इन दिनों देशभर में ‘व्यापम’ भर्ती घोटाले पर बवाल मचा है। ये घोटाला अपने नज़दीकी, रिश्तेदार या अयोग्य लोगों को धनबल के आधार पर सरकारी नौकरियों और मेडिकल-इंजीनियरिंग में प्रवेश दिलाने का है। घोटाले के उजागर होने के बाद से ही देशभर में मानो भूचाल आ गया है। ऐसे में मीडिया संस्थानों के आंतरिक भर्ती-भ्रष्टाचार पर कहावत याद आती है कि जिसके घर शीशे के होते हैं, पत्थरों से वैर नहीं पालता। बीते दिनों डीडी न्यूज़ में 10-12 पदों के लिए 500 से ज़्यादा अनुभवी पत्रकारों की भर्ती परीक्षा आयोजित की गयी थी, जिसके पैटर्न की सूचना प्रकाशित करना भी प्रसार भारती ने उचित नहीं समझा। राज्यसभा टीवी ने अयोग्य लोगों को भर्ती करने का अभियान जारी रखा हुआ है। इन भर्ती परीक्षाओं में ओएमआर शीट का इस्तेमाल न किये जाने, प्रश्नपत्रों की गोपनीयता संदिग्ध होने सहित कईं खामियां देखी गयीं जो व्यापम की तर्ज पर घोटाले की तरफ इशारा करती हैं। निजी मीडिया संस्थानों में तो और भी बुरे हाल हैं। ताज़ा मामला देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थान होने का दावा करने वाले ज़ी न्यूज़ समूह का है। आज तक, इण्डिया टीवी से लेकर एनडी टीवी और न्यूज़ नेशन से लेकर न्यूज़ 24 तक ऐसा कोई मीडिया संस्थान नहीं जो हायर एन्ड फायर का घिनौना खेल खेल कर हज़ारों होनहार पत्रकारों का भविष्य तबाह करने की इस दौड़ में शामिल न हो।
व्यापम की तर्ज पर हो रहा ये भर्ती घोटाला तो व्यापम से भी प्राचीन है। फर्क सिर्फ इतना है कि इस घोटाले का पता सबको है लेकिन आवाज़ उठाने की हिम्मत किसी में नहीं। सवाल ये है कि मीडिया संस्थानों में हो रहे पत्रकार भर्ती घोटाले में सब मौन क्यों हैं? ये जानकर शायद आश्चर्य हो कि बिना सिफारिश या पहुँच के पत्रकारिता में आपको इंटर्न भी नहीं रखा जाता। मध्य और उच्च पदों पर पत्रकारों की भर्ती सिफारिश और लॉबिंग के आधार पर होती है। यहां पत्रकारों की भर्ती के लिए कोई नियम कायदे नहीं है। ज़्यादातर मामलों में तो भर्ती के लिए कोई विज्ञापन तक जारी नहीं किया जाता। सारी भर्तियां अंदरखाने ही कर ली जाती हैं। यही कारण है कि आपको तमाम सरकारी मीडिया संस्थान जैसे दूरदर्शन, राज्यसभा टीवी, लोकसभा टीवी, आकाशवाणी इत्यादि में नेताओं और अफसरों के ऊंची पहुँच वाले रिश्तेदार और सगे सम्बन्धी आसानी से मिल जाएंगे।
आलम ये है कि सरकारी मीडिया संस्थानों में बड़ी संख्या में पत्रकारों के पद खाली होने के बावजूद इक्का-दुक्का छोटे पदों पर ही भर्ती का विज्ञापन जारी होता है। ये सब इस रणनीति के तहत किया जाता है ताकि शेष बड़े पदों पर पिछले दरवाज़े से अपने लोगों की इंट्री का रास्ता तैयार किया जा सके। कुछ इसी तर्ज़ पर बीते दिनों डीडी न्यूज़ में भी आनन-फानन में कुल जमा 10-12 पदों के लिए 500 से ज़्यादा अनुभवी पत्रकारों की भर्ती परीक्षा आयोजित की गयी थी। जिसके पैटर्न की सूचना प्रकाशित करना भी प्रसार भारती ने उचित नहीं समझा। इस परीक्षा में ओएमआर शीट का इस्तेमाल ना किये जाने, प्रश्नपत्रों की गोपनीयता संदिग्ध होने सहित कईं ऐसी खामियां देखी गयीं जो व्यापम की तर्ज पर घोटाले की तरफ इशारा करती हैं।
संसदीय चैनल राज्यसभा टीवी तो इससे भी एक कदम आगे निकला। तमाम विवादों के बावजूद राज्यसभा टीवी ने अयोग्य लोगों को भर्ती करने का अभियान जारी रखा हुआ है। कुछ माह पहले हुए बेहद विवादित और संदिग्ध कहे जा रहे पत्रकार भर्ती इंटरव्यू के आधार पर चयनित उन तमाम लोगों को राज्यसभा टीवी ने व्यापम की तर्ज पर ही नौकरी दे दी है जिनकी योग्यता पर ही सवाल थे।जब राज्यसभा टीवी ने अपने संदिग्ध साक्षात्कार के बाद परिणामों की घोषणा की तो अप्रत्याशित परिणाम देखकर लोग चौंक गए….क्योंकि चयनित उम्मीदवारों से कहीं अधिक अनुभवी और योग्य उम्मीदवार एक दुसरे का मुंह ताकते रह गए थे। ये इंटरव्यू इस लिए संदिग्ध हुआ था क्योंकि भर्ती के लिए हुए इस साक्षात्कार में तमाम नियमों को ताक़ पर रखकर राज्यसभा टीवी ने एक ही दिन में सैंकड़ों उम्मीदवारों के इंटरव्यू लेने का रिकॉर्ड बनाया था। और जिन लोगों को अंतिम रूप से चयनित किया गया है वे साक्षात्कार पैनल शामिल अफसरों के बेहद नज़दीकी बताए जाते हैं।
निजी मीडिया संस्थानों में तो और भी बुरे हाल हैं। क्योंकि ये संस्थान पूरी तरह कायदे कानूनों से ऊपर हैं। यहाँ तो ‘अंधा बांटे रेवड़ी अपने अपनों को दे’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। क्योंकि ये संस्थान कभी भी भर्ती का कोई विज्ञापन जारी नहीं करते। आप सोच रहे होंगे कि बिना विज्ञापन जारी किये ये पत्रकारों की भर्ती कैसे करते हैं? दरअसल यहां ठेके पर पत्रकार रखे जाते हैं। जिसके नियम और कायदे ‘ठेके’ पर काम करने वाले ‘बंधुआ मजदूरों’ की ही तरह होते हैं। किसी एक व्यक्ति को सर्वे सर्वा बना दिया जाता है। उसे नियुक्ति के सारे अधिकार दे दिए जाते हैं। फिर नियुक्ति की प्रक्रिया में कोई नियंत्रण या पारदर्शिता नहीं होती। ये सर्वे सर्वा संपादक या मैनेजर होता है जो भर्ती की इस खुली छूट का भरपूर फायदा उठाता है। सबसे पहले ये अपने रिश्तेदारों की बड़े पदों पर भर्ती करके अपनी कुर्सी सुरक्षित करता है। फिर इन्हीं रिश्तेदारों के ज़रिये शुरू होता है व्यापम की ही तरह का भर्ती घोटाला, जिसमें पद, पैसा, पावर और सिफारिश का कॉकटेल तैयार होता है। जिसे समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है।
यहाँ हायर और फायर का नियम भी चलता है, या यूँ कहिये हायर एन्ड फायर की खुली छूट है। बिना कोई कारण बताए ही सैकड़ों पत्रकारों को एक साथ यहाँ बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। सामूहिक रूप से बड़ी संख्या में पत्रकारों को नौकरी से निकाले जाने पर भी कहीं क़ोई शोर नहीं होता। उसके बाद फिर पिछले दरवाज़े से नई भर्तियां करके मोटी कमाई की जाती है। इस तरह इस खेल में मालिक और मैनेजर दोनों को फायदा होता है। मालिक को हर वक्त कम पैसों में काम करने वाले पत्रकार मिलते रहते हैं। और संपादक और मैनेजरों को लगातार होने वाली नई भर्तीयों से मोटी आमदनी। लंबे समय तक पत्रकारों के ना टिक पाने से उन पर खर्च होने वाला वेतन भत्ता, पीएफ, और अन्य देनदारियों से मुक्ति मिल जाती है।शोषण के इस खेल के कुछ और भी फायदे हैं जिसे आसानी से समझा जा सकता है।
ताज़ा मामला देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थान होने का दावा करने वाले ज़ी न्यूज़ समूह का है। जहां पिछले दिनों ही बड़ी संख्या में पत्रकारों को नौकरी से निकाला गया है। आपको शायद यकीन ना हो लेकिन हायर एन्ड फायर के इस खेल के ढेरों फायदे हैं और इस खेल में सबसे तेज़ कहा जाने वाला आज तक, भी पीछे नहीं है। इण्डिया टीवी से लेकर एनडी टीवी और न्यूज़ नेशन से लेकर न्यूज़ 24 तक ऐसा कोई मीडिया संस्थान नहीं जो हायर एन्ड फायर का घिनौना खेल खेल कर हज़ारों होनहार पत्रकारों का भविष्य तबाह करने की इस दौड़ में शामिल ना हो। इन संस्थानों के सर्विस रिकॉर्ड इस पूरे घोटाले को बेनकाब करने के लिए काफी हैं।
hemant goyal
July 6, 2015 at 12:29 pm
सबसे बड़ा भर्ती घोटाला तो आजतक में चल रहा है। यहां न्यूज़ 24 के लोगों को आजतक में मौजूद उनके रिश्तेदार खुलेआम नौकरियां बांट रहे हैं। आजतक में नकारा रिश्तेदारों को नौकरी देने का सबसे बड़ा उदाहरण तेज़ में काम करने वाली एक लड़की है। इसको इसके मामा विकास मिश्रा ने बैक डोर से एंट्री दिलवाई है। इस लड़की की स्क्रिप्ट भी एंट्रेंस के समय विकास मिश्रा ने ही लिखी थी। अगर इस नाकारा लड़की से आज दो लाइन लिखने को कह दिया जाए, तो इसे पसीना आ जाता है।
Insaf
July 6, 2015 at 12:35 pm
सबसे भ्रस्टाचारी तो मीडिया के वे एडिटर और मठाधीश है जिन्हें समाचारपत्रों और एल्क्ट्रोनिक मीडिया में नियुक्ति की जिम्मेवारी दे डी जाती है. इसके लिए कोई परीक्षा नहीं. बस अपने आदमियों को बुलाकर बातचीत कर ली. इससे बड़ी शर्म की क्या बात हो सकती है कि पटना में भास्कर ने पत्रकारों की भारती के लिए न तो परीक्षा ली और न ही साक्षात्कार. हिंदुस्तान भी वही कर रहा है. आप ही बताईये जो योग्य है और जिसके दिल में प्रतिष्ठित समाचारपत्रों से जुड़ने की ख्वाहिश है कैसे जुड़ेंगे. जिन पत्रकारों को अपशब्द लिखने और भ्रस्टाचार के आरोप में निकल दिया गया वैसे पत्रकार अपनी जाति के बदौलत भास्कर और जागरण में काम कर रहे हैं. वह रे भादुवागिरी . आखिर क्यों नहीं लिखित परीक्षा हो रही है. एक समय सहारा में में बिना लिखित परीक्षा के भारती नहीं होती थी. लेकिन अब उसे बारे में क्या कहा जाये. सुनने में आया है सहारा पटना के एडिटर मनमर्जी करने में जुटे है. खुद का ट्रान्सफर लखनवी नहीं होने के कारन अपनी मनमर्जी चला रहे हैं, ताकि सहारा प्रशासन उन्हें तबादला कर दे.
Sanjay Ankil
July 6, 2015 at 1:12 pm
Ndtv me bhi Vyapam se bada ghotala huaa hai ..aur ho raha hai…maine 15 years Ndtv Bhopal me As a Camrapersion kaam kiya …Mera Ndtv me Koi GOD FATHER nhi tha Isliye Mujhe ek phone Call karke 21dec..2012 me Ndtv se Bahar kar diya…
Mere Sath Jo Ndtv me second Cameraperson hai…wo Apna mail Bhi nhi likh sakte ..Na Mail read kar sakte Na hi ..unke pass koi Marksheet hai..phir bhi wo Ndtv me job pr hai … aur Mai ……NDTV se OUT..
Mera Ndtv me koi GOD father Nhi hai ..
mukhul shrivastva
July 6, 2015 at 3:23 pm
मीडिया में चल रहे व्यापम घोटाले को उजागर करने के लिए भड़ास के संपादक यशवंत को साधुवाद। हैरानी हुई ये जानकार कि भारतीय मीडिया में अंदरखाने चल रहे इतने बड़े घोटाले पर अब तक किसी की नज़र क्यों नहीं पडी?
vivek awasthi
July 6, 2015 at 3:49 pm
सबसे बड़ा घोटाला तो इण्डिया टीवी में चल रहा है जहाँ कभी भी नियमों के मुताबिक़ भर्ती नहीं हुई। तमाम बड़े पदों पर मालिकों के रिश्तेदार बैठे हैं और छोटे पदों पर बड़े अधिकारियों के रिश्तेदार। बिना रिश्तेदारी या पावर के यहाँ अव्वल तो नौकरी मिलती और अगर गलती से मिल भी गयी तो टिकती नहीं। यहा से बिना किसी कारण के बाइज़्ज़त करके निकाले गए पत्रकारों की लिस्ट बहुत लंबी है। याद है वो एंकर की प्रताड़ना और आत्महत्या का केस इसी महान मीडिया संस्थान में ही हुआ था। यहां सिर्फ भर्ती में भ्रष्टाचार ही नहीं है बल्कि भर्ती के बाद व्यपाम की तर्ज पर ही आपकी जान का भी जोखिम है। यहाँ शिफ्ट 10 घंटे से कम की नहीं होती। वीकली ऑफ़ केंसल कर दिए जाते हैं। त्यौहार पर भी छुट्टे नहीं मिलती। और नाइट स्जिफ्ट चाह महीने से दो साल तक हो सकती है। इनकार करने पर नौकरी से निकाल देते हैं। यहाँ ऐसे कितने ही लोगों के नाम गिना सकता हूँ जो कईं साल सिर्फ नाईट शिफ्ट में रहे। इतना सबकरने पर भी न्यूनतम वेतन और वेतन में बिना बताए कटौती आम बात है। बताईये इससे बड़ा घोटाला है किसी और चैनल में?
sanjeev kumaar
July 6, 2015 at 4:05 pm
ज़ी न्यूज़ में भी बहुत बुरे हाल हैं भाई। हर वक्त नौकरी जाने की तलवार लटक रहती है। सारे बड़े अधिकारी अपने रिश्तेदारों या करीबियों को फिट करवाने की जुगत में लगे रहते हैं। बिना तगड़े जुगड़ के तो यहां इंटर्नशिप भी नहीं मिलती। बफे अधिकारी अपने चार से चालीस लोग तक भर्ती करवा लेते हैं लेकिन ईमानदार पत्रकार तो गेट से अंदर रिज़्यूमे भी नहीं दे पता। ज़्यादातर लोग तनाव में काम कर रहे हैं भाई कोई भरोसा नहीं ये दुष्ट अधिकारी कब सड़क पर ला दें। मालिक सुभाष चंद्रा भी सब जानते हैं लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं भाई। बहुत बुरी हालात है पत्रकारों की।
amitmishra
July 7, 2015 at 4:07 pm
विकास मिश्रा खुद चंपूगीरी करके यहां तक पहुंचा है। कभी इलाहाबाद का पोकौव्वा आज मुफ्त का माल खा-खाके गैंडा हो गया है।
komal nandi
July 7, 2015 at 4:30 pm
पत्रकार आज सबसे शोषित है..अब उसका टैलेंट नही बल्कि उसके सोर्स पर निर्भर करता है कि वो अपने परिवार को दो वक्त की रोटी खिला पायेगा या खीर पूरी…बाहर शेर की तरह दहाड़ने वाले पत्रकारों की हालत अपने संस्थानों में किसी दुम दबाकर बैठने वाले कुत्ते से कम नही…ना ही इनके लिए ये खुद या कोई और आवाज उठा सकता है…इनके सालों के अनुभव, इनके परिवार और इनकी दशा सोचने की फुर्सत से ज्यादा..मिडिया हाउसों में बैठे स्वार्थी अधिकारियों को फिलहाल अपने घर भरने से फुर्सत कहां…शायद हम भूल बैठे है कि हर बुरे का अंत भी बुरा ही होता है ..
Ritik
July 7, 2015 at 6:22 pm
Amit tumhari vikas mishra (aajtak) ki baat ka zyada Garda nahin hoga, kyunki, Bhadas ka malik yashwant khud uske Ahsaan Ke bojh tale hai. Vikas mishra iske alawa aaj tak ka daily rundown Ajit anjum ko paise ke badle bhi pahunchate hai.
मोहित शर्मा
July 7, 2015 at 7:44 pm
भाई सबसे बड़ा घोटाला तो आजतक के तेज़ में चल रहा है। यहां संजय सिन्हा सालों से कुंडली मारकर बैठ है। बातें बड़ी बड़ी करता है लेकिन किसी भी योग्य पत्रकार को तेज़ में नौकरी नहीं करने देता। लड़कियों का फोन आते ही उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलवा लेता है। बिना टेस्ट लिए ही उनका इंटरव्यू भी ले लेता है लेकिन नौकरी के लिए सिफारिश उसी की करता है जिससे इसे कोई फायदा हो। हैरानी है कि तेज़ चैनल की लुटिया डुबोने और इसे पूरी तरह से सर्कस चैनल , नॉन न्यूज़ और कॉमेडी न्यूज़ चैनल में तब्दील कर देने के बावजूद ये शख्स तेज़ का संपादक कैसे बना हुआ है? ये श्ाख्स तेज़ पर ख़बरों को महाभारत के अंदाज़ में पेश करता है। पूरे दिन ज्योतिष और अंधविश्वास के अजीबोगरीब कार्यक्रम चलवाता है, बावजूद इसके साहित्य और पत्रकारिता की बड़ी बड़ी बातें करता है। ज्ञान में ये साहब खुद को आइंस्टाइन से कम नहीं समझते।इनका फेसबुक पेज भी हमेशा खुद की तारीफों से भरा मिलेगा। जब भी बात करेंगे…मैं और मेरा से ही शुरू होगी। ये साहब अपने आगे किसी को कुछ समझते ही नहीं। इनकी माने तो इनको इतिहास भूगोल, विज्ञान, साहित्य, और दुनिया की तमाम भाषाएँ मुंह ज़बानी रटी हैं। इनसे समझदार दुनिया में बस एक ही शख्स था…लाल बुझक्कड़।
Ranoo Batham
July 7, 2015 at 8:50 pm
विकास मिस्रा पर वो निशाना साध रहे हैं जो उनके टैलेंट से जलते हैं. विकास जी की लेखनी में जादू है और वो बहुत क्रिएटिव एवम् मेहनती हैं. ये सब मुकूलवा का खेल लगता है
Sha Dav
July 7, 2015 at 8:54 pm
Bhai sirf Sanjay Sinha pe ungli kyon uthate ho. Yahan to tharkiyon ki jamat hai. Muh mut khulvao
निखिल आनंद
July 8, 2015 at 4:36 am
मोहित भाई की बात से पूरी तरह सहमत हूँ। तेज़ को सर्कस चैनल बनाने में संजय सिन्हा का सब बड़ा योगदान है। ऑफिस तो ये साहब टाइम पास के लिए आते हैं, इनका असल मकसद तो अपना पीआर बढ़ाना ही होता है। जनाब सेलिब्रिटी के साथ फोटो खिंचवाकर उसे अपनी फेसबुक वाल पर दिखाते है। फिर ऐसा जताने की कोशिश करते हैं मानो इन लोगों से इनका घरेलू सम्बन्ध है। सुन्दर लड़कियों के लिए इनके कैबिन के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं। लेकिन ऑफिस का कोई लड़का काम के सिलसिले में इनसे बात करे तो उसे ना केवल इंतज़ार करवाते हैं, बल्कि कईं बार तो इसकदर बेइज़्ज़त करते हैं मानो वो कोई अपराधी हो। अपनी कुर्सी बचाने की कवायद में इन्होंने कितने ही होनहार पत्रकारों का भविष्य तबाह किया है। समझ नहीं आता, अरुणपुरी साहब के ऐसे लोगों को झेलने के पीछे क्या मजबूरी है? अपनी तारीफें सुनना और खुद अपने मुंह मिया मिट्ठू बन्ना इन्हें इतना भाता है कि फेसबुक पर इन्होंने अपने चमचों को लेकर इन्होंने एक पूरा अभियान ही चला दिया है। जो हर रोज़ इनकी बेतुकी पोस्ट पर लाइक और कमेन्ट कर इनका हौसला बढ़ाते रहते हैं और ये कगद को साहित्य के अगले नोबल का डावेफार मानकर खुश होते रहते हैं।
शैफाली रावत
July 8, 2015 at 5:19 am
कुछ महीने पहले की बात है, संजय सिन्हा को एक लड़की ने फोन किया था। मैंने ही उस लड़के को संजय सिन्हा का नंबर दिया था। लड़की मेरी कॉलेज फ्रेंड है। संजय सिन्हा ने उसे दुसरे दिन अपने तेज़ के ऑफिस में मिलने बुलवाया था। जब वो लड़की उनसे मिलने ऑफिस पहुँची तो इन्होंने उसे एंकरिंग का ऑफर दिया। लड़की अचानक मिले इस ऑफर से हैरान हो गयी। हालांकि वो नौकरी के लिए ही बात करने आई थी लेकिन उसे उम्मीद नहीं थी कि उसे बिना किसी टेस्ट या इंटरवव्यू के ही सीधे जॉब ऑफर मिल जाएगा। वो हैरान इसलिए भी थी क्योंकि सिन्हसाहब इंटरव्यू लेने की बजाय इंटरव्यू दे रहे थे। वो उसे लगातार उसे अपने बारे में बताए जा रहे थे। अपनी उपलब्धि, योग्यता और काबिलियत के कस सूना रहे थे। इसके बाद सिन्हा साहब ने कुछ ऐसा कहा कि वो ड़की असहज हो गयी और वहां से चली गयी। ये सारी घटना मेरी आँखों के सामने ही हुई थी इसलिए मैंने अपनी उस कॉलेज फ्रेंड से माफी मांग ली।
शैफाली रावत
July 8, 2015 at 5:55 am
सबसे बड़ा भर्ती घोटाला तो राज्यसभा टीवी में चल रहा है। यहाँ एक्ज़ीक्यूटिव डाइरेक्टर बने राजेश बादल ने पहले तो ईमानदार पत्रकारों को ठिकाने लगाया फिर खुद हेड बन बैठे। अब झूठे प्रमाणपत्रों और फ़र्ज़ी अनुभव के आधार पर अपने लोगों को नौकरी बाँट रहे हैं। हाल ही में लोकल केबल टीवी लेवल के चैनलों में काम करने वाले कुछ लोगों को राजेश बादल साहब ने तमाम आरोपों के बावजूद राज्यसभा टीवी में एंकर और प्रोड्यूसर बनाया है।
vinay
July 8, 2015 at 7:27 am
प्रिय अरुण पुरी साहब,
क्या ऐसा कोई रास्ता है जिससे ईमानदार और योग्य पत्रकार आजतक में नौकरी पा सकें? क्योंकि आप कभी भी भर्ती का कोई विज्ञापन नहीं निकालते हैं। आपके अधिकारी कोई पारदर्शी चयन प्रक्रिया नहीं अपनाते हैं। सारे खाली पदों पर अपने रिश्तेदारों या बढ़िया चढ़ावा चढाने वालों की भर्ती कर देते हैं। क्या सिर्फ अफसरों और नेताओं नेताओं के रसूखदार रिश्तेदारों या आपके अधिकारियों के चहेते लोगों को ही आजतक में पत्रकारिता करने का हक़ है? यदि ऐसा है तो फिर आप से राष्ट्रीय चैनल क्यों कहते हैं। इसे अपनी निजी दूकान कहिये ना। आपके चैनल में चल रहे भर्ती घोटाले पर आप भी तो मौनमोहन सिंह बने हुए हैं। क्या पत्रकारों की भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने की आपकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं है?
आपके जवाब की प्रतीक्षा में,
एक संघर्षशील पत्रकार।
hemant goyal
July 8, 2015 at 9:41 am
DND flyway par Aaj Tak se Kaun Aur Kis halat mein kiske sath kya karta pakda gaya tha? Akhir kyon Aaj Tak ke senior logon ne use police ke changul se bachaya tha……