‘मीडिया विमर्श’ का अंक कल शाम मिला। इस में हिंदी पत्रकारिता के 51 हीरो की चर्चा है। चर्चा क्या, पूजा है 51 लोगों की। और दुर्भाग्य देखिए कि इन 51 में से भी आधे से अधिक लोगों की कुख्याति दलाली, लायजनिंग आदि कामों के लिए है। अब अगर दलालों और भडुओं को हम मीडिया के हीरो या नायक कह कर उन की पूजा करेंगे तो इस मीडिया समाज का क्या होगा भला? ‘मीडिया विमर्श’ के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी को कल फोन करके मैंने अपनी यह आपत्ति दर्ज भी की। मीडिया में दलाली के लिए कुख्यात लोगों के नाम ले-ले कर उनसे पूछा कि आखिर यह दल्ले नायक कैसे हो गए हिंदी पत्रकारिता के?
मैंने उन्हें बताया कि उन की सारी मेहनत बेकार गई है इन दलालों को हीरो बना कर। वह जी, जी कहते रहे। कुछ नाम को लेकर वह चकित हुए और बोले इनके बारे में यह सब मुझे मालूम नहीं था। लेकिन जो नाम बाकायदा दर्ज हैं हिंदी पत्रकारिता में बतौर दलाल और लायजनर उन नामों से भी संजय द्विवेदी क्यों नहीं बच पाए? क्या किसी चैनल या अखबार में सर्वशक्तिमान हो जाना या किसी बड़ी कही जाने वाली कुर्सी पर बैठ कर या संपादक बन कर ही कोई हिंदी पत्रकारिता का हीरो बन जाने की योग्यता हासिल कर लेता है? और जो यही सच है इस हिंदी पत्रकारिता का तो हमारे सचमुच के हीरो कहां जाएंगे? महाराणा प्रताप और जयचंद का फर्क लेकिन समाज तो जानता ही है, क्या यह भी कोई बताने की बात है? ये पब्लिक है सब जानती है!
साहित्कार और पत्रकार दयानंद पांडेय के फेसबुक वाल से.
Ira Jha
July 25, 2014 at 12:29 pm
genhoo ke sath ghoon bhee pis gaya..
GGGGGGG
July 26, 2014 at 6:44 am
all those are chor,gaddar,bhrusth and aeyeassh hai
purushottam asnora
October 31, 2014 at 9:45 am
desh duniya ka dastur hai ki jo uche aasan par baithe wahi pujniy hai.desh k media k dastur to our bhi nirale hain. dalali our chamchgiri se sampadak bane adhikans chtukar patrakarita k kalank hain. lekin man samman to unhi ka hoga jo kursi par hain.