सत्तर सालों में देश में जो नहीं हुआ वह चार सालों में मौजूदा वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी ने कर दिखाया है। मोदी सरकार आने के बाद से ही मुल्क की संवैधानिक इदारों (संस्थानों) को कमजोर करने या या बेकार करने की मुहिम शुरू हो गई थी। मोदी ने सबसे पहले प्लानिंग कमीशन को खत्म करके नीति आयोग बना दिया था। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट, पार्लियामेंट और एलक्शन कमीशन की हैसियत खत्म की गई। इन सबपर नजर रखने वाले मुल्क के मीडिया को खौफजदा करके या खरीद कर उसकी साख खत्म कर दी गई।
आज हालत यहां तक पहुच गई है कि देश के लोग मीडिया पर एतबार करने के लिए तैयार नहीं हैं। मीडिया के एक बड़े हिस्से ने खुद ही मोदी और उनकी सरकार की खुशामद में खुद को इस हद तक गिरा लिया है कि उसकी किसी भी खबर पर लोगों को एतबार नहीं रह गया। मीडिया का एक छोटा हिस्सा मोदी की खुशामद में नहीं फंसा और ईमानदारी से अपना काम करता रहा तो मोदी भक्तों, आरएसएस और बीजेपी ने उसके खिलाफ घटिया प्रोपगण्डा करके उसकी साख को भी काफी हद तक मजरूह कर दिया। अब मोदी ने मुल्क की आला सतही अफसरशाही को मुंतखब करने के लिए मुल्क के संविधान के जरिए कायम किए गए यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) की अहमियत खत्म करके उसके भी वजूद (अस्तित्व) को खत्म करने की शुरूआत कर दी है।
मोदी सरकार ने अहलियत (प्रतिभा), सलाहियत और एक्सपर्टाइज के नाम पर ज्वाइंट सेक्रेटरी के ओहदे पर सीधे अपनी पसंद के लोगों को बिठाने की शुरूआत कर दी है। पहले मरहले में ऐसे तकरीबन एक दर्जन लोगों को ज्वाइंट सेक्रेटरी बनाने का फैसला किया गया और यह कहा गया कि आहिस्ता-आहिस्ता इस तादाद में इजाफा किया जाएगा। मतलब मेहनत न पढाई न कम्पटीशन मोदी की मेहरबानी से उनकी पसंद के लोग सीधे ज्वाइंट सेक्रेटरी बन जाएंगे। अभी तक ज्वाइंट सेक्रेटरी बनने के लिए आईएएस अफसरान को कम से कम पच्चीस साल तक सख्त मेहनत करना पड़ती है। दाखिला और खारजा (गृह और विदेश) मिनिस्ट्री में आईपीएस और आईएफएस अफसरान को भी इतने ही साल मेहनत करना पड़ती है। अफसरान को फील्ड पोस्टिंग भी करनी पड़ती है। कई बार तो सर्विस बुक में मुनासिब इण्ट्रीज होने की वजह से कई अफसरान को ज्वाइंट सेक्रेटरी बनने में कई साल की ताखीर भी हो जाया करती है। अब मोदी की नई पालीसी के तहत इन तमाम जरूरतों को पूरा करने से भी छूट मिल जाएगी।
भारत सरकार में ज्वाइंट सेक्रेटरी का ओहदा बहुत अहम होता है कई बार ईमानदार ज्वाइंट सेक्रेटरीज, वजीरों और वजीर-ए-आजम तक की मर्जी मुताबिक गलत काम करने के लिए तैयार नहीं होते है। नरेन्द्र मोदी शायद यह रूकावट खत्म करना चाहते हैं। उन्हें यह खुशफहमी भी है कि आने वाले कम से कम दस सालों तक उन्हीं की सरकार मुल्क में रहने वाली है। यह तो अच्छा है कि लोक सभा एलक्शन में अब बमुश्किल आठ-दस महीने ही बचे हैं तब उन्होने यह डिक्टेटराना अमल शुरू किया है। उम्मीद यह है कि वह जितने भी ज्वाइंट सेक्रेटरी इस तरह अपनी पसंद के मुकर्रर (नियुक्त) करेगे आने वाली सरकार उन्हें हटा देगी और अगर ऐसा न हुआ तो नरेन्द्र मोदी हिन्दुस्तान की नौकरशाही को पाकिस्तान जैसी नौकरशाही बना देंगे।
पाकिस्तान में भी जुल्फिकार अली भुट्टो ने ऐसा ही किया था। भुट्टो ने अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और बडे़ जमींदारों के उन बेटे बेटियों को सीधे सीएसपी (सिविल सर्विसेज आफ पाकिस्तान) में नामजद करके जिलों में कलक्टर और सेण्ट्रल सेक्रेटेरिएट में तैनात कर दिया था। जिनके पास डिग्रियां तो थीं लेकिन भुट्टो और उनके खानदान की वफादारी के अलावा दूसरी कोई काबिलियत नहीं थी। वह सब सीएसपी तो हो गए लेकिन मुल्क और सरकार का बेड़ा गर्क करने का ही काम किया था। अब मोदी हिन्दुस्तान में उसी तर्ज पर दस लोगों को सीधे ज्वाइंट सेक्रेटरी बनाने जा रहे हैं।
जाहिर है यह दस वही लोग होगें जिनका पूरा कमिटेमेण्ट मोदी और आरएसएस के लिए होगा। वह लोग भारत सरकार के अहम ओहदों पर बैठ कर क्या-क्या करेंगे इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। मोदी सरकार में एक और काम हुआ है वह है दुनिया की सबसे अच्छी और सबसे ज्यादा सेक्युलर हिन्दुस्तानी फौज में आरएसएस की घुसपैठ कराने का काम। ऐसा ही काम भुट्टो को सत्ता से हटाकर फांसी के बहाने उनका कत्ल कराने वाले जनरल जिया उल हक ने अपनी फौजी हुकूमत के दौरान पाकिस्तान में किया था। जनरल जिया ने पाकिस्तान के कट्टर स्यूडो मजहबी लोगों की पाकिस्तानी फौज में घुसपैठ कराई थी जो आज तक है। उनके इन कामों की वजह से आज पाकिस्तानी फौज और पूरे मुल्क का जो हाल है वह दुनिया के सामने है। तो क्या वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी भी भुट्टो और जनरल जिया उल हक की तरह भारत को भी पास्तिन जैसा बनाने की गलती कर रहे हैं।
वजीर-ए-आजम नरेन्द्र मोदी यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की हैसियत क्यों कम कर रहे हैं आज वह जिस सरदार वल्लभ भाई पटेल को कांग्रेस से छीन कर अपना बनाने की कोशिशों में मसरूफ हैं यह कमीशन उन्हीं सरदार पटेल की देन है। संविधान के मुताबिक यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन कायम करते वक्त सरदार पटेल ने कहा था कि देश में अफसरशाही को गैरजानिबदार (निष्पक्ष), ईमानदार और मेहनती होना चाहिए और यह तभी मुमकिन है जब उनकी भर्ती का सिस्टम सख्त और ईमानदार से भरा होगा।
अब अगर सख्त मेहनत और कड़े मुकाबले के बगैर मुल्क की सबसे बड़ी अफसरशाही में नामजदगी का सिलसिला शुरू हो जाएगा तो फिर अफसरशाही किसी भी कीमत पर ईमानदार और गैरजानिबदार नहीं रह पाएगी। आरएसएस शुरू से ही एससीएसटी तबके क रिजर्वेशन का मुखालिफ रहा है। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जब बैकवर्ड तबकों को भी रिजर्वेशन देने के लिए मण्डल कमीशन की सिफारिशात लागू की थी तो उस वक्त भी आरएसएस कुन्बे ने उसकी सख्त मुखालिफत की थी बीजेपी ने उनकी सरकार से हिमायत वापस लेकर न सिर्फ सरकार गिरवा दी थी बल्कि लाल कृष्ण आडवानी ने फौरन ही सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा निकाल दी थी। आज भी आरएसएस के लोग रिजर्वेशन के खिलाफ हैं।
मोदी ने भी शायद सिविल सर्विसेज में दलितों और पिछड़ों का रिजर्वेशन खत्म करने की गरज से यह सिलसिला शुरू किया है। दूसरी वजह यह समझाई जाती है कि गुजिश्ता कई सालों से मुस्लिम उम्मीदवार भी चालीस से पचास तक यूपीएससी मुकाबले में पास हो रहे हैं जाहिर है मुबय्यना (कथित) प्रतिभा के नाम पर मोदी सरकार जिन लोगों को सीधे ज्वाइंट सेक्रेटरी बनाएगी उनमें न दलित होंगे न पिछड़े न मुसलमान।
आएएस एसोसिएशन और सेण्ट्रल सर्विसेज के दीगर काडर्स क अफसरान की एसोसिएशन्स ने मोदी सरकार के इस फैसले की मुखालिफत की है। देश की दलित और आदिवासी तंजीमों (संगठनों) की कानफेडरेशन ने इसपर सख्त एतराज करते हुए एलान किया है कि अगर मोदी सरकार ने इस तरह ‘लेटिरल रिक्रूटमेट) के जरिए ज्वाइंट सेक्रेटरी जैसे सीनियर ओहदे पर अपने लोगों को बिठाने की कार्रवाई शुरू करने से पहले बाकायदा एक एक्ट पार्लियामेंट में लाकर इसमें भी दलितों और आदिवासियों के मफाद के तहफ्फुज (सुरक्षा) का बंदोबस्त न किया तो आइंदा अगस्त महीने मे पूरे देश में वह लोग बड़े पैमाने पर आंदोलन छेड़देंगे।
कान्फेडरेशन के लीडर अशोक भारती ने कहा कि मोदी सरकार और आरएसएस को दो अप्रैल के आंदोलन को याद रखना चाहिए और हमारा मतालबा मंजूर किया गया तो हम अगस्त में उससे कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर आंदोलन करेगे। हैरत है कि इतने अहम मसले पर भी देश के मीडिया ने खामोशी अख्तियार कर रखा है किसी भी टीवी चैनल ने इसपर कोई बहस नहीं कराई अखबारात में कुछ ने खबरें जरूर शाया (प्रकाशित) की लेकिन सिर्फ कहने के लिए अंदर के सफहात (पृष्ठों) पर छोटी-छोटी खबर लगा कर अपना फर्ज अदा कर लिया। मीडिया इस मसले पर इसलिए भी खामोश है कि मीडिया में खुद ही दलितों और आदिवासियों को नहीं रखा गया है।
टीवी चैनलों में बैठे जो सवर्ण इस ख्याल से इस मसले पर खामोश हैं उन्हें देश के मफाद की कोई फिक्र नहीं है। उन्हें यह अंदाजा नहीं है कि अगर मोदी सरकार के इस प्रोग्राम पर अमल हो गया तो हर आने वाली सरकार अपनी पसंद के कमिटेड लोगों को ऊंचे ओहदों पर बिठाने का काम करती रहेंगी फिर अफसरशाही देश के लिए नहीं होगी अलग-अलग पार्टियों के लिए अलग-अलग नजरियात (विचार धाराओं) के मुताबिक काम करने वाली हो जाएगी। अफसरान में भी सियासी पार्टियों की तरह गरोहबंदी और एक दूसरे की मुखालिफत दिखने लगेगी। फिर सरदार पटेल के उसूलों और उनके कायम किए हुए यूपीएससी जैसे इदारों और गैरजानिबदार अफसरशाही के उनके ख्वाब का क्या होगा?
लेखक हिसाम सिद्दीकी का यह लेख उर्दू अखबार ‘जदीद मरकज’ में ”मोदी मार्का नौकरशाही” नामक शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है.
Amit
June 30, 2018 at 10:42 pm
आप खुद ही निष्पक्ष नहीं बातें पक्षपात कि कर रहे हैं। क्या मोदी से पहले मीडिया निष्पक्ष थी? मोदी के आने से मीडिया का असली चेहरा सामने आया है। आपके पेट में दर्द इसलिए हो रहा है क्योंकि अब वाम मीडिया का प्रभाव कम हो रहा है। एनडीटीवी जिसके मालिक डॉक्टर प्रण्य राय सीपीएम नेता प्रकाश कारत के रिश्तेदार थे क्या वह कभी निष्पक्ष रह सके? आखिर एक पत्रकार के पास इतनी दौलत आई कहां से की वो चैनल का मालिक ही बन बैठा?न्यूज 24 कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला का चैनल, हिन्दूस्तान टाईम्स की चेयरपर्सन का कांग्रेस नेता होना, इंडिया न्यूज के मालिक विनोद शर्मा का पूर्व कांग्रेसी मंत्री होना, आईबीएन7 के एडिटर आशुतोष का आम आदमी पार्टी ज्वाइन करना क्या मोदी सरकार के बाद हुआ? दरअसल यह तो भारतीय मीडिया में दशकों से चल रहा था मोदी सरकार ने तो इन्हें नंगा किया है। आपके पेट में दर्द इसलिए हो रहा है कि अब अल्पसंख्यक के नाम पर निष्पक्ष खबरें बताकर पक्षपात नहीं किया जा रहा। आप मोदी की विकास से जुड़ी नीतियों का विरोध करते तो अलग बात थी लेकिन अब यह डार्मा बहुत हुआ जनता खूब समझती है आप जैसों को। रही बात आईएएस की तो केवल एक परीक्षा के दम पर किसी की योग्यता को आंकना ही गलत है। मेरे विचार में पूरी आईएएस व्यवस्था ही भंग कर देनी चाहिए? कितने आईएएस खुद ही यह परीक्षा दुबारा पास कर सकते हैं? बिना अनुभव विभाग के सबसे ऊपर पद पर बैठा देना पूराने कर्मचारियों के साथ अमानवीय व्यवहार है। निराधार बातें कर आप केवल अब तक जनता को मुर्ख बनाते आएं हैं पर अब यह नहीं चलेगा। ये पब्लिक है सब जानती है।