पार्ट वन से आगे…. भारत के विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने जब मेल कर मुझे सूचित किया कि वेनेजुएला में होने वाले गुट निरपेक्ष सम्मेलन में शिरकत करने जा रहे भारतीय उप राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी के साथ जाने वाले भारतीय मीडिया डेलीगेशन के लिए भड़ास4मीडिया डॉट कॉम की तरफ से एक पत्रकार को भेजा जाना है, इसके लिए भड़ास किसे नामित कर रहा है, उनका डिटेल वगैरह चाहिए, तो मैंने तत्काल रिप्लाई में अपना मोबाइल नंबर दे दिया और लिखा कि फोन करिए, बात करते हैं. थोड़ी ही देर में फोन आ भी गया.
वापसी के दौरान वीपीआई (वाइस प्रेसीडेंट आफ इंडिया) ने जब प्रेस कांफ्रेंस और सवाल-जवाब का सत्र खत्म किया तो इस यात्रा की याद के बतौर ग्रुप फोटो की परंपरा के तहत तस्वीरें खिंचवाई गईं. मीडिया डेलीगेट्स की संख्या बीस के करीब थी तो एक बार में सभी का ग्रुप फोटो संभव नहीं हो पा रहा था. ऐसे में दो किश्तों में क्लिक क्लिक हुआ. सबसे उपर वाली तस्वीर में इस संस्मरण के लेखक यशवंत सिंह भी दिख रहे हैं, वीपीआई के ठीक पीछे ह्वाइट शर्ट में. तस्वीरों को डिटेल में देखने के लिए आप तस्वीरों के उपर कर्सर मारें. वापसी के समय जहाज में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान वीपीआई ने क्या कहा, सवाल क्या पूछे गए, इस वीडियो लिंक पर क्लिक कर देख सुन सकते हैं : Youtube.com/FAJQIV5HoR8 वेनेजुएला से लौटते वक्त जहाज में पीसी
उनको मैंने कहा कि भइया, फिलहाल तो मेरा ही नाम लिख लो क्योंकि दो साल से पासपोर्ट बना रक्खा है, एक भी मुहर ठप्पा नहीं पड़ा है उस पर, कहीं वो सारे कागज कोरे ही न रह जाएं, इसलिए मैं खुद ही भड़ास4मीडिया की तरफ से जाने लायक सबसे उपयुक्त व्यक्ति हूं और खुद को इसके लिए अधिकृत करता हूं.
उन्हें यह भी बताया कि मैं कभी विदेश नहीं गया हूं और किशोर उम्र में जो तीन सपने देखे थे, उसमें तीसरा और आखिरी सपना यही था कि विदेश गए बगैर न मरूं. वो यह समझते हुए थोड़ा हंसे कि ये बंदा मजाक कर रहा है, फिर बोले- एक मेल भेज रहे हैं जिसमें जो जो जानकारी मांगी जा रही है आपके बारे में, उसे भरकर, अटैच करके भेज दीजिए. मैंने फौरन कहा- ‘यस सर, जय हिंद’.
इसके बाद मेल पर जानकारी लेने-देने, डाक्यूमेंट्स भर कर भेजने और वीजा के लिए दूतावास जाने आदि के लिए जो क्रम चला उसे थोड़े अतिरिक्त प्रेशर की तरह मैं झेलता रहा क्योंकि उन्हीं दिनों भड़ास के आठवें बर्थडे पर कांस्टीट्यूशन क्लब में होने वाले कार्यक्रम की तैयारियों और लोगों को निमंत्रित करने का काम जोरों पर जारी था. बताया गया कि वीजा जर्मनी का भी लेना है क्योंकि फ्लाइट तकनीकी कारणों से जर्मनी के फ्रैंकफर्ट में आते-जाते लैंड करेगी, हो सकता है रुकना भी पड़े, इसलिए जर्मनी के वीजा की फार्मेल्टीज के लिए फलां टाइम पर जर्मनी दूतावास सभी लोग पहुंचिए.
दिल्ली में जर्मनी दूतवास पहुंचा तो इस टूर पर जा रहे दूसरे कई पत्रकार साथी भी मिले. वेनेजुएला के वीजा के लिए बस एक पन्ने का फार्म भर कर मिनिस्ट्री में जमा कर देना था, फिजिकल उपस्थिति की कोई जरूरत नहीं थी. लेकिन जर्मनी का वीजा पाने के लिए जर्मन दूतावास में फिजिकल प्रजेंस के साथ साथ आंख, हाथ के दोनों पंजों और अंगूठों को कंप्यूटर के जरिए स्कैन कराना था, जिसे बायोमीट्रिक्स या बायोमैट्रिक्स कहा जाता है. यूरोपियन यूनियन के देशों में जाने के लिए वीजा की शर्तें काफी कठिन होती हैं. चूंकि हम लोग डिप्लोमेटिक विजिट पर जा रहे थे, इसलिए उन सब कठिन सवाल का सामना करने से बच गए जिससे आम तौर पर आम पर्यटकों को सामना करना होता है. हाथ के दोनों पंजों, अंगूठों और आंखों की स्कैनिंग के बाद हम लोगों को जर्मन दूतावास से छुट्टी मिल गई, हम लोगों के पासपोर्ट वहीं जमा हो गए. बाद में उसे विदेश मंत्रालय के लोगों ने इकट्ठा कर वेनेजुएला के वीजा के लिए वहां के दूतावास को दे दिया होगा.
भड़ास स्थापना दिवस का कार्यक्रम 11 सितंबर को बेहद सफलतापूर्वक बीत गया तो 12 सितंबर से वेनेजुएला जाने की तैयारियों में लग गया. हम लोगों को बंदोबस्त मीटिंग के लिए उड़ान भरने की पूर्व संध्या यानि 14 सितंबर की शाम पांच बजे दिल्ली के शास्त्री भवन में स्थित मिनिस्ट्री आफ एक्सटर्नल अफेयर्स के आफिस बुलाया गया. बंदोबस्त मीटिंग में सभी लोगों को वीजा, पासपोर्ट, सेक्युरिटी टैग, टिकट्स आदि दिए जाते हैं और विदेश मंत्रालय के वे अधिकारी जो मीडिया के दल को लीड करते हैं, वे यात्रा के बारे में ब्रीफ करते हैं. बंदोबस्त मीटिंग को लेकर जो मेल आई थी, उसमें जहां जहां रुकना था, वहां के तापमान और ड्रेस कोड का भी जिक्र था. यानि मौसम के हिसाब से कपड़े रखें और कुछ कपड़े आफिसियल भी रखें, यानि कोट सूट टाई आदि. टाई तो अपने कभी लगा न पाए. सूट शादी वाला रखा था. जाते वक्त जर्मनी के बर्लिन में रुकने और वहां तापमान कम होने की सूचना को देखते हुए एक जैकेट भी ले जाना उचित समझा. करने को ढेर सारे काम थे.
भड़ास की खबरों मेल्स आदि से जूझते हुए मुझे बस इतना मौका मिला कि मैं अपने नहीं हो सके कई सारे काम दोस्तों में बांट दू. सो जिम्मेदारी दे दी दो मित्रों को. अपने बीएसएफ वाले भाई जनार्दन यादव को फोन किया कि मुझे एक चमड़े का काला जूता दस नंबर का, एक अमेरिकन टूरिस्टर ट्राली बैग, एक जैकेट अपने कैंटीन से खरीद कर रख लें और 15 सितंबर की दोपहर एक बजे से दो बजे के बीच पालम एयरफोर्स स्टेशन के गेट पर मिल कर मेरे हवाले कर दें. जनार्दन जी डन बोल खरीदारी में लग गए. कमल को फोन किया कि भाई साठ सत्तर हजार रुपये को अमेरिकन डालर में कनवर्ट कराने की व्यवस्था कराओ क्योंकि विदेश मंत्रालय के अफसरों ने बताया है कि हमें रहने और खाने के बिल खुद पे करने होंगे, सिर्फ आना जाना फ्री रहेगा, इसलिए डालर यहीं से ले जाना होगा.
मैंने शादी वाला सूट रख लिया. अन्य कपड़े डाल लिए. लैपटाप ले जाऊं या न ले जाऊं, इसको लेकर सोचता रहा. हालांकि विदेश मंत्रालय के लोगों ने साथ ले जाए जा रहे सामान की लिस्ट और लैपटाप कैमरे आदि के डिटेल मंगा लिए थे ताकि उसके विवरण संबंधित देशों और सुरक्षा एजेंसियों को एडवांस में दे सकें. फिर भी ये सोचता रहा कि लैपटाप की क्या जरूरत, वहां कोई भड़ास तो अपडेट करना नहीं है. जो थोड़ा बहुत काम होगा वह स्मार्टफोन से हो ही जाएगा. लेकिन मैं लैपटाप ले गया. लैपटाप रखने के लिए एक नया केबिन बैग भी जनार्दन जी से खरीदवाया. ये अलग बात है कि लैपटाप जी केबिन बैग में सोते गए और सोते ही लौटे, विदेश की हवा तक न लगी. यानि बैग से बाहर तक नहीं निकाला. भड़ास के मेल चेक करने और कुछ अन्य आनलाइन कामधाम वेनेजुएला के गुट निरपेक्ष सम्मेलन स्थल पर बने मीडिया सेंटर में लगे ढेर सारे कंप्यूटरों में से एक पर कब्जा जमाकर निपटाया. बाकी काम मोबाइल से होटल आदि जगहों के वाई फाई से कनेक्ट करके निपटाया.
मेरी यह पहली विदेश यात्रा थी, इसलिए कई विदेश पलट विशेषज्ञ मित्रों से फोन कर पूछा था कि क्या क्या तैयारी करनी चाहिए, क्या क्या ध्यान रखना चाहिए. खासकर कुछ उन पत्रकार मित्रों को भी फोन किया जो पीएम या राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति के साथ विदेश जा चुके हैं. मैंने सबसे लास्ट में कहा कि भाई अभी किसी को बताना नहीं कि मैं उप राष्ट्रपति के साथ जा रहा हूं, जब 15 सितंबर की शाम पांच बजे जहाज का दरवाजा बंद हो जाए तब बताइएगा ताकि कोई मेरा शुभचिंतक टंगड़ी न मार पाए. सुनने वाले साथी लोग हंसने लगे कि कुछ भी सोचते बोलते रहते हो, लेकिन उन लोगों ने यह माना कि मामला संवेदनशील है और यह जानकारी पता चलते ही कि यशवंत उप राष्ट्रपति के साथ जाने वाले हैं, कई मीडिया हाउस और कई कई शत्रु किस्म के मित्र सक्रिय हो जाएंगे, इसलिए उन लोगों ने चुप्पी साधे रखी. लेकिन अपन की आदत है कि दूसरे लोग डेडलाइन का उल्लंघन करें न करें, अपन खुद ही पेट में भरी गैस बाहर निकालने के लिए समय से पहले ही अकुला व्याकुल होकर बक देते हैं. सो फेसबुक पर पंद्रह सितंबर की सुबह ‘ब्रेकिंग न्यूज’ लिख दिया. जनता ने पसंद किया. देखें स्क्रीनशॉट….
पंद्रह सितंबर की दोपहर जनार्दन भाई मय साजो सामान मिले. ट्राली बैग कुछ ज्यादा ही बड़ा खरीद लिया था जिसमें मैं खुद और मेरा सारा सामान पैक हो जाता तो भी नहीं भरने वाला था. सो, अपना ही बैग ले जाने का इरादा किया जो भले ही छोटा था लेकिन सारा सामान उसमें आ जा रहा था. जनार्दन भाई को अपना डेबिट कार्ड देकर एटीएम पिन नंबर बता दिया और बोल दिया कि जितना पैसा लगा है, इससे निकाल लीजिएगा, और अगर मैं विदेश में ही रह गया या उपर से बिलकुल उपर चला गया तो ये कार्ड और एटीएम पिन नंबर मेरे घरवालों को दे दीजिएगा.
यादव जी ठठाकर हंसे और कहे कि शुभ शुभ बोलिए, आप भी पक्के वाले पत्रकार हैं, नकारात्मक एंगल भी हमेशा सूंघते सोचते रहते हैं.
कमल भाई मनी एक्सचेंजर ले आए जो पचास हजार रुपये लेकर छह सात सौ डालर के करीब दे गया. इसमें से खर्चा केवल चार-पांच सौ डालर के बीच ही हुआ. तब भी मेरे जैसे गरीब पोर्टल वाले के लिए यह रकम काफी थी, क्योंकि जब खर्चा का हिसाब रुपय्या में लगाता तो पता चलता कि काफी खर्च हो गया, लेकिन जब डालर में खर्च जोड़ता तो लगता कि अभी तो कुछ खर्च ही नहीं हुआ है. कमल ने पालम एयरफोर्स स्टेशन गेट पर टैग वगैरह फिल करते वक्त मेरी तस्वीर कब ले ली, पता नहीं नहीं चला. बाद में उनने उस तस्वीर को कुछ यूं पोस्ट किया फेसबुक पर…
पालम एयरफोर्स स्टेशन पर एक अलग काउंटर बना दिया गया था, हम सभी मीडिया डेलीगेट्स के लिए. हर विभाग के लोग क्रम से बैठे मिले, सिक्योरिटी से लेकर एयर इंडिया तक वाले. सबने फटाफट मुहर ठप्पा ठोंककर एयर इंडिया वन की तरफ बढ़ा दिया. हम सभी पत्रकार जब सारी औपचारिकता कंप्लीट करके एयरपोर्ट के फाइनल गेट के साथ बने हॉल में पहुंचे तो वहां एक एक कर इंट्री कर रहे लोगों का एक सेक्युरिटी वाला वीडियो बनाता मिला.
मैं वीवीआईपी सिक्योरिटी के बारे में सोच रहा था. जाने कितने लेयर्स पर ये लोग तैयारी करते होंगे ताकि कहीं कुछ भी छूट न जाए. यानि हम जो जो जा रहे थे, उन सभी के चेहरे मोहरे का हाई रिजोल्यूशन वाला वीडियो तैयार हो चुका था. वीपीआई (वाइस प्रेसीडेंट आफ इंडिया) के आने के दो घंटे पहले ही हम लोगों को जहाज पर चढ़ने के लिए कह दिया गया. मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं किशोर उम्र में देखे गए अपने तीसरे सपने को साकार करने पहली बार विदेश जा रहा हूं, वह भी उप राष्ट्रपति के मीडिया दल का सदस्य बनकर, वह भी देश-दुनिया के सबसे ताकतवर और एलीट जहाज एआई वन (एयर इंडिया वन) में सवार होकर….
….जारी….
यशवंत से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
इसके पहले का पार्ट पढ़ने के लिए नीचे दिए शीर्षक पर क्लिक करें :
पहली विदेश यात्रा (1) : सबसे ताकतवर जहाज में प्रेस कांफ्रेंस का बेधड़क वीडियो देखें
वर्ष 2008 में यशवंत जब एक हजार सदस्यों वाले सबसे बड़े हिंदी कम्युनिटी ब्लाग भड़ास का संचालन करते थे तो किसी जहाज पर बैठने उड़ने का पहली बार एक मौका मिला था. इस यात्रा के ठीक पहले और ठीक बाद उनने जो लिखा, उसे पढ़ने के लिए नीचे दिए शीर्षकों पर क्लिक कर सकते हैं…
Pankaj Kumar
September 21, 2016 at 5:02 pm
मजा आ गया। लग रहा था कि मैं खुद उस प्लेन पर मौजूद था।। बढ़िया। अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी भड़ास बाबा।।
Pankaj Kumar
September 21, 2016 at 5:03 pm
मजा आ गया। लग रहा था कि मैं खुद उस प्लेन पर मौजूद था।। बढ़िया। अगले अंक की प्रतीक्षा रहेगी भड़ास बाबा।।
Santosh Singh
September 21, 2016 at 5:07 pm
आपका पुरबिया भोलापन बरकरार है.. बधाई, अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी
Divakar Singh
September 21, 2016 at 5:10 pm
आपके संस्मरण जबरदस्त और बेमिसाल हैं. जारी रखिये इसको.
अशोककुमार शर्मा
September 21, 2016 at 5:14 pm
बहुत सटीक शाब्दिक विज़ुअल्स के साथ विवरण। इंतज़ार रहेगा। एयर इंडिया वन के आकार प्रकार और आप लोगों की बैठने आदि की व्यवस्था। जहाँ रुके। जगह बैठक की। उपराष्ट्रपति के साथ भेंट मुलाकातें। उनके स्टाफ की गतिविधियां क्या रहीं। विदेश भ्रमण पर उपराष्ट्रपति का रूटीन क्या रहता है। भोजन की क्या व्यवस्था थी? आप लोगों की आपस में बैठकी हुई तो क्या बातचीत होती थी? कौन पत्रकार थे जो वाकई गंभीर थे और कौन ऐसे (बिना नाम के) जो सिर्फ पिकनिक में लगे थे? विदेश से उड़ते समय क्या औपचारिकताएं रहीं? सबकी तबियत ठीक रही? क्या सीखा इस दौरे से?
Ajit Ujjainkar
September 21, 2016 at 5:49 pm
सच पढ़ना ही अच्छा लगता है भाई। वर्ना तेल और मसालेदार ख़बर जैसी चीज़ों के लिये तो दुनिया पड़ी है। मेरे लिये “यशवंत”=”सिर्फ दिल से निकली बात”=”सिर्फ़ पत्रकारिता”।
Praveen Antal
September 21, 2016 at 5:51 pm
बेहतरीन….संस्मरण पड़ने के बाद विदेश यात्रा का मन करने लगा…..काश हमें भी कोई स्पॉन्सर कर दे…… :):p;)