साक्षी जोशी न्यूज़ चैनल इंडस्ट्री की बेहद प्रभावी एंकर हैं। उनके पति विनोद कापड़ी भी टीवी इंडस्ट्री के बेहद इनोवेटिव प्रोडूसर रहे हैं। कापड़ी के साथ कभी काम करने वाले अभिषेक उपाध्याय भी इस इंडस्ट्री के बेहतरीन पत्रकार हैं और उनके तेवर मुझे एंग्री यंगमैन सरीखे लगते हैं। लेकिन ये हमारा दुर्भाग्य है कि साक्षी और अभिषेक के बीच कुछ प्रकरणो को लेकर बात इतनी बढ़ी, और बढ़कर इतनी बदरंग होती चली गई कि साक्षी ने अभिषेक और उनके कुछ मित्रो पर आपराधिक मुकदमा दर्ज़ करा दिया। ज़ाहिर है अब मामला फौजदारी का है और इससे पुलिस निपटेगी।
इस मामले पर मुझे इसलिए लिखना पड़ा क्यूंकि हर पेशे में, चाहे वकालत हो, ब्यूरोक्रेसी हो, कॉर्पोरेट हो…. हर बिरादरी में इस तरह के गहरे मतभेद, विवाद और आपसी विरोध, प्रोफैशनल्स के बीच रहते हैं। लेकिन जितनी छीछालेदर, कीचड़ उछाल और एक दूसरे को निपटाने की होड़, इन दिनों मीडिया में है उतनी कहीं नहीं दिखती है।
एक ऐसे दौर में जब मीडिया संस्थान सिमट रहे हैं, पत्रकारों की छंटनी हो रही है और दर्ज़नो स्थापित संपादक सड़क पर हैं….हमे बिरादरी को फौजदारी के आपसी मुकदमो से दूर रखना होगा …कम से कम झगड़ों को इतना न बढ़ने दें कि किसी के जेल जाने की नौबत आ जाए ! प्रयास ये भी हों, कि किसी की निजता पर सार्वजनिक प्रहार से बचा जाए । जाने अनजाने , ऐसे निर्मम प्रहार , अक्सर पीड़ित परिजनों की मनोदशा पर बुरी छाप छोड़ जाते हैं।
हमारी इंडस्ट्री में, खासकर न्यूज़ चैनल में, सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण , बहुत सी महिला एंकर, शोहरत के मामले में बहुत आगे निकल गई।
इनका स्वागत करिये, इनके यश को स्वीकार करिये। इनके चरित्रहरण, इनकी निजता पर घोर हमले से बचिए। ये सोच छोटी है, फ्यूडल है और ‘मेल शावनिस्ट’ समाज की द्योतक है।
निसंदेह, हमे आपसी झगड़ों, फौजदारी से आगे निकलना है। पत्रकारिता की गिरती साख और कुंद होते सरोकार पर केंद्रित होना है। देश के बदलते परिदृश्य में, पत्रकारिता की नई चुनौतियों का सामना करना है। खत्म होती खोजी रिपोर्टिंग और ख़त्म होती कस्बाई और रीजनल रिपोर्टिंग की लौ तेज़ करनी है। मेरा अनुरोध साक्षी से है कि वो अभिषेक को भूलें, आगे बढ़ें … और अपनी पत्रकारिता की धार को और तेज़ करें। अभिषेक को भी पीछे नहीं आगे देखना होगा। उन्हें फिर टीवी में लौटना चाहिए। काफी एनर्जेटिक हैं और बढ़िया रिपोर्टिंग करते हैं।
संयोग से मेरे पास दोनों के फ़ोन नंबर नहीं हैं। इन दोनों से कभी बात भी नहीं हुई। इसलिए सीधे हस्तक्षेप करने की मेरी सीमा है। लेकिन जिन वरिष्ठ पत्रकारों के पास इनके नंबर हैं और इनसे बातचीत होती हैं, वे हस्तक्षेप करें …. क्यूंकि तमाशबीन बनकर फौजदारी के झगड़ों का लुत्फ़ लेना। बेहद कमज़ोर ज़ेहनियत है।
वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा की एफबी वॉल से.
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