Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

डॉ. नरेश त्रेहान का मेदांता हॉस्पिटल भी लुटेरा निकला, पारस हास्पिटल का हाल भी सुनिए

Pravin Bagi : डॉ. नरेश त्रेहान का मेदांता हॉस्पिटल भी लुटेरा निकला। आखिर मरीज जाये तो कहां जाये ? अस्पताल ने गर्व नामक बच्चे के बुखार के इलाज के लिये 17 लाख रुपये लिए। बच्चे की मौत भी हो गई। बच्चे के पिता की शिकायत पर हुई जांच में पता चला कि दवाओं का 17 गुणा ज्यादा दाम लिया गया। अस्पताल के एक दवा दुकान का लाइसेंस हरियाणा सरकार ने 7 दिनों के लिये निलंबित कर दिया है।

पटना के जयप्रभा अस्पताल को बिहार सरकार ने मेदांता के ही जिम्मे दे दिया है। निवेदन है कि बिहारवासी मेदांता के हाथों लूटने के लिए अपना दिल और बैंक बैलेंस मजबूत कर लें।डॉ. त्रेहान के राजनेताओं के साथ बहुत मधुर संबंध हैं। झारखंड में भी सरकार उनके लिए पलक पांवड़े बिछाये हुए है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी की एफबी वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से वरिष्ठ पत्रकार गुंजन सिन्हा की टिप्पणी पढ़ें….

Gunjan Sinha : पटना में भी एक पारस हॉस्पिटल है, किसी दूध वाले का. मेरे ८७ वर्षीय पिताजी का IGIMS और पाटलिपुत्र चौक स्थित एक और अस्पताल ने ऑपरेशन करने से मना कर दिया. उसका कहना था कि इस उम्र में आपरेशन बहुत रिस्की है और अब बहुत देर हो चुकी है. तब पारस के डाक्टरों ने कहा कि आपरेशन बिलकुल हो जायेगा. आस के मारे हम लोगों ने हाँ कर दी. लाखो रुपये फीस भरी और हफ्ते भर बाद अस्पताल से पिताजी का मृत शरीर लेकर वापस लौटे. पिताजी को जो तकलीफ हुई होगी सो अलग. पैसे के लिए ये साले चोर कुछ भी कर डालते हैं. हम सब उनके ऑपरेशन की इजाजत देने के लिए हमेशा खुद को दोषी मानेंगे.

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक और बात, कैंसर या दूसरी गंभीर बिम्मारियों के लिए मरीजों को लूटा जा रहा है. मैंने जब अपने इलाज के लिए खर्च के बारे में पता किया तो राजीव गाँधी कैंसर अस्पताल ने बताया, आठ लाख. TMH में १२ लाख. कोकिलाबेन में १५ लाख. डॉ अडवानी के यहाँ बीस लाख और एम्स दिल्ली में दो लाख. अब भला बताइये कि एक ही इलाज के लिए ये दसगुना अंतर क्यों?

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक ही दवा bortezomib की कीमत फाइजर कम्पनी में पहले १६ हजार प्रति इंजेक्शन थी अब घाट कर ११ हजार है लेकिन मुझे मिलती है ७ हजार में और यही दवा दूसरी कंपनी से तीन या चार हजार में. ऐसा अंतर क्यों? क्या वह भी सोने चंडी जैसे दो अलग मेटेरियल है? या दो ब्रांड के बीच टू व्हीलर और फोर व्हीलर का फर्क है? क्या क्वालिटी में ऐसा कोई फर्क हो तो फर्क बताये बिना यह फैसला ग्राहक पर छोड़ा जाना चाहिए जो इस मामले में लेमैन होता है?

मांडर के पास एक नीम हकीम, क्वैक बैठता था. गरीब आदिवासी मरीज से पूछता था – ये इंजेक्शन पांच का है, वो दस का और वो पंद्रह का. बोलो कौन सा चाहिए? भारत सरकार ने दवा कंपनियों और डाक्टरों को वही छूट दे रखी है कि वो अनजान मरीज को उसकी मर्जी से पूछ कर लूटते रहें क्या मरीज अपनी मर्जी बताने के लिए जरुरी सूचनाओं से लैस है? क्या ये वही तंत्र नहीं जिसमे भेडियो को मेमने मारने की पूरी छूट हो. और जिसमे मेमना खुद भी मिमिया कर हाँ हाँ करता रहे?

Advertisement. Scroll to continue reading.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement