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लोक को खारिज कर रहा टीवी-तंत्र अर्थात् भारतीय मीडिया की दोगलई

मीडिया स्वयं को जनता का वक़ील नियुक्त करके शुरुआत करता है ! सारे सवाल जो वह तंत्र के सामने दरपेश करता है, वह “लोक” के लिये करने का बैनर माथे पर लगाकर करता है। तभी लोकतंत्र बनता है। देश का सबसे तेज़ चिल्लाने वाला टाइम्स नाउ का एंकर अरनब गोस्वामी कहता है “नेशन वान्ट्स टु नो” ! “नेशन”देश के 125 करोड़ लोग हैं। 

मीडिया स्वयं को जनता का वक़ील नियुक्त करके शुरुआत करता है ! सारे सवाल जो वह तंत्र के सामने दरपेश करता है, वह “लोक” के लिये करने का बैनर माथे पर लगाकर करता है। तभी लोकतंत्र बनता है। देश का सबसे तेज़ चिल्लाने वाला टाइम्स नाउ का एंकर अरनब गोस्वामी कहता है “नेशन वान्ट्स टु नो” ! “नेशन”देश के 125 करोड़ लोग हैं। 

इन 125 करोड़ लोगों की अपनी पंचायत है “संसद” जो सुप्रीम है । उसके बाद सूबों की पंचायतें हैं और उससे निचली पंचायतें हैं । इन पंचायतों का एक स्वीकृत विधान है जो “लोकतंत्र” की सुप्रीमेसी पर आधारित है । लोकतंत्र में सुप्रीम लोक है तंत्र नहीं। लोक अपने कार्य संपादन के लिये तंत्र में यत्र तत्र फेरबदल किया करता है पर यह फेरबदल “लोक” को Replace नहीं कर सकता । सदा सर्वदा लोक ही तंत्र में फेरबदल कर सकता है । पर “देश” की ओर से टी वी पर चीख़ने वालों ने तंत्र की रक्षा में “लोक” को ही ख़ारिज करने पर अपने कला गला और रूप को न्योछावर कर दिया !

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लोक प्रतिनिधि दिल्ली राज्य की पंचायत का अधिकार छीनने की तंत्र द्वारा जारी हुई एक हुंडी पर लोकतंत्र के चौथे खंभों ने लोक के वक़ील होने का बैनर उतार कर तंत्र का वक़ील बनना ख़ुशी ख़ुशी क़बूल किया और हुर्रा लगाया ….”गृहमंत्रालय ने दिल्ली सरकार के पर क़तरे ” ! पर कतरना मतलब अधिकार हड़पना । लोक का वक़ील अधिकार हड़पने वालों के वक़ील में कैसे बदल गया ? राष्ट्र जानना चाहता है !

इतना ही नहीं। भारतीय मीडिया की एक और मज़ेदार दोगलई देखिए ! जब बसपा शिवाजी ,शाहूजी महाराज की असली पहचान बताती है कि ये कुर्मी थे ,ज्योतिबा फुले की पहचान बताती है कि ये माली थे ,गाडगे बाबा के बारे मे बताती है कि ये धोबी थे , सम्राट अशोक के बारे बताती है कि ये कोइरी थे ,तब बसपा जातिवाद फैलाने वाली पार्टी होती है ,जो समाज मे जहर घोलती है , जब भाजपा रामधारी सिंह दिनकर को भूमिहार बताती है, अशोक को कुशवाहा क्षत्रिय बताती है , शिवाजी को कुर्मी क्षत्रिय बताती है, अम्बेडकर को इस्लाम विरोधी बताती है ,तब भाजपा समाज सुधार ,समता मूलक समाज , और बन्धुत्व की भावना का प्रसार करने वाली पार्टी होती है जो देश को एक करने के लिये काम करती है ! है ना मज़ेदार दोगलई भारतीय मीडिया और समाज की ?

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ऐसे ही हालत के बीच कुल के बावजूद तानाशाही का प्रतिरोध हमेशा रचनाधर्मिता को विकसित करता है। लीजिये अवाम का नोटिफिकेशन ! बेहद तेज़ी से ट्विटर पर लोकप्रिय हो रहा है । “भ्रष्टाचार निरोध शाखा पुलिस स्टेशन केन्द्रीय सरकार के अधिकारी और कर्मचारियों या जनसाधारण के किसी सदस्य के विरुद्ध अपराधों का कोई संज्ञान नहीं लेगा ।” ये मोदी सरकार के गृहमंत्रालय द्वारा दिल्ली के बारे में जारी अधिसूचना का महत्वपूर्ण अंश है । इसके बाद कुछ कहने की ज़रूरत है ?

शीतल पी सिंह के एफबी वॉल से

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0 Comments

  1. purushottam asnora

    July 26, 2015 at 2:04 am

    vyakti our vichuti ko jati k khanche mai bantna nihit swarth se adhik kuch nhi hai. media mai desh our samaj ki soch se adhik swarthou ruchi hai, isiliye media k prati aadar ghat raha hai.

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