एक समय उत्तराखण्ड की राजनीति में हड़कंप मचाने वाले वाले गीत ‘नौछमी नारेणा’पर टीवी पत्रकार मनु पंवार ने ढाई सौ पेज का एक शोध ग्रंथ लिख डाला है। इस किताब का विमोचन देहरादून के होटल रीजेंट में पद्मश्री और हिंदी साहित्य अकादमी सम्मान विजेता प्रख्यात साहित्यकार लीलाधर जगूड़़ी ने किया। जबकि वयोवृद्ध पत्रकार चारुचंद्र चंदोला ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
ऐसा पहली बार है जब किसी गीत पर कोई किताब सामने आई हो। मनु पंवार ने इस किताब में उत्तराखण्ड के चर्चित लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के लिखे और गाये गढ़वाली गीत ‘नौछमी नारेणा’ के राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों पर विस्तार से लिखा है। साथ ही इस गीत के बहाने उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक पहलुओं को भी उन्होंने छुआ है। 250 पेज की यह किताब एक तरह से एक गीत का संपूर्ण शोध ग्रन्थ भी है। जिसमें ‘नौछमी नारेणा’गीत के बहाने उत्तराखण्ड में सत्ता के चरित्र को भी उधेड़ा गया है। विमोचन समारोह में लेखक मनु पंवार ने बताया कि वो इस किताब पर वर्ष 2008 से काम कर रहे थे। इस दौरान उत्तराखण्ड में सत्तारूढ़ हुई सरकारों और उनके मुख्यमंत्रियों ने किस उदारता से लालबत्तियों की राजनीतिक संस्कृति पनपने दी और सरकारी खजाने पर भारी-भरकम बोझ डाल दिया, इस किताब में उसकी भी विस्तार से पड़ताल की गई है। लेखक मनु पंवार ने कहा कि ‘नौछमी नारेणा’ विवाद के दौरान हुई घटनायें उत्तराखण्ड के राजनीतिक इतिहास का महत्वपूर्ण कालखण्ड है और इसे अलग करके नहीं देखा जा सकता।
नरेंद्र सिंह नेगी के इस गीत ने 2005 से लेकर 2007 तक उत्तराखण्ड की राजनीति में बड़ी हलचल मचाई थी। उत्तराखण्ड की जागर लोकगीत शैली में लिखे इस गीत में तत्कालीन नारायण दत्त तिवारी सरकार की कार्यशैली पर तीखे कटाक्ष किए गए थे। तब सरकार ने इस गीत पर पाबंदी भी लगाई थी और इसे सेंसर भी किया गया था। तभी से उत्तराखण्ड में पहली बार सेंसरशिप लागू भी हुई। इस गीत का इतना व्यापक असर रहा कि वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तिवारी सरकार को बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा था। लेखक मनु पंवार ने किताब में पूरे घटनाक्रम को सिलसिलेवार ढंग से सामने रखा है। उन्होंने इस बात का जिक्र किया है कि कैसे नौछमी नारेणा गीत ने उत्तराखण्ड सरकार की नीतियों को प्रभावित किया। साथ ही अपने शोध में उन्होंने यह भी बताया है कि यह गीत कैसे उत्तराखण्ड की सरहदों से निकलकर अमेरिका और ब्रिटेन तक पहुंच गया। दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाली कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में कैसे इस गीत पर शोध आलेख प्रकाशित हुआ है।
मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार लीलाधर जगूड़ी ने इस मौके पर कहा कि मनु पंवार ने एक शोधकर्ता की तरह तटस्थ होकर किताब लिखी है। उन्होंने कहा कि पुस्तक रोकच है और एक गीत की जीवनी लिखकर मनु पंवार ने साहित्य जगह में और संभावनाओं के द्वार खोले हैं। वरिष्ठ पत्रकार चारुचंद्र चंदोला ने कहा कि नौछमी नारेणा दरअसल पहाड़ में विकसित हो रही नई तरह की राजनीतिक संस्कृति का भंडाफोड़ करता है और किताब में उन घटनाओं की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीकि संदर्भों में पड़ताल की गई है। कार्यक्रम में दिल्ली से आए पत्रकार चंद्रमोहन ज्योति और वेदविलास उनियाल ने भी विचार रखे। इस कार्यक्रम में साहित्य, पत्रकारिता, संस्कृति से जुड़ी कई बड़ी हस्तियां मौजूद थीं।
इस किताब को दिल्ली के श्रीगणेशा पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है। किताब की भूमिका में प्रख्यात साहित्यकार मंगलेश डबराल ने लिखा है कि मनु पंवार ने एक शोधार्थी की तरह इस गीत के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक आयामों की विस्तार से खोजबीन की है और उत्तराखंड की लोकगीति परंपरा में भी उसकी स्थिति का निर्धारण किया है। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन से हमें ये भी पता चलता है कि पहाड़ के धार्मिक अनुष्ठानों में गाये जाने वाले गीतों और छंदों के भीतर समकालीन राजनीतिक आशयों या प्रतिरोध के काम में आने की कितनी संभावनायें रही हैं।
टीवी पत्रकार मनु पंवार की ये तीसरी क़िताब है। पिछले साल हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा प्रकाशित उनका एक व्यंग्य संग्रह ‘ख़बरदार राजा दुखी है’ काफी चर्चित रहा था।
mahabir singh
October 23, 2014 at 10:19 am
narender singh negi is not only a geetkar and sangeetkar, he is more than that and a very good journalist. Doing his word for the wellness of uttrakhand. He wrote his report in the form of geet-sangeet. Either it is mahangai or construction of dam. He alwayas worte good geet and sangeet.