अखबारों में कार्यरत कर्मचारियों को मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार वेतनमान व एरियर दिलवाने के लिए संघर्षरत अखबार कर्मियों की यूनियन न्यूजपेपर इम्प्लाइज यूनियन आफ इंडिया (न्यूइंडिया) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर अखबार मालिकों की संस्था आईएनएस की राहत पैकेज की मांग का विरोध करते हुए मजीठिया वेजबोर्ड लागू करवाने की लड़ाई में नौकरियां गवा चुके हजारों अखबारकर्मियों को सीधे तौर पर आर्थिक मदद की मांग की है।
ज्ञात रहे कि ऐसे हजारों अखबार कर्मी नाैकरी छीन जाने के कारण रोजी रोटी को मोहताज हैं। इस संबंध में न्यूइंडिया द्वारा लिखा पत्र इस प्रकार से है:
अखबार कर्मचारियों के लिए 11 नवंबर 2011 को केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संवैधानिक घोषित मजीठिया वेज बोर्ड को लागू ना करके देश के संविधान और संसद का मखौल उड़ाने वाले अखबार मालिकों के संगठन आईएनएस की हजारों करोड़ के राहत पैकेज की मांग का हम देश भर के पत्रकार और अखबार कर्मचारी कड़ा विरोध करते हैं। आईएनएस एक ऐसी संस्था है जो खुद को देश के संविधान, सर्वोच्च न्यायालय और संसद से बड़ा समझती है। इसका जीता जागता उदाहरण अखबारों में कार्यारत पत्रकार और गैरपत्रकार कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित और माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वैध और उचित घोषित किए गए मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू ना करना और वेजबोर्ड को लागू करवाने की लड़ाई में शामिल हजारों अखबार कर्मचारियों को प्रताड़ित करके उनकी नौकरियां छीन लेना है।
महोदय, देश के लगभग सभी समाचारपत्रों की पिछली बैलेंसशीटें हर साल होने वाले करोड़ों रुपये के मुनाफे को दर्शाती हैं। वहीं देश भर के श्रम न्यायालयों में मजीठिया वेजबोर्ड की रिकवरी और उत्पीड़न के हजारों लंबित मामले साफ दर्शाते हैं कि किस तरह से अखबार प्रबंधन अपने कर्मचारियों का हक मार कर बैठे हैं और पत्रकारों, पत्रकारिता और रोजगार के नाम पर अपनी तिजोरियां ही भरते आए हैं। लिहाजा कोराना संकट में हजारों करोड़ के घाटे की बात करके आईएनएस राहत पैकेज की जो बात कर रहा है, यह सिर्फ अखबार मालिकों की तिजोरियां भरने का ही प्रपंच है। इससे अखबारों में कार्यरत कर्मचारियों को कोई लाभ नहीं होने वाला। यहां गौरतलब है कि लॉकडाउन में भी अखबारों की प्रिंटिंग का काम नहीं रोका गया है और अखबारों के प्रसार में मामूली फर्क पड़ा है।
महंगाई के दौर में जहां हर वस्तु के दाम उसकी लागत के अनुसार वसूले जाते हैं तो वहीं बड़े बड़े अखबार घराने अखबार का दाम इसलिए नहीं बढ़ाते ताकि छोटे अखबार आगे ना बढ़ पाएं। उनकी इस चालाकी को घाटे का नाम नहीं दिया जा सकता है। यहां एक समाचारपत्र द हिंदू का उदाहरण सबके सामने है, जिसकी कीमत 10 रुपये हैं जबकि बाकी अखबार अभी भी इससे आधी से कम कीमत में बेचे जा रहे हैं, इसका खामियाजा देश की जनता की खून पसीने की कमाई को लूटा कर नहीं भरा जा सकता।
महोदय, यहां यह बात भी आपके ध्यान में लाना जरूरी है कि आईएनएस से जुड़े अधिकतर अखबारों ने केंद्र सरकार की उस अपील का भी सम्मान नहीं किया है जिसके तहत कर्मचारियों का वेतन ना काटने को कहा गया था। करीब सभी अखबारों ने जानबूझ कर अपने कर्मचारियों से पूरा काम लेने के बावजूद उनका आधे के करीब वेतन काट लिया है ताकि सरकार को घाटे का यकीन दिलाकर राहत पैकेज का ड्रामा रचा जा सके। वेतन काटे जाने को लेकर कुछ यूनियनें माननीय सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दखिल कर चुकी हैं।
महोदय, असल में राहत के हकदार तो वे अखबार कर्मचारी हैं, जो पिछले पांच से छह सालों से मजीठिया वेजबोर्ड की लड़ाई लड़ रहे हैं और इसके चलते अपनी नौकरियां तक गंवा चुके हैं। इनके परिवारों के लिए दो जून की रोटी का प्रबंध करना मुश्किल हो रहा है। केंद्र सरकार से मांग की जाती है कि राज्यों के माध्यम से श्रम न्यायालयों में मजीठिया वेजबोर्ड और अवैध तौर पर तबादले और अन्य कारणों से नौकरी से निकाले जाने की लड़ाई लड़ रहे अखबार कर्मचारियों की पहचान करके उन्हें आर्थिक तौर पर सहायता मुहैया करवाई जाए।
साथ ही कोरोना महामारी के इस संकट में सरकार सिर्फ उन्हीं सामाचारपत्र संस्थानों को आर्थिक मदद जारी करे जो अपने बीओडी के माध्यम से इस आशय का शपथपत्र देते हैं कि उन्होंने मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को केंद्र सरकार की 11.11.2011 की अधिसूचना और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07.02.2014 और 19.06.2017 के निर्णय के अनुसार सौ फीसदी लागू किया है और उसके किसी भी कर्मचारी का श्रम न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय में वेजबोर्ड या इसके कारण कर्मचारी को नौकरी से निकालने का विवाद लंबित नहीं है। साथ ही इस संस्थान के दावे की सत्यता के लिए राज्य और केंद्र स्तर पर श्रमजीवी पत्रकार और अखबार कर्मचारियों की यूनियनों के सुझाव व आपत्तियां लेने के बाद ही इन अखबारों को राहत दी जाए।
anuchauhan
May 6, 2020 at 3:11 pm
mang ek dam jayaj hai…par modi sarkar se aisi aaska karna bekar hai ki wo is maan ko manegi…amiro ki sarkar…kahaan dbe kuchlon ki pukar sunegi…jab yeh varg bhashno se hi khush ho jata hai.. to fir rakahat kyon deni
Vijay srivastava
May 6, 2020 at 3:21 pm
श्री लेशिश जैन जी के विचार अच्छे है। इन दिनों मीडिया संस्थान कटौती में लगे है, जबकि इस समय इन्हे अपने बच्चों की तरह स्टाफ की तकलीफों को समझते हुए कम से कम उन्हें तो पूरा पैसा देना चाहिए, उनके अधिकारों में कटौती क्यों आखिर जीवन भर ये ही अखबार मालिकों को कमा कर देते हैं। ऐसे में सरकार सीधे मीडिया हाउसों के स्टाफ के खाते में उनकी तनख्वाह किसी भी माध्यम से डलवाने का प्रयास करें।