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मजीठिया वेज बोर्ड के लिये यूपी में भी गठित हुई त्रिपक्षीय कमेटी, कई पत्रकार भी बनाए गए सदस्य

देश भर के मीडियाकर्मियों के वेतन, एरियर और प्रमोशन तथा अन्य सुविधाओं को दिलाने के लिये गठित जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश को सुचारू रूप से क्रियान्यवयन कराने के लिये भारत सरकार के आदेश पर अब देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में भी त्रिपक्षीय समिति का गठन किया गया है। यह गठन उत्तर प्रदेश शासन की अधिसूचना पर किया गया है। इसी तरह की त्रिपक्षीय समिति इसके पहले महाराष्ट्र में बन चुकी है। जानकार बताते हैं कि यह त्रिपक्षीय समिति सिर्फ नाम के लिये बनायी जाती है।

<p>देश भर के मीडियाकर्मियों के वेतन, एरियर और प्रमोशन तथा अन्य सुविधाओं को दिलाने के लिये गठित जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश को सुचारू रूप से क्रियान्यवयन कराने के लिये भारत सरकार के आदेश पर अब देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में भी त्रिपक्षीय समिति का गठन किया गया है। यह गठन उत्तर प्रदेश शासन की अधिसूचना पर किया गया है। इसी तरह की त्रिपक्षीय समिति इसके पहले महाराष्ट्र में बन चुकी है। जानकार बताते हैं कि यह त्रिपक्षीय समिति सिर्फ नाम के लिये बनायी जाती है।</p>

देश भर के मीडियाकर्मियों के वेतन, एरियर और प्रमोशन तथा अन्य सुविधाओं को दिलाने के लिये गठित जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश को सुचारू रूप से क्रियान्यवयन कराने के लिये भारत सरकार के आदेश पर अब देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में भी त्रिपक्षीय समिति का गठन किया गया है। यह गठन उत्तर प्रदेश शासन की अधिसूचना पर किया गया है। इसी तरह की त्रिपक्षीय समिति इसके पहले महाराष्ट्र में बन चुकी है। जानकार बताते हैं कि यह त्रिपक्षीय समिति सिर्फ नाम के लिये बनायी जाती है।

उत्तर प्रदेश में जो कमेटी बनायी गयी है उसमें उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री को अध्यक्ष बनाया गया है। संयोजक और सदस्य होंगे प्रमुख सचिव श्रम, प्रमुख सचिव सूचना, निदेशक सूचना, श्रम आयुक्त उत्तर प्रदेश। इस कमेटी में श्रम विभाग, समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के प्रबंधन प्रतिनिधि और पत्रकारों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। उत्तर प्रदेश में बनायी गयी कमेटी में न्यूज एजेंसी, समाचार पत्र प्रतिष्ठानों के प्रबंधन प्रतिनिधि में दैनिक अमर उजाला नोएडा के प्रबंध निदेशक राजुल माहेश्वरी और केसर खुश्बू टाईम्स मेरठ के अंकित विश्नोई को शामिल किया गया है।

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इसी तरह पत्रकारों के प्रतिनिधि में लखनऊ के यू.पी. प्रेस क्लब के हसीब सिद्दीकी, लखनऊ के ही पत्रकार मुदित माथुर, लखनऊ के हिन्दुस्तान अखबार के वरिष्ठ कापी एडिटर लोकेश त्रिपाठी और काशी पत्रकार संघ के मानद सदस्य योगेश कुमार गुप्ता को शामिल किया गया है। इनके अलावा गैर पत्रकार कर्मचारियों एवं न्यूज एजेंसी कर्मचारियों के प्रतिनिधि के रुप में सीएनएन लखनऊ के प्रांशु मिश्रा, यूएनआई के संवाददाता जेपी त्यागी और अपर श्रम आयुक्त उत्तर प्रदेश या सदस्य सचिव अथवा श्रम आयुक्त द्वारा निर्दिष्ट कोई अधिकारी शामिल होगा। यह जानकारी प्रमुख सचिव राजेन्द्र कुमार तिवारी ने दी।

अब आईये इस समिति के पावर की बात कर लें। उत्तर प्रदेश सरकार का आदेश तो बताता है कि यह समिति दैनिक समाचार पत्रों की कुल आय के आधार पर उनके वर्गीकरण, दैनिक समाचार पत्र के कर्मचारियों के कार्य प्रकृति के अनुसार पदनाम के अवधारणा से संबंधित मामलों और अन्य अनुषांगिक मामलों में उत्पन्न विवादों को दूर करेगी। उपरोक्त मामलों के किसी भी प्रश्न या प्रश्नों के संबंध में संबंधित पक्षकारों के मध्य में राय में कोई अंतर होने की दशा में प्रमुख सचिव (श्रम) उत्तर प्रदेश सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा। उक्त समिति की बैठकें अध्यक्ष के विवेकानुसार आयोजित की जायेंगी। यह आदेश तुरंत प्रवृत होगा। माना जा रहा है कि यह समिति तीन साल के लिये बनी है। वैसे आपको बता दें कि ८ नवंबर २०१६ को इस तरह की समिति बनाने का आदेश जारी किया गया था। इसके पहले दो साल पूर्व एक समिति बन चुकी है मगर आज तक उसकी कोई भी बैठक ही नहीं हुयी।

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महाराष्ट्र में भी इसी तरह की त्रिपक्षीय समिति बनायी गयी है। इस समिति की बैठक महाराष्ट्र के मुंबई में बांद्रा कुर्ला काम्पलेक्श में 30 नवंबर 2016 को आयोजित की गयी थी मगर हुआ वही ढाक के तीन पात। सूत्र बताते हैं कि महाराष्ट्र के कामगार आयुक्त ने साफ कह दिया कि इस समिति को कोई वैधानिक पावर नहीं है। इसके बाद समिति के सदस्यों ने काफी नाराजगी भी जतायी थी।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टीविस्ट
मुंबई
९३२२४११३३५ 

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0 Comments

  1. ramkumar

    December 17, 2016 at 6:28 am

    when this commettii will be from

  2. इंसाफ

    December 17, 2016 at 10:02 am

    कमिटी लीपापोती के लिए बनायीं गयी है, ताकि इस बीच उत्तरप्रदेश विधान सभा का चुनाव समाप्त हो जाये. पत्रकार लाख अपने को होशियार माने , किन्तु प्रबंधन उनको मुर्ख बना ही देता है. एक उदाहरण देखिये. राष्ट्रीय सहारा ने मजीठिया देने के नाम पर खूब उस्तादी दिखाई है. डेस्क पर काम करने वालों को तो खूब रेवड़ियाँ बाटी पर रिपोर्टर के साथ अन्याय किया. उसके वाहन भत्ता और मोबाइल भत्ता को को एक साल तक रोककर उसे देना शुरू किया और उसका नाम मजीठिया बागे बोर्ड कर दिया. फिल्ड में काम करने वाले वरिष्ठ रिपोर्टर को कुछ नहीं मिला. यदि देना चाहते तो प्रमोट कर दे देते . वैसे भी १०-१५ वर्षों से आधिकारिक प्रमोशन किसी का नहीं हुआ है. कुछ चहेतों को उपेन्द्र राय ने रिदेजिनेट , REDEGINATE , किया उन्हें ही खूब फ़ायदा हुआ. और सभी सहाराश्री के आशीर्वाद का इंतजार कर रहे हैं.

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