Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तर प्रदेश

पत्रकारों को मान्यता देने में भाषायी भेदभाव

उत्तर प्रदेश में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा पत्रकारों को मान्यता देने में भाषायी भेदभाव किया जा रहा है। पत्रकार-हित की बात करने वाली संस्थाएं और उनके पदाधिकारी इस पर ख़ामोशी साधे हुए हैं और विभाग के उच्चाधिकारी भी आँख बंद कर अपने मातहतों के इस कारनामे पर मुग्ध लगते हैं। उर्दू अखबारों में कार्यरत जिन हिन्दू पत्रकारों ने अपनी मान्यता की पत्रावली प्रस्तुत की, उसमे सूचना विभाग के अधिकारियों द्वारा कहा गया है कि “उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत कर अगली बैठक में प्रस्तुत करे।”

<p><span style="line-height: 1.6;">उत्तर प्रदेश में </span><span style="line-height: 22.3999996185303px;">सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा </span><span style="line-height: 1.6;">पत्रकारों को मान्यता देने में भाषायी भेदभाव किया जा रहा है। पत्रकार-हित की बात करने वाली संस्थाएं और उनके पदाधिकारी इस पर ख़ामोशी साधे हुए हैं और विभाग के उच्चाधिकारी भी आँख बंद कर अपने मातहतों के इस कारनामे पर मुग्ध लगते हैं। उर्दू अखबारों में कार्यरत जिन हिन्दू पत्रकारों ने अपनी मान्यता की पत्रावली प्रस्तुत की, उसमे सूचना विभाग के अधिकारियों द्वारा कहा गया है कि "उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत कर अगली बैठक में प्रस्तुत करे।"</span></p>

उत्तर प्रदेश में सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा पत्रकारों को मान्यता देने में भाषायी भेदभाव किया जा रहा है। पत्रकार-हित की बात करने वाली संस्थाएं और उनके पदाधिकारी इस पर ख़ामोशी साधे हुए हैं और विभाग के उच्चाधिकारी भी आँख बंद कर अपने मातहतों के इस कारनामे पर मुग्ध लगते हैं। उर्दू अखबारों में कार्यरत जिन हिन्दू पत्रकारों ने अपनी मान्यता की पत्रावली प्रस्तुत की, उसमे सूचना विभाग के अधिकारियों द्वारा कहा गया है कि “उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत कर अगली बैठक में प्रस्तुत करे।”

भाषा का ज्ञान होना या न होना अख़बार मालिक और संपादक पर निर्भर करता है और प्रायः समस्त अखबारों में आज भी अनुवादक कार्य करते है। जब इस तरह का कोई प्रावधान नियमावली में ही नहीं तो अचानक हिन्दू पत्रकारों से उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य मांगे जाने का क्या औचित्य है। क्यों नहीं मुसलमानों से भी उर्दू भाषा के ज्ञान का अभिलेखीय साक्ष्य माँगा गया। यही नहीं, हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में कार्य करने वालो से भी अभिलेखीय साक्ष्य माँगा जाना चाहिए। ऐसे भी संपादक हैं, जो अनपढ़ हैं या दसवीं पास हैं लेकिन सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा सिर्फ हिन्दू पत्रकारों से ऐसा सर्टिफिकेट मांगने पर लगता है कि अब पत्रकारों को भी मज़हब और भाषा के नाम पर बंटवारे की साज़िश का शिकार बनाया जा रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सूत्रों की मानें तो ऐसा करने के लिए इसी विभाग के उच्च अधिकारी द्वारा मौखिक आदेश दिए गए हैं। हमने तो यही सुना था, मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन हैं, हिन्दोस्ताँ हमारा….लेकिन यहाँ तो उल्टा ही फेर है। इस फैसले के खिलाफ भले ही सब खामोश रहें, मैंने एक पहल की है और अपने हिंदी भाषी भाइयों के हक़ और उनकी मान्यता के लिए संघर्ष भी करूंगा।

(लेखक से संपर्क फोन- 9335907080 मेल – [email protected])

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement