लॉकडाउन के बहाने पत्रकारों की छंटनी और वेतन में कटौती का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
देशभर के प्रिंट, डिजिटल और इलेक्ट्रानिक मीडिया में लाकडाउन के कारण प्रसार संख्या में भारी गिरावट और विज्ञापन आय में भारी कमी के नाम पर पत्रकारों को फायर करने (छंटनी) और वेतन कटौती (कटनी) का मामला उच्चतम न्यायालय में पहुंच गया है।
पत्रकारों की कुछ यूनियन ने उन सभी मीडिया संस्थानों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है, जिन्होंने देशव्यापी लाकडाउन के चलते अपने यहां कर्मचारियों की छंटनी कर दी है या उन पर कम वेतन लेने के लिए दबाव बनाया है। अखबारों के नियोक्ताओं और मीडिया सेक्टर पर आरोप लगाया गया है कि वह अपने कर्मचारियों के प्रति अमानवीय और गैरकानूनी व्यवहार कर रहे हैं।
इस याचिका में मांग की गई है कि लाकडाउन की घोषणा के बाद, नौकरी से हटाने के लिए जारी नोटिस, वेतन कटौती, इस्तीफे के लिए किए गए मौखिक या लिखित अनुरोध और बिना वेतन छुट्टी पर जाने के जारी किए सभी निर्देश को तुंरत प्रभाव से निलंबित या रद्द कर दिया जाए।
नेशनल एलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और बृहन मुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स ने मिलकर यह याचिका संयुक्त रूप से दायर की है। इसमें आरोप लगाया गया है कि केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी की जा रही एडवाइजरी और प्रधानमंत्री द्वारा दो बार अपील करने के बावजूद भी मीडिया क्षेत्र में नियोक्ता अपनी मनमानी कार्यवाही कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि भारत सरकार ने विशेष रूप से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों को कामकाज जारी रखने की अनुमति दी है। वहीं भारत के प्रधानमंत्री ने अपील की है और भारत सरकार ने भी एडवाइजरी जारी की है कि किसी की भी सेवाएं समाप्त न की जाए या कर्मचारियों के वेतन में कटौती न की जाए। इन तथ्यों के बावजूद भी कई नियोक्ताओं/समाचार पत्र संस्थानो/ मीडिया सेक्टर के मालिकों ने एकतरफा फैसला लेते हुए कई कर्मचारियों की सेवाओं को समाप्त कर दिया है, वेतन में कटौती की गई और कर्मचारियों को जबरन अनिश्चित काल के लिए बिना वेतन के अवकाश पर भेज दिया गया है।
याचिका में यह भी बताया गया है कि मीडिया हाउसों को कुछ समय के लिए बंद करना भी औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 का उल्लंघन है और यह सभी कंपनियां इसी दिशा में आगे बढ़ रही हैं, जबकि इस बात पर विचार नहीं किया जा रहा है कि इस समय में नई नौकरी खोजने में कितनी कठिनाइयां सामने आने वाली हैं। ऐसे 9 उदाहरणों का हवाला भी दिया गया है, जिनमें 15 मार्च 2020 के बाद से ऐसी ही कार्रवाई की गई है।
याचिका में मांग की गई है कि इस संबंध में केंद्र, इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन को निर्देश दिए जाएं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लॉकडाउन का दुरुपयोग करके ऐसी कोई मनमानी कार्रवाई न की जा सके। याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के चलते मीडिया उद्योग में नौकरी से हटाने और वेतन कटौती की प्रक्रिया लागू हुई है। मीडिया हाउसों ने औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 का उल्लंघन करते हुए अपने संस्थानों को कुछ समय के लिए बंद कर दिया है।
एडवाइजरी और कानूनी प्रावधानों से साफ है कि बिना किसी उचित प्रक्रिया के छंटनी करना, निलंबित करना या नौकरी समाप्त करना और प्रकाशनों को बंद करने की अनुमति नहीं है, इसके बावजूद मीडिया कंपनियां इन उपायों के साथ आगे बढ़ी हैं। बिना इस बात की परवाह किए कि मौजूदा लाकडाउन की स्थिति में लोगों को घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं है, वह इन कर्मचारियों को नई नौकरी खोजने के लिए अकेला या बेसहारा छोड़ रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दायर पीआईएल पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें-
ramveer singh
April 17, 2020 at 3:56 pm
राजस्थान पत्रिका तो शुरू से ही देश का एक नंबर का दोगला अखवार है और इसके संपादक महोदय तो बस पूंछो मत इतने महान है कि इनके बारे में जितने तारीफ की जाय थोड़ी हैं लॉक डाउन एक जब प्रधान मंत्री मोदी ने सभी मीडिया घरानो से बात की तो इस महान लेखक को भी बहती गंगा में हाथ धोने का अबसर मिलगया बस फिर के जनाब मोदी जी दो ज्ञान बाँटने लगे
जंहा एक तरफ भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से देश को सम्बोधित करते हुए कहा कि कोई भी संसथान अपने कर्मचारी का वेतन नहीं कटेगा परन्तु इस महान पत्रकार जिसने आज तक अपने कर्मचारियों को मजीठिया बेज बोर्ड के अनुसार वेतन तक नहीं दिया जो की नवंबर 2011 से देना था उलटा मार्च 20 का वेतन काटकर सभी कर्मचारियों को 15000.00 दे दिए और अपने सम्पादकीय में राज्य के दानदाताओं के गुणगान करने लगा इससे से साफ हैं की अपने कमी को छिपाने के लिए देश के नामी उद्योगपतियों के गीता गाने लगा अरे दुनिया को ज्ञान बाँटने बाले सपादक महोदय जरा अपने ग्रहवान मैं भी झांको की तुम कितने उदारवादी हो साथ ही जो पुरे देश में तुमने पत्रिकारिता की आड़ में अनाप सनाप सम्पति खरीद कर रखी हैं साथ आज जिन कर्मचारियों के बल पर इस मुकाम पर पंहुचे हो वो अपने इन दो औलादो के बल पर नहीं और ने ही अपने बल पर आज उन्ही कर्मचारियों के पसे काट रहो दुब मरो चुल्लो भरपानी में अगर थोड़ी भी शर्म बची हो बेसे तो तुम नंबर एक भृष्ट हो फिर भी अपने आप को बहुत बड़ा ईमानदार बनते इस तरह संपादक जी आप राज्यसभा मैं नहीं पंहुच पाओगे उसका नाम नरेंद्र मोदी हैं तुम्हारे जैसे बहुत मिलते हैं