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सुख-दुख

दीदी भैय्या सर मैडम अंकल आंटी तक बना डाला लेकिन किसी ने मीडिया में नौकरी न दी!

Adv. Shyam Kishore Tripathi

सन 2014… पत्रकारिता नामक चकाचौंध भरी दुनिया में जाने के लिए एक कॉमर्स क्षेत्र का लड़का सब कुछ छोड़ कर 2 वर्ष का वक्त इस कदर होम किया कि न नींद की खबर थी न समय का पता। लगता था कि बस अब वही सब सच होने वाला है जिनके बारे में सुना-देखा है। 6 महीने पूरे होने के बाद ठंड की ताबड़तोड़ सुबह, जब लोग रजाई में दुबके होते हैं, मैं अपनी ठंड को दिमाग से हटा कर डीएनए नामक एक न्यूज पेपर में इंटर्नशिप कर रहा था।

अभी सिर्फ 6 महीने ही हुए थे और ठंड से दिमाग जमने के बजाए मेरी मेहनत और लगन से दिमाग पिघल गया था। एक जुनून था कि पत्रकारिता की जगत में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में करना है। फिर वर्ष 2015 जून के गर्मी के तपती लू के थपेड़ों की परवाह किये बिना इलाहाबाद से एक बार फिर इंटर्नशिप करने नोएडा आ गया। मुझे थोड़ा थोड़ा अनुमान होने लगा था कि यहां कोई अपना नहीं है लेकिन फिर भी कुछ अच्छे लोगों के सानिध्य में मैं नोएडा की ऊँची ऊंची इमारतों के बीच एक बहुत बड़े न्यूज़ चैनल में काम सीखने (इंटर्नशिप) गया।

मैंने पूरी लगन से और दृढ़ संकल्प के साथ अपना पूरा से अधिक समय दिया जिसमें कई खास रिश्ते भी उसी दौरान बने जो मुझे वो ख्वाब दिखा दिए जिनका पूरा होना एक आम शहर के लड़के के लिए बिल्कुल संभव न था लेकिन इंटर्नशिप पूरी करने के बाद मैं वापस आया और फिर दबे मन से अपनी पढ़ाई में पूरी तरह लग गया।

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पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में जाने के लिए पूरी जान लगा के इंटर्नशिप की. फिर जो मेरे पास कुछ जुगाड़ नाम की एक घनिष्ठ वस्तु थी उसको भी नौकरी के लिए लगा के देखा लेकिन फिर साफ हो गया कि नहीं गुरु, यह वह जगह है जहां खुद का हिसाब गजब का हो और जिनके खासमखास किसी न्यूज़ चैनल में ऊंचे ओहदे पर हो तो ही सफल होते हैं।

एक समय था कि मैंने क्या दिन क्या रात, सबको मैसेज किया। अपने जितने जानने वाले थे या यूं कहें कि जो आम बच्चों को नौकरी का लॉलीपॉप देते थे, उन सब ठेकेदारों को फेसबुक से मैसेज किया। दीदी भैय्या सर मैडम अंकल आंटी सब तक बना डाला लेकिन किसी ने अपने बंगले तक नहीं झांकने दिया। सिर्फ आश्वासन, वो भी झूठा आश्वासन। कितनों ने तो मुझे इलाहाबाद से नोएडा बुलाया और उनके लिए हफ्ते हफ्ते भर दिल्ली के खुले आसमान में सोया। हिम्मत नहीं थी कि किसी जान पहचान के घर रुकने को बोलूं।

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कई मेरे हितैषी थे जो मुझे जानने का ढोंग करते और नोएडा बुला कर मेरा फोन भी उठाना बन्द कर देते। कुछ तो ऐसे सर मैडम थे जो खुद नीचे से ऊपर जुगाड़ से उठे लेकिन उन्हें मैंने नौकरी नुमा वस्तु के लिए फोन कर दिया तो मुझे वो डांट पिलाई की मेरी अंतरात्मा कांप गयी। ये नौकरी नाम ही बड़ी गजब की होती है। आज भी याद है वो 5 घंटे एबीपी न्यूज़ के सामने बैठे रहना क्योंकि किसी मोहतरमा ने बोला था कि ऑफिस आना, शुरू में इंटर्नशिप में रख लूंगी, बाद में फिर नौकरी में। मैं मन मार कर एक बार अपना शोषण इंटर्नशिप में कराने के लिए टाइट था कि रात के बाद सुबह होगी। सूरज अपना भी चमकेगा। ख़ैर सूरज तो तब चमकता जब ABP NEWS CHANNEL का दरवाजा मेरे लिए खुलता उस समय।

5 घंटे इंतज़ार करने के बाद भी मेरी लगन काम करने के प्रति कम नहीं हुई। भैय्या जी कहिन नामक कार्यक्रम के संचालक से मुझे मिलने के लिए बोला गया तो मैं बड़े भैय्या से मिलने के लिए वहां जाने की झड़ी लगा दी। हर बार अपना रिज़्यूमे उनके दफ्तर में दे आता लेकिन मेरी उनसे मिलने की कोशिश कभी पूरी नहीं हुई। एक बेरोजगार आदमी दिल्ली की ऊंची ऊंची इमारतों में नौकरी की तलाश में जाता रहता था। उसे उम्मीद थी कि जब एक बहुत बड़े पत्रकार को छोटी सी नौकरी मिली जो आज एक चैनल के पूरे सर्वे सर्वा हैं तब तो हम तो अच्छा कर जायेंगे।

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इसी आस में अपना कयास लगाए दिल्ली की धूप छावं में बैठे रह गए लेकिन सिर्फ हार ही मिली, वो भी जबरदस्त वाली। लेकिन मेरी हार मेरी नहीं थी, ये हार उन लोगों की भी थी जो किसी चैनल में ऊंचे ओहदे पर बैठे हैं और दुनिया को बोल के ठग रहे हैं। हम जैसे युवा वर्ग के बिन जान पहचान वाले लड़के बेसहारा बेरोजगार होते जा रहे। इतना होने के बाद भी मैंने हार नहीं मानी और दिल्ली नौकरी ढूंढने की रफ्तार चालू रखी। किन्तु इसी दौरान किसी नेक बंदे ने वक़ालत पढ़ने को भी बोल दिया। उनकी कृपा से महादेव के आशीर्वाद से वक़ालत पढ़ा और पत्रकारिता में 2 साल परेशान होने के बाद जब कुछ हाथ नहीं लगा और अपनी ताकत के साथ पत्रकारिता में अपने सपने भी खो दिया तो पूरी जद्दोजेहद के बाद वक़ालत की दुनिया में कूद गया।

वकालत की दुनिया में भी मेरा कोई न था। मैं यहां अकेला हूँ। लेकिन एक बात तो है, वक़ालत करने वाला इंसान झूठा बनकर भी साफ दिल का रहता है जो लोगों की सहायता करता है और लोगों के इमोशन्स को समझने वाला होता है। लेकिन सच से रूबरू कराने वाली मीडिया सिर्फ झूठी होती है, न कोई इमोशन्स होते हैं न किसी गैर को अपना बनाती है। फिर दिल्ली में पत्रकारिता का ख़्वाब छोड़ कर अपने रंग भरे शहर आ गया वक़ालत करने क्योंकि यहां तो वो भी पहचानते हैं और आगे बढ़ने में खूब सहयोग करते हैं जो कई मीलों तक मुझे पहचानते तक नहीं। आज इसी वक़ालत में रोजी रोटी और उन लोगों के साथ खड़ा होने की कोशिश कर रहा जिनका कोई नहीं। जब पत्रकारिता में कई अपनों ने मुझे कोसों मील दूर का गैर बना दिया और वहां मेरी दाल नहीं गलने दी तो फिर वक़ालत करने की सोची और अब इसी में हूं व संतुष्ठ हूं।

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एडवोकेट श्याम किशोर त्रिपाठी

Adv. Shyam Kishore Tripathi
Allahabad Highcourt
Allahabad
[email protected]
Mob. No. 9454941666

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1 Comment

1 Comment

  1. Pawan kripa shanker bhargav

    January 21, 2019 at 10:41 am

    bhai bilkul tek kiya maine bhi kai channel mai kaam kerne ke baad llb ki hai aur district court rohini delhi mai ab kaam kerna shru kiya hai aur saat hi ek agency mai kuch samaya nikal leta huu

    Pawan K S bhargav
    Adv Rohini court delhi
    [email protected]
    9599603202

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