Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

एक पुस्तक का आत्मकथ्य : ‘मीडिया हूं मैं’

‘मैं सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, लड़ने के लिए भी।  बिना लड़े कभी कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। मैं उजले दांत की हंसी नहीं हूं अपने समय के आरपार। लड़ना है मुझे उनसे, जो भकोस रहे हैं सबके हिस्से का, सपनो के लुटेरे, सूचनाओं के तिजारती। मुर्दा नहीं हूं मैं। जिंदादिली के लिए पढ़ना होगा मुझे बार-बार। आओ, मेरे कारवां के लोगों, अपनी कलम, अपने सपनों के साथ, मेरे साथ।’ ये कुछ पंक्तियां हैं जयप्रकाश त्रिपाठी की सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘मीडिया हूं मैं’ से। विशेषतः जर्नलिज्म के छात्रों और नयी पीढ़ी के पत्रकारों के लिए उपयोगी, अपने कुल 608 पृष्ठों, तेरह अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक का मुखपृष्ठ रघुवीर सहाय की इन पंक्तियों से उद्धृत होता है- ‘कुछ तो होगा, कुछ तो होगा, अगर मैं बोलूंगा, न टूटे, न टूटे तिलिस्म सत्ता का,  मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा।’

<p><img src="images/demo/mediahumai.jpg" alt="" /></p> <p>'मैं सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, लड़ने के लिए भी।  बिना लड़े कभी कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। मैं उजले दांत की हंसी नहीं हूं अपने समय के आरपार। लड़ना है मुझे उनसे, जो भकोस रहे हैं सबके हिस्से का, सपनो के लुटेरे, सूचनाओं के तिजारती। मुर्दा नहीं हूं मैं। जिंदादिली के लिए पढ़ना होगा मुझे बार-बार। आओ, मेरे कारवां के लोगों, अपनी कलम, अपने सपनों के साथ, मेरे साथ।' ये कुछ पंक्तियां हैं जयप्रकाश त्रिपाठी की सद्यः प्रकाशित पुस्तक 'मीडिया हूं मैं' से। विशेषतः जर्नलिज्म के छात्रों और नयी पीढ़ी के पत्रकारों के लिए उपयोगी, अपने कुल 608 पृष्ठों, तेरह अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक का मुखपृष्ठ रघुवीर सहाय की इन पंक्तियों से उद्धृत होता है- 'कुछ तो होगा, कुछ तो होगा, अगर मैं बोलूंगा, न टूटे, न टूटे तिलिस्म सत्ता का,  मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा।'</p>

‘मैं सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, लड़ने के लिए भी।  बिना लड़े कभी कुछ भी हासिल नहीं हुआ है। मैं उजले दांत की हंसी नहीं हूं अपने समय के आरपार। लड़ना है मुझे उनसे, जो भकोस रहे हैं सबके हिस्से का, सपनो के लुटेरे, सूचनाओं के तिजारती। मुर्दा नहीं हूं मैं। जिंदादिली के लिए पढ़ना होगा मुझे बार-बार। आओ, मेरे कारवां के लोगों, अपनी कलम, अपने सपनों के साथ, मेरे साथ।’ ये कुछ पंक्तियां हैं जयप्रकाश त्रिपाठी की सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘मीडिया हूं मैं’ से। विशेषतः जर्नलिज्म के छात्रों और नयी पीढ़ी के पत्रकारों के लिए उपयोगी, अपने कुल 608 पृष्ठों, तेरह अध्यायों में विभाजित इस पुस्तक का मुखपृष्ठ रघुवीर सहाय की इन पंक्तियों से उद्धृत होता है- ‘कुछ तो होगा, कुछ तो होगा, अगर मैं बोलूंगा, न टूटे, न टूटे तिलिस्म सत्ता का,  मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा।’

‘पत्रकारिता का श्वेतपत्र’ शीर्षक से पुस्तक की भूमिका इस तीक्ष्ण आत्मकथ्य से शुरू होती है- ‘चौथा स्तंभ। मीडिया हूं मैं। सदियों के आर-पार। संजय ने देखी थी महाभारत। सुना था धृतराष्ट्र ने। सुनना होगा उन्हें भी, जो कौरव हैं मेरे समय के। पांडु मेरा पक्ष है। प्रत्यक्षदर्शी हूं मैं सूचना-समग्र का। जन मीडिया। …। ‘चौथा खंभा’ कहा जाता है मुझे आज। आखेटक हांफ रहे हैं। हंस रहे हैं मुझ पर। ‘चौथा धंधा’ हो गया हूं मैं।’

Advertisement. Scroll to continue reading.

धन-मीडिया के विरुद्ध एक बड़े जनमीडिया अभियान की वकालत करती ये पुस्तक बार बार स्वतंत्रता संग्राम के उन पुरखों की याद दिलाती है, जो पत्रकारिता के मूल्यों के लिए शहीद हो गये। पुस्तक के मुखपृष्ठ पर प्रस्तुत ये टिप्पणियां हमारे समय के लोभी-लालची धन-मीडिया के मुंह पर तमाचे की तरह बरसती हैं – ”एक समय आएगा, जब संपादकों को ऊंची तनख्वाहें मिलेंगी, किन्तु उनकी आत्मा मर जाएगी, मालिक का नौकर हो जायेगा (बाबूराव विष्णु पराड़कर)। पत्रकार बनना चाहते हो! कीमत एक बार लगेगी, नहीं लगने दी तो कीमत लगातार बढ़ती जायेगी, लगा दी तो दूसरे दिन से कीमत शून्य हो जायेगी (माखनलाल चतुर्वेदी)। समाचारपत्र पैसे कमाने, झूठ को सच, सच को झूठ करने के काम में उतने ही लगे हुए, जितने कि संसार के बहुत से चरित्रशून्‍य व्‍यक्ति (गणेश शंकर विद्यार्थी)। पत्रकारिता का व्यवसाय गन्दा हो गया है, इन्होंने अपना मुख्य कर्तव्य साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है (भगत सिंह)। पत्रकारिता निर्भीक होकर उन सभी को लताड़े, जिन्होंने उजाड़ पंथ का अनुसरण किया है, वह चाहे कितने भी ऊंचे पद पर हो (भीमराव अंबेडकर)। जो अखबार अपनी कीमत के सिवा कोई और रकम ले, वो इस फन के लिए धब्बा है। हम अखबारनवीसों की सतह को बहुत बुलंदी पर देखते हैं (अबुल कलाम आजाद)।”

पुस्तक में मीडिया के इतिहास, न्यू मीडिया, मीडिया के अर्थशास्त्र, मीडिया-राज्य-कानून और समाज, मीडिया में गांव और स्री, मीडिया में भाषा-साहित्य और मनोरंजन आदि विषय-केंद्रित विविध पक्षों को सविस्तार रेखांकित करने के साथ ही, सुपरिचित पत्रकार ओम थानवी, साहित्यकार अशोक वाजपेयी, प्रसिद्ध टिप्पणीकार आनंदस्वरूप वर्मा आदि बारह मीडिया चिंतकों के बहुचर्चित लेख और एक महिला पत्रकार का संघर्षनामा जर्नलिज्म के छात्रों और नये पत्रकारों के लिए संकलनीय हो सकते हैं। आद्योपांत पूरी पुस्तक एक जन-आह्वान जैसी पठनीयता से ललकारती-सी रहती है- जन-गण-मन का ‘मीडिया हूं मैं’, पुस्तक ही नहीं, अभियान भी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

पुस्तक ऑनलाइन उपलब्ध है, छूट के साथ… अमेजॉन के इस लिंक पर क्लिक करके किताब खरीद सकते हैं…

http://www.amazon.in/Media-Hun-Main-Prakash-Tripathi/dp/9383682345/ref=sr_1_1?m=A3W3AH43R8JOCW&s=merchant-items&ie=UTF8&qid=1403885118&sr=1-1

Advertisement. Scroll to continue reading.

अगर आनलाइन खरीदने में दिक्कत हो तो फिर नीचे दिए गए मेल या फोन नंबर पर संपर्क कर सकते हैं…

सिनीवाली शर्मा

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेल [email protected]

फोन : 08009831375

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. jaiprakash tripathi

    July 3, 2014 at 5:51 am

    सादर आभार यशवंत भाई, जन-मीडिया अभियान में सहयोग और जन-अदालत में पुस्तक की मौजूदकी के लिए।
    जयप्रकाश त्रिपाठी

  2. arpan Jain

    July 3, 2014 at 11:23 am

    मीडिया मित्रो के लिए अनिवार्य रूप से पड़ा जाने वाला दस्तावेज़ तय्यार किया है त्रिपाठी जी आपने ..
    मेने पुस्तक पड़ी , अभी तो आधी पुस्तक तक ही पहुचा और वाकई एक सुकून महसूस हुआ, मीडिया का दर्द भी नज़र आया ,
    पाठ्यक्र्म मे शामिल करने लायक पुस्तक है |

  3. Ajay ptrakar

    July 3, 2014 at 4:17 pm

    kanpur me book kehan se purchase ki jaye.mujhey apne journalism ke student ko propose karni hai — ajay patrakar , h. o.d. mosscom department , M.S.M.E.(got of india) my no -0 9336451309 . pl urgent inform me . require several book.s for our students

  4. Ajay ptrakar

    July 3, 2014 at 4:33 pm

    pl. reply ugent provide in my phone

  5. harekrishna

    July 28, 2014 at 1:13 pm

    किताब आनलाइन खरीदने के लिए अमेजन डॉट इन का जो लिंक दिया गया है वह खुल नहीं रहा है कृपया चेक करें

  6. JAI PRAKASH TRIPATHI

    August 3, 2014 at 11:48 am

    भाई हरेकृष्ण, अमेजॉन का लिंक सही है, पेज खुल रहा है, उस पर लगातार किताबें जा भी रही हैं। फिर भी यदि कोई तकनीकी दिक्कत लगे तो पिनकोड और निजी फोन नंबर समेत अपना पोस्टल पता मोबाइल फोन नं- 8009831375 पर मैसेज कर पुस्तक प्राप्त की जा सकती है।

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement