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वाराणसी में हिन्दुस्तान अखबार के वरिष्ठ छायाकार मंसूर आलम का निधन

वाराणसी से एक दुखद खबर आ रही है। यहां हिंदुस्तान अखबार के वरिष्ठ फोटोग्राफर मंसूर आलम का निधन आज सोमवार की सुबह हो गया। वे कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुन्दर लाल अस्पताल में भर्ती कराया गया। रविवार को मंसूर आलम की हालात एकदम से खराब हो गयी और उन्हें सघन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में ले जाने की जरूरत पड़ गयी लेकिन सघन चिकित्सा कक्ष उस समय खाली नहीं था और अंततः सोमवार की सुबह मंसूर आलम ने दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

वाराणसी से एक दुखद खबर आ रही है। यहां हिंदुस्तान अखबार के वरिष्ठ फोटोग्राफर मंसूर आलम का निधन आज सोमवार की सुबह हो गया। वे कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सर सुन्दर लाल अस्पताल में भर्ती कराया गया। रविवार को मंसूर आलम की हालात एकदम से खराब हो गयी और उन्हें सघन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में ले जाने की जरूरत पड़ गयी लेकिन सघन चिकित्सा कक्ष उस समय खाली नहीं था और अंततः सोमवार की सुबह मंसूर आलम ने दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।

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उनके निधन से काशी के पत्रकारों और छायाकारों में शोक का माहौल है। सूत्र बताते हैं कि आर संजय जी और दूसरे मीडिया कर्मियों ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय प्रशासन से भी मदद मांगी मगर मंसूर आलम को कोई भी मदद काशी हिंदू विश्वविद्यालय प्रशासन से नहीं मिली। मीडियाकर्मियों ने उत्तर प्रदेश के राज्यमंत्री नीलकंठ से भी मदद मांगी मगर उनकी भी नहीं चली। हिंदुस्तान अखबार के वाराणसी संस्करण के संपादक पर भी लोग उंगलियां उठा रहे हैं जिन्होंने अपने फोटोग्राफर को न सिर्फ ढेर सारा तनाव देकर बीमार कर देने में बड़ी भूमिका निभाई बल्कि इलाज के दौरान अपने स्तर से कोई मदद नहीं की।

मंसूर आलम ने ‘आज’ समाचार पत्र के साथ-साथ सहारा में भी अपनी सेवाएं दी थीं। मंसूर आलम अपनी फोटोग्राफी और मधुर व्यवहार दोनों के लिए जाने जाते थे। वे कई फोटोग्राफरों के लिए अभिभावक की भूमिका में भी  रहे। उन्हें अश्रुपूरित श्रद्धांजलि। मंसूर आलम के निधन पर वाराणसी प्रेस क्लब के सचिव रंजीत गुप्ता ने गहरा दुख जताते हुए कहा है मंसूर भाई लाजवाब फोटोग्राफर के साथ साथ अच्छे दोस्त भी थे। उनके सहयोग से ही मैंने 90 वार्ड, शहर के पार्कों पर पहली बार स्टोरी किया था। यह पहली बार किसी अखबार में हुआ था। सहारा की इस स्टोरी के बाद काफी काम भी हुआ। मंसूर भाई का सहयोग नहीं मिलता तो यह स्टोरी नहीं कर पाता। मंसूर भाई का काशी के घाटों और काशी की संस्कृति से विशेष लगाव था। रंजीत गुप्ता ने यह भी जानकारी दी है कि 15 मई को एस. अतिबल छाया चित्र प्रतियोगिता में उनके साथ काम कर चुकी रेखा और मैने मंसूर आलम सम्मान पुरस्कार देने का निर्णय किया है.

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शशिकान्त सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
9322411335

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0 Comments

  1. Rajeev Singh

    May 9, 2017 at 5:22 am

    कितना बदनसीब था मंसूर इलाज के लिए…

    साथी मंसूर आलम के निधन की जानकारी मंसूर के पुराने साथी और सहकर्मी रह चुके मौजूदा समय बीजेपी नेता धर्मेद्र सिंह ने दी.यकीनन यह मेरे लिए बेहद तकलीफदेह खबर थी. दिन भर जेहन में मंसूर के खुशमिज़ाज़ चेहरे का अक्स बारबार घूमता रहा.मंसूर आज नहीं है लेकिन उनसे जुडी यादें आज भी ताज़ा है

    दैनिक आज,राष्ट्रीय सहारा और हिंदुस्तान तीन अखबारों में तकरीबन पंद्रह साल मंसूर आलम और मैंने साथ काम किया. मंसूर बनारस के एक टैलंटेड छायाकार थे.नब्बे के दशक पहले राष्ट्रीय सहारा और हिंदुस्तान में छपी तस्वीरें इस बात की तस्दीक करती है. १९९२-९३ में चंदौली के जमसोती गांव में भूख से दो मौत हो गई थी. मई-जून की चिलचिलाती धूप में सहारा की टीम के साथ जमसोती गए. मंसूर ने सुदूर गाव के बाशिंदों की दुर्लभ तस्वीरें उतारी थी जिसने भूख से मौत पर छपी खबरों का वजन बढ़ा दिया. ऐसा ही एक और वाकया बनारस के ‘दैनिक हिंदुस्तान’ के इतिहास में दर्ज़ है. संभवतः २००१ में बरसात के मौसम में एक दिन सुबह से रात मूसलाधार बारिस होती रही.मंसूर दिन भर बारिश में भीगते रहे तस्वीरें खीचते रहे.’हिंदुस्तान’ ने बारिश की तस्वीरो को एक या दो पेज बतौर फोटो फीचर छापा था. बनारस की घनघोर बारिश की उम्दा तस्वीरो के चलते दूसरे दिन का हिंदुस्तान खूब बिका दुसरे अख़बार तस्वीरो में पिट गए थे. मंसूर एक रिपोर्टर भी थे.संकट के समय मंसूर आलम से मैंने चार- पांच बार खबरे भी लिखवाई थी. मंसूर की भाषा पर पकड़ थी.वे कविता भी लिखा करते थे जिसे होली की पूर्व संध्या पर ‘राष्ट्रीय सहारा’ के साथियो के बीच सस्वर पाठ करते थे. मंसूर कबीरा… सारा…रारा…वाले पूरे बनारसी अंदाज़ में होली खेलते थे. दीपावली पर दोस्तों के घर मिलने जाते थे.
    बेहतरीन छायाकार के साथ साथ मंसूर अच्छे इंसान भी थे.सोच- विचार के स्तर पर कठमुल्लापन से बिलकुल दूर. उन्हें आधुनिक मुसलमान कहा जा सकता है, मसलन संकटमोचन और विश्वनाथ का बीच बीच दर्शन कर लेते थे.माथे पर बाबा विश्वनाथ का त्रिपुंड लगवा कर ही बाहर निकलते थे. रोजा के दिनों में कभी कभी नमाज़ भी पढ़ लेते थे. मुझे मंसूर के साथ कभी भी उनका कोई मुसलमान दोस्त नहीं दिखाई दिया.

    भारतीय कला और संस्कृति से उन्हें गहरा लगाव था.संकटमोचन संगीत समारोह हो या ध्रुपद मेला या फिर बेनिया बाग़ का मुशायरा ही क्यों न हो, फोटो खीचने के बाद वे नृत्य-संगीत, शेरो-शायरी का पूरा आनंद लेते थे.बनारस के घाटो से भी उन्हें मुहब्बत थी.सद्यःस्नाता युवती हो या घाट पर बैठा सन्यासी या कडकडाती ठण्ड में हरिश्चंद्र घाट पर जलते शव के बगल बैठा आग सेकता कुत्ता ही क्यों न हो ऑफ़बीट तस्वीर खीचने में वे माहिर थे.उनकी तस्वीरो की सबसे बड़ी खूबी यह थी कि उन्हें देख कर कोई भी बता सकता था कि ये बनारस के घाट की तस्वीरे है.स्व.पुरुषोत्तम मोदी ने विश्वविद्यालय प्रकाशन से छपी दो किताबो में मंसूर की तस्वीरों को स्थान दिया है. ईश्वर मंसूर आलम की आत्मा को शांति प्रदान करे.

    अंत में- उड़ जायेगा हंस अकेला जग दर्शन का मेला.

    राजीव सिंह
    ९८९१४२८३६९

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