब एक ऐसी संस्था के मुखिया की बात, जो इस धरती पर अब पाए नहीं जाते। जी हां, एडिटर्स गिल्ड की बात। अजय उपाध्याय के विचार एक बुद्धिजीवि के विचार जैसे ही थे। न इधर की, न उधर की। बीच की बात। मालिक भी खुश और वर्कर भी।
मजीठिया मंच की प्रति-टिप्पणी : सबको पता है कि अब अखबारों में कोई संपादक नहीं है। जो हैं, वे मालिक-संपादक हैं। बाकी सब इसलिए संपादक के पद को सुशोभित कर रहे हैं कि मालिक उन्हें वह कुर्सी किसी न किसी बहाने देना चाहता है। वह सब कुछ तो जानते हैं, मालिकों की चालबाजी, बदमाशी और ताकत। और तो और, सबसे बदनाम अखबार के वह ब्यूरो चीफ थे और उसी जैसे एक बड़े मीडिया समूह के अखबार के समूह संपादक भी। कैसे कॉन्ट्रैक्ट बनता है और कैसे – कैसे लेागों को प्रताडि़त किया जाता है, उनसे बेहतर इस देश में और कौन जान सकता है।”… बहस के सूत्रधार गिरिश निकम को भी और तैयारी करके आना चाहिए था।
बहस को इन लिंक्स पर देखा-सुना जा सकता है…
http://rstv.nic.in/rstv/video_upload/PlayYoutubeVideo.aspx?v=os_1zhZDg5I&feature=youtube_gdata
https://www.youtube.com/watch?v=os_1zhZDg5I&feature=em-uploademail
Vikas
March 14, 2015 at 12:58 pm
मजीठिया सिर्फ जोउर्नलिस्ट के फायदे के लिए बना है ,What about non journalist employee ?
अगर पत्रकार इतना ही जानकर है तो बिना Advertisement and other source of income के अख़बार निकले और चल के दिखा दे . आज जो अकबर २ से ४ रुपए का बिकता है because of non-journalist employee.
अधिकतर पत्रकारों का तो other income भी है जो दीखता है ( वरना एक जैसा इनकम वाले जोउर्नलिस्ट और नॉन जॉर्नलिस्ट) का लिविंग स्टैण्डर्ड में इतना फर्क कैसे ?
खैर अगर इनकम ही पैमाना है मजीठिया वेज बोर्ड का तो मेरा मानना है नॉन जॉर्नलिस्टो का भी सैलरी उतना ही होना चाहिए जितना की जोउर्नलिस्टो का recommend किया गया है. कियोकि Non-journalist का योगदान भी अख़बार चलने में काम नहीं है
वरना इस वेज बोर्ड के लागु होने से जोउर्नलिस्ट और नॉन जोउर्नलिस्टओ के बीच difference पैदा हो सकता है .
ravinder
March 15, 2015 at 12:38 pm
भाई साहब पहले जितना दिया गया है वो तो निकलवा लो। कोन कितना महान है वो बाद में तय कर लेना।