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सुख-दुख

पत्रकार साथियों कायर न बनो, भागो नहीं, मीडिया को बदलो, ताकत का एहसास कराओ

प्रिय पत्रकार साथियों, आए दिन सुना जा रहा है कि मीडिया प्रबन्धन या संपादकों की मोनोपोली के चलते हमारे साथी त्याग पत्र देकर भाग रहे हैं। युद्ध क्षेत्र से भागना कायरता है और कायर व बुजदिल सैनिक को सम्मान नहीं मिलता बल्कि उसकी आने वाली पीढ़ी को भी समाज के अपमान का सामना करना पड़ता है। हमारे साथी जिस समस्या से आजिज आकर त्याग पत्र देकर मीडिया से दूर होना चाहते हैं, क्या वे मीडिया से दूर रह कर अपने न्याय की लड़ाई लड़ सकते हैं? 

<p>प्रिय पत्रकार साथियों, आए दिन सुना जा रहा है कि मीडिया प्रबन्धन या संपादकों की मोनोपोली के चलते हमारे साथी त्याग पत्र देकर भाग रहे हैं। युद्ध क्षेत्र से भागना कायरता है और कायर व बुजदिल सैनिक को सम्मान नहीं मिलता बल्कि उसकी आने वाली पीढ़ी को भी समाज के अपमान का सामना करना पड़ता है। हमारे साथी जिस समस्या से आजिज आकर त्याग पत्र देकर मीडिया से दूर होना चाहते हैं, क्या वे मीडिया से दूर रह कर अपने न्याय की लड़ाई लड़ सकते हैं? </p>

प्रिय पत्रकार साथियों, आए दिन सुना जा रहा है कि मीडिया प्रबन्धन या संपादकों की मोनोपोली के चलते हमारे साथी त्याग पत्र देकर भाग रहे हैं। युद्ध क्षेत्र से भागना कायरता है और कायर व बुजदिल सैनिक को सम्मान नहीं मिलता बल्कि उसकी आने वाली पीढ़ी को भी समाज के अपमान का सामना करना पड़ता है। हमारे साथी जिस समस्या से आजिज आकर त्याग पत्र देकर मीडिया से दूर होना चाहते हैं, क्या वे मीडिया से दूर रह कर अपने न्याय की लड़ाई लड़ सकते हैं? 

आज के परिवेश में चौथे स्तम्भ कहे जाने वाले भी कहीं न कही अपने आप में दोषी हैं। पत्रकारिता को पक्षकार बनके या चाटुकार बनके कलंकित करने वालों का सम्मान है। स्वाभिमानी पत्रकार जो कलम के वास्तव में सिपाही हैं, उन्हें बेईमान सरकार व नौकरशाह कभी पसन्द नहीं करते। आज जरूरत है, हमे न्याय की लड़ाई लड़ने की क्योंकि कल किसी और जगेन्द्र सिंह, धीरज पाण्डेय की संदेहास्पद मौत न हो? इन मौतों का जिम्मेदार कौन है? कभी आपने इस पर विचार किया? नहीं तो अभी भी वक्त है, विचार करें और इन संदेहास्पद मौतों के जिम्मेदारों को कानून के सलाखों तक पहुंचाने की लड़ाई में भागीदार बनें। 

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कानूनी जंग को धार देने के लिए हमे सरकारों को जगाना होगा। आज मीडिया के उच्चपदस्थ लोगों व प्रबन्धन की नजर में ग्रामीण पत्रकारों के लिए कोई स्थान नहीं है। उन्हें नहीं मालूम कि कार्यकर्ताओं की बदौलत ही उनका एक स्थान बना है। कार्यकर्ता अपनी संस्था का टीआरपी बढ़ाने के लिए भारी से भारी मुसीबत मोल ले लेता है और उन्हीं के ऊपर किसी प्रकार की मुसीबत आ जाए तो संस्था के लोग सीधे मुकर जाते हैं। इसके लिए हमें हड़ताल आदि हथकण्डा अपना कर मीडिया के उच्चपदस्थ लोगों की मोनोपोली को तोड़ना होगा। सरकारों के खिलाफ हमें लड़ाई छेड़ कर अपने अधिकारों का एहसास कराना होगा। त्याग पत्र देने से हम लड़ाई नहीं लड़ सकते। बेरोजगारी का समय है, एक जाएगा, दूसरा आएगा और समस्याएं जस की तस मुंह बाए खड़ी रहेंगी। आइए, हम भी एक संगठन के माध्यम से अपनी सेवा व सुरक्षा की मांग के लिए लड़ाई को नयी धार दें।

पूरन प्रसाद गुप्त से संपर्क : [email protected]

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0 Comments

  1. इंसान

    July 13, 2015 at 5:31 pm

    विषय अच्छा है लेकिन लेख की विषय-वस्तु में विषय प्रबंधन हेतु भाषा की दृढ़ता और वांछित प्रभाव दोनों अनुपस्थित हैं|

  2. Ajay Kumar

    September 14, 2016 at 3:33 am

    Dear Team
    I wanna to you do the strength for many people but not for all supporters

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