ये फेमिली पिक अब अधूरी हो गई. इकलौता बेटा चला गया.
Yashwant Singh : ज्यादा सेहत वेहत के चक्कर में न पड़िए। दिल जो कहे करिए वरना दिल बुरा मान जाएगा और दौरे पर निकल पड़ेगा। हां, अतियों से बचिए। बंडारू दत्तात्रेय के इकलौते बेटे बंडारू वैष्णव की 21 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से मौत के मामले में जो पहला और एकमात्र कारण उभर कर सामने आ रहा है वो वजन घटाने के लिए जबरदस्त डायटिंग करना है।
स्वामी Vikas Mishra बताएंगे कि कैसे उन्होंने मोटापे को वरदान माना और हर हाल में प्रसन्न रहने के फार्मूले पर चलते हुए बहुतों के जीवन मे मुस्कान घोली। मेरठ वाले डॉक्टर राजेन्द्र सिंह भी ठीकठाक मोटे हैं। उनका दर्शन रहा है कि आदमी को एक्टिव होना चाहिए, वो मोटू हो या पतलू। अगर आप आलसी नहीं हैं, जीवन में भरपूर सक्रियता है तो मोटू-पतलू होना कोई बीमारी नहीं, यह केवल एक सोशल परसेप्शन है।
सो, हे आधुनिक नगर निवासियों… जिम में पसीना बहाने और जीभ पर पूर्ण लगाम लगा कर सुख पाने की खुशफहमी छोड़ दीजिए। हमको देखिए। भरी दुपहरिया देसी घी में पकी आलू दम नुमा सब्जी और ताजी ताजी छनती पूड़ी हिक भर चांप कर अभी अभी खीर में गोता लगाए हैं ताकि मन स्वीट स्वीट हो जाए। अब फोन बंद करके जा रहे हैं सोने। दिल्ली में दोपहर की नींद अफोर्ड करने वाला अगर कोई इंसान मेरे अलावा भी है तो वो वाकई सबसे खुशहाल इंसानों की लिस्ट में है। जै जै
Navneet Mishra : क्या जमाना आ गया। 21-21 साल के लड़के दिल का दौरा पड़ने से मर रहे। आज सुबह मेडिकल स्टूडेंट बंडारू वैष्णव की मौत चौंकाने वाली थी। यह कोई उम्र थी हार्टअटैक से जान गंवाने वाली। लाइफस्टाइल को दोष दें या फिर …क्रूर नियति की मार कहें।वही हुआ, जो नहीं होना चाहिए। वैष्णव पूर्व केंद्रीय मंत्री और तेलंगाना के सिकंदराबाद से बीजेपी सांसद बंडारू दत्तात्रेय के बेटे थे। 21 वर्षीय वैष्णव होनहार थे, एमबीबीएस में तीसरे साल की पढ़ाई कर रहे थे, मगर असमय काल का ग्रास बन गए।
अधेड़ उम्र और बुढ़ापे की बीमारियां अब युवाओं को निगल रहीं हैं। पिछले साल हमारे एक सहपाठी सर्वेश सिंह की इसी तरह मौत हो गई थी।शादी हुए महज छह महीने हुए थे। उम्र थी 25 साल। समोधपुर इंटर कॉलेज में सर्वेश ने मेरे साथ हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की पढ़ाई की थी। जीवनशैली को लेकर सचेत रहिए, सजग रहिए, मस्त रहिए, हंसते-खेलते रहिए। जिंदगी में लोड लेना मना है। ये सब कुछ उपाय आप स्वस्थ रहने के लिए कर सकते हैं, बाकि सब ईश्वर की मर्जी, कब तक किसी को धरती पर रखें और कब किसी को अपने पास बुला लें। प्रभु किसी पर समय से पहले मेहरबान न हों,औसत आयु तक जीनें दें, यही कामना है।
Vikash Rishi : कभी अपने बारे में भी सोचिये! 21 साल की छोटी सी उम्र में हार्ट अटैक. हम क्या खाते है, कब सोते है, कितना काम करते है, घर, परिवार, नौकरी, व्यापार, पढाई, सफलता, असफलता, रिश्तों का कितना तनाव अपने अन्दर रोज़ जमा करते है किसी को नहीं पता. मगर वो तो बड़े बाप की औलाद था पूर्व केंद्रीय मंत्री का बेटा था स्वयं डॉक्टरी की पढाई कर रहा था. उसे किस बात का तनाव मगर उसकी भी जीवन लीला एक हृदयघात से समाप्त हो गई. यक़ीनन उसके पास हर वो भौतिक सुविधा होगी जिसकी तमन्ना हम सबको होती है मसलन ऐसी रूम का सुख, महंगा मोबाइल, महंगी कार, बढ़िया से बढ़िया खाना. ज़मीन-जायदाद मगर फिर भी एक धोखा और ज़िन्दगी ख़त्म..
पत्रकार यशवंत सिंह, नवनीत मिश्रा और विकाश ऋषि की एफबी वॉल से.