अविनाश दास-
मैं मनोज मुंतशिर को नहीं जानता था। बाहुबली फ़िल्म आयी, तो पता चला इस फ़िल्म के हिंदी वर्ज़न के लिए मनोज मुंतशिर ने गीत लिखे हैं। फिर केसरी आयी, तो उसका गाना मिट्टी में मिल जावां मुझे बड़ा सही लगा। हालांकि दो दिन से किसी राजस्थानी गायिका की पुरानी रिकॉर्डिंग में लगभग एक ही तरह के बोल मार्केट में घूम रहे हैं।
फिर मैंने शेमारू पर एक पूरी सीरीज़ देखी, जो मुंतशिर ने पेश की थी। पुराने गीतकारों पर थी वह सीरीज़। मुझे लगा कि ये कौन है, जो इतनी शिद्दत के साथ गीतों की सतह पर लगा पड़ा हुआ है और मैं क्यों इसे नहीं जानता हूं। फिर मुग़ल डकैतों वाले इनके प्रोमो ने इन्हें जानने के मेरे उत्साह पर पानी फेर दिया। फिर पता चला कि वाणी प्रकाशन से इनकी पुस्तक आयी है, “मेरी फ़ितरत है मस्ताना”। और दो दिन पहले ही पता चला कि इसमें मुंतशिर ने कई लाइनें इधर उधर से मारी हैं। फिर मैंने ख़ुद खोजबीन की, तो और भी चोरियों का पता चला।
बहरहाल, मुंतशिर ने कहा कि उन पर जो आरोप लगे हैं, वह सिद्ध हो गये, तो लिखना छोड़ देंगे। रामकुमार ने सलाह दी कि लिखना जारी रखो, बस चोरी करना छोड़ दो। चोरी और सीनाज़ोरी नहीं चलेगी। फिर उनका पाणिनी आनंद (आजतक) के साथ इंटरव्यू आ गया कि “मेरी कोई भी रचना मौलिक नहीं है। भारतवर्ष में सिर्फ़ दो ही मौलिक रचनाएं हैं, वाल्मीकि की रामायण और वेदव्यास की महाभारत। इसके बाद जो भी है, सब घूम-फिर के इन्हीं दो महाग्रंथों से प्रेरित है।”
प्रेरणा अलग चीज़ है मुंतशिर, लेकिन तुमने जो किया है, वह लगभग लगभग चौर्यकर्म है। मैं यहां कुछ चीज़ें रख देता हूं, तुम ख़ुद ही देख लो।
-Original Poet: Robert J Lavery
If one day you feel like crying
Call me
I don’t promise that
I will make you laugh
But I can cry with you
-Copycat Poet: Manoj Muntashir
तुम कभी उदास हो, रोने का दिल करे, तो मुझे कॉल करना। शायद मैं तुम्हारे आंसू न रोक पाऊं, पर तुम्हारे साथ रोऊंगा ज़रूर।
-Original Poet: Shakeel Azmi
मरके मिट्टी में मिलूंगा खाद हो जाऊंगा मैं
फिर खिलूंगा शाख़ पर आबाद हो जाऊंगा मैं
-Copycat Poet: Manoj Muntashir
तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनके खिल जावां
-Original Poet: Jawad Sheikh
अपने सामान को बांधे हुए इस सोच में हूं
जो कहीं के नहीं रहते वो कहां जाते हैं
-Copycat Poet: Manoj Muntashir
हम दीवानों का पता पूछना तो पूछना यूं
जो कहीं के नहीं रहते वो कहां रहते हैं
मैं इतना नहीं लिखना चाहता था, लेकिन लिख दिया है तो आप ख़ुद ही तय कर लीजिए कि ये प्रेरणा ही है या कुछ और। हो सकता है मेरी समझ उतनी गहरी नहीं हो। बहुत धन्यवाद।
लेखक अविनाश दास ब्लागर, फ़िल्मकार और पत्रकार हैं.
Lovekesh Kumar
September 23, 2021 at 10:49 pm
Daso ke das avinash das
Dusron ki fati se tu ku udas
Raghvendra Tripathi
September 25, 2021 at 2:08 pm
साहित्यकार मनोज ‘मुंतशिर’ चोर कैसे?
मनोज ‘मुंतशिर’ पर चोरी का इल्ज़ाम बेजा और ग़ैर मुनासिब है।
If One day you feel like crying
Call me
I don’t promise that
I will make you laugh
But I can cry with you.
Robert J Slavery
तुम कभी उदास हो,रोने का दिल करे तो मुझे कॉल करना
शायद मैं तुम्हारे आँसू न रोक पाऊँ पर तुम्हारे साथ रोऊंगा ज़रूर।
फ़ोन को symbol बनाकर ठीक ऐसी ही मिली जुली बातें न जाने कितने लोग लिख रहे हैं ये चोरी नहीं है।
सारी दुनिया Hello कहती है,OK कहती है।
ये सब तक़लीद है,अनुकरण है।
शकील आज़मी का मतला बिल्कुल अलग है और मुंतशिर की तख़्लीक़ उस मानी में तो जाती है। लेकिन चोरी नहीं है।
मनोज मुंतशिर ने शकील आज़मी के मिसरे को न चर्बा किया है,न कोई सरका है। बल्कि अगर सच कहूँ तो शकील आज़मी का मिसरा ऊला एकदम मोहमिल है। यानी अस्पष्ट है।
मरके मिट्टी में मिलूँगा खाद हो जाऊंगा मैं
फिर खिलूँगा शाख़ पर आबाद हो जाऊँगा मैं,,,,,,
शकील ‘आज़मी’
तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनकर खिल जावां
मनोज ‘मुंतशिर’
आप ख़ुद ही सोचिए खाद सिर्फ़ fertilizer है।इसका काम मिट्टी को fertile करना है यानी उसे ऐसा उपजाऊ बनाना है कि बीज को नमूदार होने में सहूलत हासिल हो जाए।
खाद उगकर कभी फूल नहीं बनती और फिर आबाद होने की तो बात ही ख़त्म हो गई सच तो ये है अरूज़-ए-शायरी(शिल्प के अनुसार) के ऐतबार से खाद को क़ाफ़िया पैमाई की हैसियत से नाजायज़ तौर पर भरती की तरह इस्तेमाल किया गया है।
जिसका अलिफ़ से ये (from A to Z)तक कोई मानी नहीं है।
मनोज ‘मुंतशिर’ के यहाँ खाद फूल नहीं बन रहा है और फूल बनकर आबाद भी नहीं हो रहा है। बल्कि सीधा मिट्टी में मिलकर Natural तरीके से नमूदार हो रहा है।
T.S Eliot के मुताबिक शायरी imitation है यानी तक़लीद है। जिससे दुनिया का कोई भी शायर नहीं बच सकता।
नया तो कोई आसमान से उतरकर ज़मीन पर आने वाला कोई फरिश्ता ही कह सकता है।
डॉक्टर इकबाल को ही ले लीजिए यही ख़याल इकबाल ने इस तरह कहा है।
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे
कि दाना ख़ाक में मिलकर गुले गुलज़ार होता है।
इक़बाल
“अपने सामान को बाँधे हुए इस सोच में हूँ
जो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ रहते हैं”।
Jawad Shaikh
“हम दीवानों का पता पूंछना तो पूंछना यूँ
जो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ रहते हैं”।
मनोज मुंतशिर
जावेद शेख़ के शे’र का सानी मिसरा मनोज मुंतशिर के सानी मिसरे के अल्फ़ाज़ के साथ बेशक चल रहा है लेकिन दोनों के मिसरा ऊला दूसरी तरह से कहा गया है। ये भी तवारुद है।
पाकिस्तान के मशहूर शायर अब्दुल हमीद ‘अदम’ की ग़ज़ल के दो शेरों के ये मिसरे कई शायरों के यहां टकराये
“मैं फ़र्ज़ कर चुका हूँ कि साहिल नहीं रहा”
“शायद मैं ऐतबार के क़ाबिल नहीं रहा”
मिसरों के तवारुद से उर्दू शायरी भरी पड़ी है लेकिन पूरा शे’र टकराये तो चोरी है।
किसी रचनाकर पर बग़ैर सबूत और मालूमात के इल्ज़ाम नहीं लगाना चाहिए।
ग़ालिब का मिसरा है ‘जो नहीं जानते वफ़ा क्या है’ यही मिसरा ग़ालिब के दौर में और थोड़ा बाद तक कितने ही शायरों के यहां ऐसा का ऐसा ही पाया जाता है।इसे तवारुद कहते हैं और ऐसा ग़ज़ल में भरा पड़ा है।
मुंतशिर की तो बात ही क्या है लोगों ने ग़ालिब को फ़ारसी कलाम का चोर कहा और Shakespeare को तो Shakespeare मानने से इनकार कर दिया। वो भी यह कहते हुए कि इन ड्रामों का रचनाकार कोई और Shakespeare है।
अंग्रेज़ी शायरी के Romantic Period के जवान ख़ूबसूरत शायर John Keats को तो नक़्क़ादनुमा बेवकूफ़ों ने मौत की ही नींद सुला दिया था।अपनी बदनामियों से यह शायर रिन्दे बलानोश हो गया और फिर टीबी का बीमार होकर सिर्फ़ 26 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गया।
बाद में ईमानदार आलोचकों ने Keats को तारीफ़ के सातवें आसमान पर पहुँचाया और Second to Shakespeare कहा,,,,,,
John Milton पर डॉक्टर Johnson कि तन्क़ीद कितनी घटिया और बेमानी है।
हिन्दी के महान कवि जयशंकर प्रसाद को महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कवि मानने से ही इनकार कर दिया और डॉक्टर नामवर सिंह ने तो सुमित्रानंदन पंत जैसे महाकवि के बारे में यह तक लिखा कि इनके काव्य को dustbin में फेंक देना चाहिए।
यही प्रताड़ना सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जैसे कवि को भी झेलनी पड़ी।
बड़े शायर फ़िराक़ गोरखपुरी के असआर को असर ‘लखनवी’ ने लंगड़े लूले कहा।
ये सिलसिला चला आ रहा है जो काम करेगा और मंज़रे आम पर आएगा उससे छेड़छाड़ होनी ही है।
कहाँ तक लिखूँ शायरी की तारीख़ भरी पड़ी है ऐसे नादानों की आलोचनाओं से,जो हसद का शिकार होते हैं।
मनोज मुंतशिर मेहनत भी कर रहे हैं और मुताल्ला भी।
कभी वो दिनकर की रचना पढ़ते हैं तो कभी किसी दूसरे कवि या शायर के कलाम अहले ज़ौक़ तक पहुंचाते हैं।
बग़ैर मालूमात किसी पर कीचड़ नहीं उछालना चाहिए।
श्री विजेंद्र सिंह ‘परवाज़’
परवाज़ साहब एक सीनियर रचनाकार हैं।ग़ज़ल पर उनकी मज़बूत पकड़ है।अब तक हिंदी,उर्दू,अंग्रेज़ी में उनकी 42 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। और 32 साल अंग्रेज़ी शायरी को कई कॉलेज में पढ़ा चुके हैं।उनकी 5 किताबों से लगभग 1000 ग़ज़लें Facebook पर पढ़ी जा रही हैं।और YouTube पर कई दर्ज़न मुशायरे एशिया यूरोप और अफ्रीका के शहरों में पढ़े हुए देखे जा सकते हैं।
पिछले कई सालों से परवाज़ साहब आंखों की बीमारी से पीड़ित हैं।और लिखना पढ़ना बन्द है,मैंने उन्हें जो भेजा और उसके जवाब में उन्होंने जो बोला मैंने लिख दिया और साहित्य के जानकारों तक पहुंचा दिया।
मैं उन्हीं के ज़ेरे साया ग़ज़ल का फन सीख रहा हूँ।
परवाज़ साहब का कहना है बिना मालूमात कोई भी बात मत कहो,ख़ूब पढ़ो,थोड़ा लिखो और बेहद कम बोलो ताकि आपकी बात माक़ूल शक़्ल इख़्तियार कर सके।
शुक्रिया
राघवेंद्र त्रिपाठी।