सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर श्रम विभाग हर समाचार पत्र संस्थान से मजीठिया वेतनमान लागू करने के संबंध में जानकारी मांग रहा है लेकिन जानकारी कौन देता है? जब सुप्रीम कोर्ट को जानकारी नहीं दी तो श्रम विभाग किस चिडिया का नाम है? नतीजन खिसियाए श्रम विभाग ने लेबर कोर्ट में प्रकरण डाल दिया. ये वाकया है मध्यप्रदेश का. झारखंड सरकार प्रपत्र सी भरने का एड निकाली; उतराखंड सरकार ने कमेटी बनाई. दिल्ली सरकार की जांच मंथर गति से चल रही है. मतलब साफ है कि श्रम विभाग के वश में नहीं कि वह मजीठिया वेतनमान लागू करा सके. अब पत्रकारों की एकता पर ही भरोसा है.
श्रम विभाग बेबस क्यों?
श्रम विभाग के पास अयोग्य अधिकारी-कर्मचारी है. जो मजीठिया वेतनमान के बारे में नहीं जानते कि केस किस अधिनियम की धारा के तहत लगते हैं. जर्नलिस्ट एक्ट क्या है; वेतनमान क्या होना चाहिए. जब ये नोटिस जारी कर वेतनमान के बारे में पूछते तो कह दिया जाता है कि हम अमुक वेतन रहे हैं. अब विभाग को पता हो तो ना कुछ करें सो चुप्पी साधना ही बेहतर है. नहीं तो शिकायतकर्ता को ही ढाल बनाकर नोटिस भेजते रहो जब तक लिफाफा ना मिल जाए. हालाकि श्रम विभाग को लाइसेंस रद्द करने की शक्ति होती है लेकिन इसका उपयोग नहीं किया जाता. पत्रकारों की समस्या के लिए अलग आयोग की जरूर है लेकिन वह आयोग अधिकार संपन्न होना चाहिए; नहीं तो प्रेस कांऊसिल और श्रम विभाग जैसे नोटिस जारी करने वाली संस्था बनकर रह जाएगी. खैर हमारे वश में तो सिर्फ यूनियन बनाना है जिसमें हर समस्या का समाधान निहित हैं.
वेतनमान की गणना कितनी सही?
किस ग्रुप के अखबार का मजीठिया वेतनमान क्या होगा कुछ साथी इस गुणा गणित में लगे हैं. हालांकि उनकी मेहनत पर संदेह नहीं होता; संदेह इस बात पर होता है कि दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में संवाददाता को ३१ हजार वेतन देने में बड़े समाचार पत्र को क्या परहेज हो सकता है कि वे सुप्रीम कोर्ट की अवमानना पर उतारू हैं. एबीपी जैसी कंपनी वेतनमान को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पहुंच गई. मुझे लगता है कि बेसिक की गणना में त्रुटी हो रही है. मणिसाना वेतनमान के वर्तमान बेसिक में +डीए+३० प्रतिशत अंतरिम राहत+३५ प्रतिशत वेरिएवल पे को नहीं जोड़ा जा रहा हैं. इन्हें जोड़ने के बाद मजीठिया वेतनमान का बेसिक मिलता है फिर गणना शुरू होती है. या हो सकता है मणिसाना वेतनमान का बेसिक वर्ष २००० की दर से जोड़ा जा रहा हो.
महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
राजकुमार, देवघर
July 30, 2015 at 11:35 am
कितना खिलायेगा सर ?
कितना लिफाफा पहुचते रहेंगे…? आखिर कब तक ? आपका स्कूटी रोज रोज उधर ही जाता है. हमलोग सब देख रहे है. कुछ नहीं होगा खिला कर. सुप्रीम कोर्ट का आर्डर है. देना तो पड़ेगा ही. देखते है कब तक आप लिफाफा में लिफाफा देता जाते है श्रम विभाग वालो को.
raghu
July 31, 2015 at 5:43 am
कल राजस्थान पत्रिका के सम्पादकीय मैं मुख्य हैडिंग था देर है अंधेर नहीं बिलकुल सही लिखा है ग़दर गुलाब कोठारी इस धरती पर देर हैं मगर अँधेर नहीं है दुनिया को ज्ञान बाटते हो मगर ये बात तुम पर भी लागू होती है बूढ़े तुमने भी तो अति मचा रखी है अपने कर्मचारियों के साथ जो अन्यं कर रहे हो उस का भी तो एक दिन अंत होगा मानस के रचनाकार मैे ही राधा मै ही कृष्ण अवं ज्ञान मूर्ति पुरुष्कार को खरीद कर अपने आप को महिमा मंडित करने वाले भृष्ट पत्रकार अब तुम्हारा भी तो अंत होता चाहिए तुमने अपने कर्मचारियों को चार सेल वेतन बृद्धि अवं महगाई भत्ता नहीं दिया है साथ हे साथ उनके साथ बी बदले के भवन के साथ आप बुरा व्य्हार कर रहे हो आखिरकार तुम्हारी इस भृष्ट सत्ता का अंत अब ही नजदीक है
बूढे अभी बे समय हैं सुधर जहॉ बरना मेमन की तरह तुम्हे जीते जी हे मर जाओगे
इति गुलाब कथा पार्ट दो
Raj Alok Sinha
September 12, 2017 at 9:27 pm
सर, यदि कोई मजीठिया वेज बोर्ड का वेतनमान पाने के लिए क्या नियम है? इसके लिए किन प्रमाण पत्रों की जरूरत होती है?