Ma Jivan Shaifaly : लड़की की उम्र 6 साल. बगीचे में साइकिल चला रही है. 10-12 साल के लड़कों का एक झुण्ड आता है और उसको घेर लेता है. लड़की के चेहरे का रंग उड़ जाता है. उसमें से एक लड़का हंसता हुआ उसकी ओर बढ़ता है और उसका स्कर्ट उठा देता है. लड़की डर के साइकिल पकड़े-पकड़े दौड़ लगा देती है. वो उसके जीवन की इस प्रकार की पहली घटना रहती है लेकिन वो किसी को कुछ नहीं बताती. उसके अन्दर एक बीज पड़ जाता है, लड़की होने का बीज…
लड़की कि उम्र 12 साल. स्कूल जा रही है. सामने से एक हट्टा-कट्टा आदमी आता है और उसकी दायीं छाती को दबोच कर भाग जाता है. लड़की के चेहरे का ही रंग नहीं उड़ता, उसकी आत्मा का रंग भी उड़ जाता है. वो अब भी किसी को कुछ नहीं बताती. अगले दिन से अपना स्कूल बैग पीठ पर लादने की बजाय सामने हाथ में थामने लगती है ताकि कोई दोबारा ये घिनौनी हरकत ना कर सके…… उसके अन्दर पडा बीज अंकुरित होने लगता है, तुम लड़की हो, तुम्हारे शरीर की संरचना लड़कों से अलग है…
लड़की की उम्र 14 साल. संयुक्त परिवार में पल रही लड़की दिन में परिचित चेहरों को देखती और रात में उन परिचितों के चेहरे अजनबी हाथों में बदल जाते और वो हाथ सांप की तरह छाती पर रेंगते नज़र आते. वो फिर भी चुप रहती. अगली रात से मां के साथ सोने लगती. कभी चचेरे-ममेरे भाइयों के बीच दिन में भी अकेले नहीं जाती. अंकुरित बीज पौधा बन जाता है, औरत और मर्द केवल विपरीत ध्रुव हैं जो एक दूसरे को आकर्षित करते हैं जिसके आगे खून के रिश्ते भी असफल हैं…
उम्र 21 साल. भीड़ भरी बस में चढ़ने की कोशिश. कोई पीछे से उसके पृष्ठ भाग में इतने जोर से चिकोटी काट लेता है कि वो दर्द से कराह उठती है. वो जल्दी से बस में चढ़ कर सीट पर बैठ जाती है और उसकी निगाह उस आदमी को ढूँढती रहती है जो शायद उसके आसपास ही बैठा होगा लेकिन पहचान नहीं सकती थी. पहचान भी लेती तो क्या करती, उसी तरह चुपचाप सह लेती जैसे बचपन से सहती आ रही थी. चाहे वो पौधा अब एक हरा-भरा वृक्ष बन गया हो, दूसरों को छाया देता हो लेकिन उसकी अपनी पीड़ा किसी को नहीं बता सकती……
उम्र 36 साल. शाम के सात बजे बाजू की गली से दवाई लेकर लौट रही है. अचानक एक बाइक उसके बाजू में आकर रुकती है और बाइक सवार उसकी पीठ पर हाथ फेर कर निकल जाता है. उसकी 36 साल की उम्र में वो पहली बार जोर से चीखती है, ‘साले कुत्ते, तू रुक, इधर आ, मैं बताती हूँ तुझे…’ , लेकिन उसकी चीख सुनने वाला कोई नहीं. आज उसे पहली बार एहसास होता है कि यदि वो उसी दिन चीख देती जब वो 6 साल की थी, लेकिन क्या तब भी वो उम्र भर उसके साथ होने वाली उन घिनौनी घटनाओं को रोक पाती…..
आज वो उम्र की 40वीं दहलीज़ पर है. एक पूरा वट वृक्ष…. लोग उसके नाम के आगे मां लगा कर उसे पुकारते हैं….. मां जीवन शैफाली… आज इस आधुनिक दौर में वो अपनी तस्वीर फेसबुक पर लगाती है और कमेन्ट आता है, ‘मस्त माल हो आप यार’.
क्या उसने छोटा सा स्कर्ट पहन रखा था? नहीं…
क्या उसने स्लीवलेस ड्रेस या पारदर्शी साड़ी पहन रखी थी? नहीं…
क्या उसका फोटो अंग प्रदर्शन करता हुआ था? नहीं…
फिर क्यों? सिर्फ इसलिए कि वो औरत है. उसे कोई हक नहीं कि 6 साल की उम्र में छोटा सा स्कर्ट पहने, बगीचे में साइकिल चलाए, 12 साल की उम्र में क्या ज़रुरत है उगती छातियों के साथ स्कूल जाने की और घर में???
चलो, वो सब मान लिया. फिर तो जवानी के दिनों में तो उसे बुर्का पहन कर, ऊपर से नीचे तक अपने शरीर को ढांक कर घर में छिपे रहना चाहिए. क्या ज़रुरत है जींस पहनने की या साड़ी में पीठ या कमर दिखाने की….
खुद को बड़ा परिपक्व समझती है तो क्या ज़रुरत है फेसबुक पर इस तरह नारी सुलभ अदाएं दिखाने की? चश्मा आँखों पर ही पहना जाता है, आँखों पर ही पहनती. चश्मे से तिरछी नज़र से देखोगी तो मर्द घायल नहीं होगा, वो भी 25 साल का लड़का…. एक 40 साल की औरत को देखकर ये कमेन्ट करता है तो क्या गलत करता है, सब औरतों के साथ यही होना चाहिए…
औरत कहीं की… शैफाली
जबलपुर के रहने वालीं पत्रकार, एक्टिविस्ट और आध्यात्मिक गुरु मां जीवन शैफाली के फेसबुक वॉल से. संपर्क: www.facebook.com/shaifaly.ylafiahs
विनायक
March 17, 2015 at 1:49 pm
आँख में आँख डालकर शर्मिन्दा कर देने वाले तेवर. बुरी नज़र उठाने पर आँखें नोच डालने वाले इस जज्बे की ही समाज को ज़रुरत है. क़ानून और पुलिस घटना के बाद सीन में आती है, घटना से तो खुद ही निपटना पड़ता है. घटना से खुद ही निपटते हुए दुराचारी मानसिकता को निपटा ही डालने की अद्भुत मिसाल.
Mazhar Beig
March 17, 2015 at 2:06 pm
बहादुर लड़की
कबीर
March 17, 2015 at 2:18 pm
ऐसा कमेन्ट करने वाला अपने घर की लड़कियों को भी ‘माल’ ही कहता, देखता और शायद ‘भोगता’ भी होगा… अगर हकीक़त में नहीं तो ख्यालों में सही
mini
March 18, 2015 at 4:56 am
ऐसे बेशर्मो को कुछ फरक नहीं पड़ता है. यह ऐसे ही माहोल मैं पढ़े बढे होते हैं….
Rashmi Swaroop
March 18, 2015 at 6:35 am
😆 😳 Har baar koi tagda jawab milta rahe to shayad darne lage ye log ki kahin koi “galat ladki” haath na pad jaye jo asi ki taisi hi karde palatkar…
kyuki inki soch to badalne se rahi… Darna chhod ab daraana hi apnaana hoga hume.
Thanks 🙂
Dharam Chand Yadav
March 18, 2015 at 7:31 am
लड़की तो बहादुर है लेकिन यह कदम पहले ही उठा लिया to bahut hi aachha hota
Dharam Chand Yadav
March 18, 2015 at 7:31 am
good
Aarti thakur
March 18, 2015 at 9:10 am
chhote bachche main itni samajh nahi hoti ki ye sab koi kyun ker raha hai per bachche ko galat dhang se chhute hi use is baat ka andaza ho jata hai. fir uski masumiyat khatam ho jati hai. wo ekdum kai chizon ko samjhne lgta hai. aise drindon se niptne ke liye forn apne mata pita ko btana chahiye kyunki mata pita hi uski us peeda ko samajh sakte hain. or un hathon ko saja de sakte hain.
DS Guleria
March 21, 2015 at 10:01 am
दुःख की बात है कि आज औरत घर में ही सुरक्षित नहीं है. यह हमारी गंदी मानसिकता को बताता है. ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए. वैसे भी अब कानून महिलाओं के ‘पक्ष’ में है.